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पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन की त्रासदी से बढ़ेगी मानव तस्करी, यौन शोषण और गुलामी, 1.2 करोड़ लड़कियों की शादी हुई कम उम्र में

Janjwar Desk
22 Sep 2021 3:23 PM GMT
जलवायु परिवर्तन की त्रासदी से बढ़ेगी मानव तस्करी, यौन शोषण और गुलामी, 1.2 करोड़ लड़कियों की शादी हुई कम उम्र में
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तालिबान शासन में बढ़ चुके हैं महिलाओं पर होने वाले अत्याचार (file photo)

जलवायु परिवर्तन की त्रासदी के कारण दुनियाभर में लगभग 1.2 करोड़ लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी गयी है और लड़कियों की तस्करी के मामलों में 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी हो गयी है...

महेंद्र पाण्डेय की टिप्पणी

जनज्वार। एक नई रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि (Climate Change and Global Heating) के कारण दुनियाभर में करोड़ों लोग, जिनमें महिलायें भी शामिल हैं – मानव तस्करी, आधुनिक गुलामी, यौन शोषण और कर्ज की चपेट (Human Trafficking, Modern Slavery, Sexual violence and debt) में आ सकते हैं।

इस रिपोर्ट को इन्टरनेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट और एंटी-स्लेवरी इंस्टिट्यूट (International Institute of Environment & Development, and Anti-slavery Institute) ने संयुक्त तौर पर तैयार किया है। इस रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि के कारण बाढ़, भयानक सूखा, जंगलों की आग, जानलेवा गर्मी, चक्रवात जैसी चरम प्राकृतिक आपदाएं (critical disaster events like floods, drought, forest fires, unbearable heat and cyclones) बढ़ती जा रही हैं।

इन आपदाओं के कारण कृषि और कुटीर उद्योग तबाह हो रहे हैं, और लोग अपना घरबार छोड़ कर सुरक्षित जगहों पर पलायन (migration) करने को मजबूर हैं। विस्थापित होने के बाद नयी जगह पर रोजगार और दूसरी सुविधाओं की तलाश विस्थापित आबादी को मानव तस्करी और आधुनिक गुलामी की चपेट में ले जाती है। ऐसी महिलायें यौन हिंसा का आसानी से शिकार होती हैं। रोजगार नहीं मिलने पर एक बड़ी आबादी कर्ज के बोझ से दब जाती है।

दरअसल तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाला विस्थापन देश के भीतर (large scale migration within the country) ही होता है, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों से बड़ी संख्या में विस्थापन शहर की तरफ होता है। गृहयुद्ध, आतंकवाद और युद्ध की स्थिति में लोगों का अधिकतर पलायन देश के बाहर (migration outside country) होता है।

अनेक रिपोर्टें बताती हैं कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान देश के अन्दर का विस्थापन देश के बाहर पलायन करने की तुलना में अधिक होने लगा है और जैसे-जैसे जलवायु परिवर्तन का प्रभाव बढ़ता जाएगा, यह विस्थापन और बढेगा। घाना (Ghana) के उत्तरी ग्रामीण क्षेत्रों से भयानक सूखे के कारण बड़ी संख्या में आबादी का पलायन आसपास के शहरों में देखा गया है।

भारत और बांग्लादेश के बीच सुंदरबन क्षेत्र (Sundarban Delta between India and Bangladesh) से भी चक्रवात और लगातार बाढ़ के कारण भारी संख्या में आबादी का विस्थापन हो रहा है।

अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान (Taliban in Afghanistan) के आतंक से बहुत बड़ी आबादी पलायन कर रही है, यह तो हम लगातार सुन रहे हैं, पर वहां इससे पहले भयानक सूखे के कारण भारी संख्या में ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की तरफ विस्थापन हो रहा था। अनुमान है कि अफ़ग़ानिस्तान में केवल चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण ग्रामीण क्षेत्रों से 11 लाख लोग शहरों में चले आये थे. भारत के लिए यह संख्या 9 लाख और पाकिस्तान के लिए 8 लाख है।

