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ग्राउंड रिपोर्ट

'अब किसानों की आत्महत्या के लिए जानी जाती है वीर बुंदेलों धरती, मोदीराज में आय नहीं मुसीबतें हुयीं दुगुनी'

Janjwar Desk
18 Dec 2022 4:53 PM GMT
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खेती किसानी में आनेक वाली बढ़ती लागत के बीच कुछ किसान अपनी जमीन से जुड़े रहने की आकांक्षाओं या किसी और मजबूरी में खेती कर भी रहे हैं तो प्राकृतिक आपदाओं और आवारा जानवरों की वजह से अपनी खून पसीने की मेहनत को एक झटके में नष्ट होते देख खून के आंसू रोते हुए खेती से तौबा कर लेते हैं...

Special report : उत्तर प्रदेश की भौगोलिक, सांस्कृतिक एवं भाषा के आधार की दृष्टि से महाकवि अवधेश ने "जमुना तट से जबलपुर, गोवर्घन से टोंस! धरा बुन्देली ना सही, कवहुँ काहू कि होंस!" जैसे शब्दों के साथ वर्तमान उत्तर प्रदेश के सात जिले झाँसी, ललितपुर, जालौन, महोबा, हमीरपुर, बांदा तथा चित्रकूट एवं मध्य प्रदेश के पन्ना, छतरपुर, टीकमगढ़, सागर, दतिया, दमोह की जिस सीमा को रेखांकित किया है, उसे ही सामान्यतः बुन्देलखण्ड क्षेत्र कहा जाता है।

बुन्देलखण्ड की इस धरती की एक खास बात यहां का पराक्रम है। इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो यह पूरा क्षेत्र अपनी इसी वीरता के बल पर मुगलों सहित अंग्रेजों के कभी भी अधीन न रह सका। इसके छिटपुट हिस्सों पर अतिक्रमण जरूर हुए, लेकिन संपूर्णता में यह क्षेत्र अपनी प्रभुसत्ता बनाए रखने में सफल रहा।जो क्षेत्र कभी विदेशी शासकों के सामने नहीं झुका, वह आजादी के बाद इन दिनों अपना सबसे बड़ा पलायन झेलने को अभिशप्त है। दुर्भाग्य इस बात का है कि अब इस क्षेत्र को किसानों की आत्महत्याओं और भुखमरी के लिए जाना जाता है।

"बुन्देलों की सुनो कहानी, बुन्देलों की बानी में! पानीदार यहां को पानी, आग यहाँ के पानी में!" जैसे गीत जिस धरती पर रचे गए हो, उसकी बदहाली की तस्वीर देखने के लिए जनज्वार ने जब बुन्देलखण्ड क्षेत्र का दौरा किया तो इलाके की भयावह तस्वीर सामने आई।

बुन्देलखण्ड क्षेत्र में घुसते ही कुछ साल पहले देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का साल 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने का बयान सूने पड़े खेतों को मुंह चिढ़ा रहा था। अपने विशाल दुर्गों में कई ऐतिहासिक सच छिपाए बुन्देलखण्ड का यह क्षेत्र अपनी भरपूर कोशिशों के बाद भी अपनी इस बेबसी को नहीं छिपा पा रहा था। एक गांव में कुछ किसानों से बात करने की कोशिश की तो उनके पास उनकी तमाम समस्याएं का अंबार मौजूद था। जब एक किसान से किसानों की आय दुगुनी करने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के वायदे पर बात करने की कोशिश की तो उसके सब्र का बांध ही टूट गया।

किसान शिवनारायण सिंह परिहार जोकि किसान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष, "किसानों की आय नहीं, उनकी मुश्किलों को दुगुना किया है मोदी सरकार ने" जैसी तल्ख टिप्पणी के साथ खेती की दुर्दशा का खाका खींचते हुए कहते हैं, हमें अपने आप को बुन्देलखण्ड क्षेत्र का बताने में भी हिचक होती है।

जो बुन्देलखण्ड क्षेत्र कभी वीरों की भूमि के रूप में जाना जाता था, अब बरबाद हो रही खेती के कारण महानगरों में पलायन के लिए मजबूर हो गया है। प्राकृतिक आपदाएं हों या आवारा जानवरों द्वारा नष्ट की गई खेती, कभी किसी का कोई पूरा मुआवजा नहीं मिलता। 2020 से खराब फसलों का मुआवजा तक सरकार नहीं दे रही है। आर्थिक तौर पर यह क्षेत्र कभी संपन्न नहीं रहा। खेती बाड़ी करके लोग अपना गुजारा करते चले आए हैं, लेकिन बढ़ती मंहगाई ने खेती की जो लागत बढ़ाई है, उसने किसानों की कमर तोड़ दी है। डीजल, खाद, उर्वरक, दवाइयां, और खेती के कामों में आने वाले सभी यंत्रों पर बेतहाशा महंगाई बढ़ने की वजह से खेती पूरी तरह घाटे का सौदा बन गई है, जिस वजह से लोग खेती करना नहीं चाहते। कुछ अपनी जमीन से जुड़े रहने की आकांक्षाओं या किसी और मजबूरी में खेती कर भी रहे हैं तो प्राकृतिक आपदाओं और आवारा जानवरों की वजह से अपनी खून पसीने की मेहनत को एक झटके में नष्ट होते देख खून के आंसू रोते हुए खेती से तौबा कर लेते हैं।

अभी खरीफ की फसल का समय है, लेकिन सरकार की ओर से अभी तक खाद, डीएपी नहीं मिली है। सेंटर पर लंबी लंबी लाइन लगी है। लेकिन सरकार पर्याप्त खाद की सप्लाई नहीं दे रही है। कांग्रेस शासन काल में किसानों का पलायन रोकने के लिए लाई गई मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार इतना है कि लगता है सरकार इसे खुद ही नष्ट करने पर उतारू हो रही है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से किसानों के हित की इस योजना के प्रति केवल कांग्रेस की योजना होने के कारण अपनी घृणा को "मनरेगा कांग्रेसी सरकारों की विफलताओं का स्मारक है" जैसे शब्दों में अभिव्यक्त कर ही चुके हैं।

सरकार की इन्हीं गलत नीतियों की वजह से 46 प्रतिशत गरीबों की इस भूमि से ऐसा पलायन बढ़ा है कि गांव के गांव खाली हो गए हैं। उन पर पड़े ताले पलायन की दुर्दशा की कहानी खुद कह रहे हैं। सक्षम और युवा लोग इसीलिए यहां के हालात से घबराकर महानगरों की तरफ मजदूरी करने के उद्देश्यों से पलायन कर रहे हैं। जो पलायन भी नहीं कर पा रहे हैं, वह यहां बैंकों और साहूकारों के कर्ज के जाल में फंसकर अपनी जिंदगी खराब कर बैठते हैं। आए दिन इस क्षेत्र में कहीं न कहीं किसी न किसी किसान की आत्महत्या की खबर एक आम बात है।

कितने किसान पिछले आठ सालों यानी मोदी सरकार में मौत की आगोश में जा चुके हैं, इसका कोई सरकारी आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने साल 2022 तक किसानों की आय दुगुनी करने का देशवासियों को झांसा दिया था, साल के आखिरी महीने में इसकी सच्चाई यह है कि आय की जगह महंगाई और खेती की लागत दुगुनी होने के कारण बुन्देलखण्ड क्षेत्र के तमाम किसान आत्महत्याओं के लिए मजबूर हो रहे हैं।

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