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राष्ट्रीय

Kisan Andolan Ke Ek Sal Pure : आंदोलन का यूपी और पंजाब सहित 5 राज्यों के चुनावों पर कैसा रहेगा असर?

Janjwar Desk
26 Nov 2021 9:41 AM GMT
Twitter ने कर्नाटक हाईकोर्ट को बताया - ट्विटर पर मोदी सरकार ने नियमों के खिलाफ ट्विटर अकाउंट बंद करने का डाला था दबाव
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Kisan Andolan Ke Ek Sal Pure: उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनावों में किसान आंदोलन का असर पड़ना तय माना जा रहा है। इन राज्यों में 7 दलों और गठबंधनों के बीच मुख्य रूप से मुकाबला तय माना जा रहा है।

किसान आंदोलन का विधानसभा चुनाव 2022 पर असर को लेकर धीरेंद्र मिश्र का विश्लेषण

Kisan Andolan Ke Ek Sal Pure : देशभर के किसान आज जश्न मना रहे हैं। उनका जश्न मनाना स्वाभाविक भी है। किसान संगठनों ने कृषि कानूनों के खिलाफ सबसे लंबा आंदोलन ( Kisan Andolan ) चलाकर मोदी सरकार ( Modi Government ) को झुकने के लिए मजबूर किया। अब किसान एमएसपी ( MSP ) पर कानून सहित तमाम मांगों पर मनवाने की जिद पर अडे हैं। इस बीच उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विधानसभा चुनावों ( assembly election 2022 ) पर असर को लेकर भी चर्चा जोरों पर है। इस मुदृे पर भाजपा की चुप्पी के बीच किसान नेताओं और सियासी दलों के नेताओं के अपने अपने दावे हैं।

7 सियासी दल निभाएंगे अहम भूमिका

दरअसल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर विधानसभा चुनावों में किसान आंदोलन का असर पड़ना तय माना जा रहा है। इन राज्यों में 7 दलों और गठबंधनों के बीच मुख्य रूप से मुकाबला तय माना जा रहा है। इन दलों में भारतीय जनता पार्टी, कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और अमरिंदर सिंह की पार्टी का नाम शामिल है। इसके अलावा क्षेत्रीय दल भी अपना असर दिखाएंगे। इनमें से भाजपा को छोड़ सभी सियासी दल किसानों का मसीहा होने का दावा करते हैं। लेकिन, किसानों ने किसी को अपना खुला समर्थन नहीं दिया है। पंजाब में अकाली दल और अमरिंदर सिंह की पार्टी तो मणिपुर गोवा में तृणमूल कांग्रेस और आप से बेहतरी की उम्मीद है।

किसानों के मुद्दे पर भाजपा रूख साफ

अभी तक भारतीय जनता की नेतृत्व वाली मोदी सरकार कृषि कानून से पीछे हटने के लिए तैयार नहीं थी। लेकिन प्रकाश पर्व के दिन पीएम मोदी ने अचानक तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने ऐलान कर सभी सियासी दलों को चौंका दिया था। ऐसा लगने लगा था कि भाजपा ने मैदान जीत लिया है। पर ऐसा है नहीं। किसान संगठनों के नेताओं ने एमएसपी ( MSP ) सहित 7 मांगों को आगे कर सरकार को साफ कर दिया है कि जब तक इन मांगों पर लिखित में आश्वासन नहीं मिलता तब तक हम अपना आंदोलन वापस नहीं लेंगे। यानि किसान नेताओं नेताओं ने भाजपा को वहीं पर लाकर खड़ा कर दिया जहां पर वो 19 नवंबर से पहले हुआ करती थी। किसानों के इस रुख के बावजूद मोदी सरकार ने कृषि कानूनों की वापसी कर खुद के खिलाफ किसानों की नाराजगी को कम कर लिया है।

इन राज्यों में होगा ज्यादा असर

किसान आंदोलन ( Kisan Andolan ) का असर उत्तर प्रदेश, पंजाब और उत्तराखंड में असर होना तय है। तीनों में कांग्रेस और आप के बीच किसान आंदोलन से उपजे असंतोष का लाभ उठाने को लेकर होड़ मची है। पंजाब में अकाली दल और अमरिंदर सिंह की पार्टी को इसका लाभ सबसे ज्यादा मिलने की उम्मीद है। मणिपुर और गोवा में आंदोलन का असर बहुत कम होगा।

किसान संगठनों ने सबको दुविधा में डाला

किसान संगठनों के नेताओं का कहना है कि उनका आंदोलन खास राजनीतिक दल के विरोध में नहीं है। किसानों की समस्याएं हैं, उन्हें इस आंदोलन के जरिए प्रभावी तरीके से रखा गया है। किसानों को अपनी समस्याओं का समाधान चाहिए। देश के किसान अपनी मर्जी से किसी को भी वोट कर सकता है। लेकिन हकीकत यह है कि किसाना आंदोलन का झुकाव जगजाहिर है। हां, विपक्षी दलों में एका न होने की स्थिति में किसान मतदाता दुविधा में वोट जरूर डालेंगे। इसका फायदा भाजपा अपने हित उठा सकती है।

Kisan Andolan Ke Ek Sal Pure : अभी यह कहना कि असर कितना प्रभावी होगा, जल्दबाजी माना जाएगा। ऐसा इसलिए कि किसान संगठनों के नेता अपनी मांगों से पीछे हटने को तैयार नहीं हैं। इस पर मोदी सरकार ( Modi Government ) का आगामी रुख तय होना बाकी है। कृषि कानूनों की वापसी ( Farm Laws Repealed ) का ऐलान अभी अधूरा प्रयास है। अभी सियासी खींचतान की संभावना है। यही वजह है कि किसान आंदोलन का असर अभी अंतिम रूप में शेप नहीं ले सका है।

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