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आर्थिक

अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने के बाद मोदी सरकार बैंकों के जरिये ऐसे काट रही है ग्राहकों की जेब

Janjwar Desk
5 Nov 2020 6:21 AM GMT
अर्थव्यवस्था को ध्वस्त करने के बाद मोदी सरकार बैंकों के जरिये ऐसे काट रही है ग्राहकों की जेब
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जिस समय आम लोगों को राहत देने की जरूरत है, उस समय उनसे जुर्माना वसूलने का फरमान जारी करना सरकार के क्रूर चरित्र को ही उजागर करता है...

वरिष्ठ पत्रकार दिनकर कुमार का विश्लेषण

जनज्वार। अगर कोई डाकू लूटा हुआ सारा माल अपने मित्रों को बांट दे और फिर घाटे की भरपाई के नाम पर बस्ती के तमाम लोगों से जबरन लगान वसूलना शुरू कर दे तो इसे किस तरह का न्याय कहा जाएगा? मोदी सरकार भी बिलकुल उसी तरह का आचरण कर रही है। पिछले छह सालों में उसने देश की अच्छी ख़ासी अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर दिया है।

सार्वजनिक बैंकों का पैसा चंद पूंजीपतियों को खैरात में बांटकर अब घाटे की पूर्ति के लिए मोदी सरकार ने आम लोगों की जेब काटने का फैसला किया है। शायद दुनिया के किसी भी देश में ऐसा उदाहरण देखने को नहीं मिलेगा कि आम आदमी को अपना ही पैसा बैंक में जमा करने या निकालने के बदले जुर्माना देने के लिए मजबूर किया गया हो।

एसएमएस सुविधा, मिनिमम बैलेंस, एटीएम व चेक के इस्तेमाल तक पर बैंक आम आदमी से पैसे वसूलता हैं। लेकिन अब ग्राहकों को बैंकों में अपना पैसा जमा करने और निकासी के लिए भी फीस देनी पड़ेगी। मालूम हो कि चालू खाते, कैश क्रेडिट लिमिट और ओवरड्राफ्ट खाते से पैसे जमा और निकालने के अलग व बचत खाते से जमा-निकासी के अलग-अलग शुल्क निर्धारित किए गए हैं।

सिर्फ तीन बार तक पैसे जमा करना फ्री होगा। बचत खाते की बात करें, तो ऐसे खाताधारकों के लिए तीन बार तक जमा करना फ्री होगा, लेकिन अगर ग्राहकों ने चौथी बार पैसे जमा किए, तो उन्हें 40 रुपये देने होंगे। इतना ही नहीं, वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी बैंकों ने कोई राहत नहीं दी है। जनधन खाताधारकों को इसमें थोड़ी राहत मिली है. उन्हें जमा करने पर कोई शुल्क नहीं देना होगा, लेकिन निकालने पर 100 रुपये देना होंगे।

सीसी, चालू व ओवरड्राफ्ट खाताधारक अगर प्रतिदिन एक लाख रुपये तक जमा करते हैं, तो यह सुविधा निशुल्क होगी। लेकिन इससे ज्यादा पैसे जमा करने पर बैंक ग्राहक से पैसे वसूलेंगे। ऐसे खाताधारकों के एक लाख से ज्यादा जमा करने पर एक हजार रुपये पर एक रुपये चार्ज देना होगा। इसके लिए न्यूनतम व अधिकतम सीमा क्रमश: 50 रुपये और 20 हजार रुपये है। अगर सीसी, चालू व ओवरड्राफ्ट खातों से एक महीने में तीन बार पैसे निकाले जाते हैं, तो ग्राहकों से कोई शुल्क नहीं वसूला जाएगा। चौथी बार निकासी पर 150 रुपये का शुल्क लगेगा।