इन्टरनॅशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर (International Union for Conservation of Nature) ने वर्ष 2020 में महिलाओं की जलवायु परिवर्तन को रोकने में भूमिका पर अब तक का सबसे विस्तृत और बृहद अध्ययन किया था। दो वर्षों तक चले इस अनुसंधान में दुनियाभर में इस विषय पर किये गए शोध से सम्बंधित एक हजार से अधिक शोधपत्रों का विस्तार से अध्ययन किया गया है। इस अध्ययन की मुख्य लेखिका केट ओवरें (Kate Overen) के अनुसार अब तो इस बात के अनेक तथ्य हैं कि तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के कारण दुनियाभर में महिलाओं पर हिंसा (violence on women) बढ़ती जा रही है। जब पर्यावरण का विनाश होता है और पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) पर दबाव बढ़ता है तो लोगों पर दबाव बढ़ता है और प्राकृतिक संसाधनों में कमी आती है, इस कारण महिलाओं पर हिंसा और उनका यौन उत्पीडन बढ़ता है।

जब प्राकृतिक संसाधनों में कमी होने लगती है तब पर्यावरण से सम्बंधित अपराध बढ़ते हैं, और अनेक मामलों में ऐसे अपराधियों को पुलिस और सरकार का समर्थन प्राप्त रहता है। इन्टरनॅशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ़ नेचर ने अपने अध्ययन में ऐसे 80 मामलों का विस्तार से वर्णन किया है। जब ऐसे गिरोह सक्रिय रहते हैं तब पर्यावरण संरक्षण के लिए आवाज उठाने वाली महिलायें, पर्यावरण विनाश के कारण अप्रवासी या फिर शरणार्थी इनके निशाने पर हमेशा रहते हैं। जहां पर्यावरण का विनाश अधिक होता है वहां घरेलू हिंसा, यौन उत्पीडन, बलात्कार, वैश्यावृत्ति, जबरजस्ती विवाह या फिर कम उम्र में विवाह और लड़कियों की तस्करी के मामले अधिक सामने आते हैं।

अफ्रीका और दक्षिण एशिया में अवैध मछली पकड़ने के क्षेत्र, कांगो और ब्राज़ील में जंगलों से लकड़ी की तस्करी के क्षेत्र और कोलंबिया और पेरू में अवैध खनन के क्षेत्र इस मामले में बहुत बदनाम हैं। अधिकतर देशों में महिलाओं को जमीन के अधिकार या फिर कानूनी अधिकार नहीं मिलते, इसलिए जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक वही प्रभावित हो रहीं हैं।

अनुमान है कि केवल जलवायु परिवर्तन की त्रासदी के कारण दुनियाभर में लगभग 1.2 करोड़ लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी गयी है और लड़कियों की तस्करी के मामलों में 20 से 30 प्रतिशत तक बढ़ोत्तरी हो गयी है।

हाल में ही विश्व बैंक (World Bank) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के कारण सूखा बढ़ रहा है और फसलों की उत्पादकता घट रही है, पानी की उपलब्धता (availability of water) कम हो रही है और दूसरी तरफ अनेक सागरतटीय क्षेत्र (coastal areas) बढ़ते सागर तल से प्रभावित हो रहे हैं। रिपोर्ट के अनुसार इन सारे कारणों से वर्ष 2050 तक दुनिया में लगभग 22 करोड़ आबादी विस्थापित होगी और सबसे अधिक विस्थापन सहारा-अफ्रीका, दक्षिण एशिया और लैटिन अमेरिका (Sahara-Africa, South Asia and Latin America) में होगा।

वैज्ञानिकों के अनुसार आबादी का विस्थापन एक बड़ा मुद्दा है और इसपर यूनाइटेड किंगडम के ग्लास्गो (Glasgow in United Kingdom) में जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज के 26वें अधिवेशन (COP-26) में व्यापक चर्चा की जानी चाहिए। इन्टरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट की रितु भरद्वाज को विश्वास है कि जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ते मानव तस्करी, आधुनिक गुलामी और यौन शोषण को दुनिया अनदेखा नहीं कर सकती, और अब देश के जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण के उपायों में इस मुद्दे को भी शामिल करने की जरूरत है और वैश्विक स्तर पर इसके लिए गंभीरता से योजना बनाई जाए।

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