बचत खाताधारकों के लिए तीन बार तक जमा निशुल्क रहेगा। हालांकि चौथी बार से खाताधारकों को प्रत्येक बार पैसे जमा करने पर 40 रुपये देने होंगे। निकासी की बात करें, तो प्रत्येक माह में तीन बार खाते से पैसा निकालने पर ग्राहकों से कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। लेकिन चौथी बार से ग्राहकों को हर बार 100 रुपये का भुगतान करना अनिवार्य होगा।

इस तरह के अजीब फरमान से साफ हो जाता है कि मोदी सरकार आम लोगों का खून चूसकर कारपोरेट का पेट भरने के मिशन पर काम कर रही है। नोटबंदी, जीएसटी और बर्बर लॉकडाउन के जरिये वह पहले ही गरीब लोगों के जीवन को बदतर बना चुकी है।

जापान के बिजनेस अख़बार निकेई एशियन रिव्यू में भारतीय वित्त आयोग के पूर्व सहायक निदेशक रितेश कुमार सिंह ने एक लेख लिखा है जिसका शीर्षक है, 'नरेंद्र मोदी ने भारत की अर्थव्यवस्था को जर्जर बनाया।'

इसमें लिखा गया है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की व्यापार समर्थित छवि होने के बावजूद वो अर्थव्यवस्था संभालने में अयोग्य साबित हो रहे हैं। 2025 तक अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन (खरब) डॉलर की इकोनॉमी बनाने का सपना अब पूरा होता नहीं दिख रहा है।

"भारत के सबसे आधुनिक औद्योगिक शहर से आने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने वादा किया था कि वो अर्थव्यवस्था सुधारेंगे और हर साल 1.2 करोड़ नौकरियां पैदा करेंगे। छह साल तक दफ़्तर से आशावाद की लहर चलाने के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था जर्जर हो गई है, जिसमें जीडीपी चार दशकों में पहली बार इतनी गिरी है और बेरोज़गारी अब तक के चरम पर है। विकास के बड़े इंजन, खपत, निजी निवेश या निर्यात ठप्प पड़े हैं। ऊपर से यह है कि सरकार के पास मंदी से बाहर निकलने और ख़र्च करने की क्षमता नहीं है।"

लेख में लिखा गया है कि प्रधानमंत्री मोदी की इकलौती चूक सिर्फ़ अर्थव्यवस्था संभालना नहीं है बल्कि वो भ्रष्टाचार समाप्त करने के मामले में फ़ेल हुए हैं।

"मोदी ने विनाशकारी नोटबंदी की घोषणा की थी जिसका मक़सद काले धन को समाप्त करना था। इसने अराजकता का माहौल बनाया, इस योजना ने लाखों किसानों और मंझोले एवं छोटे उद्योगों के मालिकों को तबाह कर दिया। हालांकि, उनके समर्थकों का कहना था कि यह सब थोड़े समय के लिए है और भ्रष्टाचार से लड़ने में यह आगे फ़ायदा देगा।"

इस लेख में अर्थव्यवस्था के नीचे जाने की वजह जीएसटी के अलावा, एफ़डीआई, 3600 उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाना और प्रधानमंत्री मोदी का सिर्फ़ कुछ ही नौकरशाहों पर यकीन करना बताया गया है।

साफ है कि अयोग्यता के मामले में मोदी सरकार के डंके दुनियाभर में बज रहे हैं। भले ही सांप्रदायिकता के नशे में धुत भक्त समुदाय के लोग अभी भी मोदी को अपना आराध्य मान रहे हैं लेकिन देशभर में ध्वस्त अर्थव्यवस्था के परिणामस्वरूप बेरोजगारी, गरीबी, मंहगाई और हताशा का माहौल तैयार हो चुका है।

लॉकडाउन के दौरान अधिकतर भारतीय नागरिक को भीषण आर्थिक दुश्वारियों का सामना करना पड़ा है। जिस समय आम लोगों को राहत देने की जरूरत है, उस समय उनसे जुर्माना वसूलने का फरमान जारी करना सरकार के क्रूर चरित्र को ही उजागर करता है।

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