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Swami Swaroopanand Profile : शंकराचार्य स्वरूपानंद ने 9 साल की उम्र में त्यागा घर, क्रांतिकारी से ऐसे बने शंकराचार्य, विवादों से रहा है नाता

Janjwar Desk
12 Sep 2022 1:01 PM GMT
Swami Swaroopanand Profile : शंकराचार्य स्वरूपानंद ने 9 साल की उम्र में त्यागा घर, क्रांतिकारी से ऐसे बने शंकराचार्य, विवादों से रहा है नाता
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Swami Swaroopanand Profile : शंकराचार्य स्वरूपानंद ने 9 साल की उम्र में त्यागा घर, क्रांतिकारी से ऐसे बने शंकराचार्य, विवादों से रहा है नाता

Swami Swaroopanand Profile : हिंदूओं के धर्मगुरु माने जाने वाले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 98 साल की उम्र में निधन हो गया, स्वरूपानंद सरस्वती गुजरात के द्वारका और बद्रीनाथ के ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य थे...

Swami Swaroopanand Profile : हिंदूओं के धर्मगुरु माने जाने वाले शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 98 साल की उम्र में निधन हो गया। स्वरूपानंद सरस्वती गुजरात के द्वारका और बद्रीनाथ के ज्योर्तिमठ के शंकराचार्य थे। शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती श्रेष्ठ संन्यासियों में से एक थे जिन्होंने हिंदूओं को संगठित करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। साथ ही शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का विवादों से भी गहरा नाता रहा है।

9 साल की उम्र में त्यागा घर

बता दें कि स्वरूपानंद सरस्वती का जन्म 2 सितंबर 1924 मध्य प्रदेश के सिवनी जिले दिघोरी गांव में हुआ था। ब्राह्मण परिवार में जन्में स्वरूपानंद जी को माता पिता ने बचपन पोथीराम उपाध्याय नाम दिया था। स्वरूपानंद जी महज 9 साल की उम्र में घर को त्याग कर धर्म की यात्रा पर निकल पड़े थे। काशी में स्वामी करपात्री महाराज के सानिध्य में वेद, और शास्त्रों की शिक्षा प्राप्त की।

भारत छोड़ों आंदोलन में लिया हिस्सा

शंकराचार्य ने 19 साल की उम्र में 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। यही कारण है कि उन्हें एक क्रांतिकारी साधु के रूप में जाना जाने लगा। साथ ही स्वतंत्रता सेनानी बने शंकराचार्य को आजादी की लड़ाई में वाराणसी में 9 माह और मध्यप्रदेश में 6 महीने जेल की सजा काटनी पड़ी।

स्वरूपानंद ऐसे बने हिंदुओं के घर्मगुरू

बताया जाता है कि नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में स्वामी स्वरूपानंद ने 12 साल तक एक शिला पर तपस्या की थी। 1950 में स्वामी स्वरूपानंद ने दंड सन्यासी की दीक्षा ली और 1981 में इन्हें द्वारका और ज्योतिर्मठ का शंकराचार्य बनाया गया। वे हिंदूओं के धर्म गुरु कहलाए जाने लगे। राम मंदिर निर्माण के लिए शंकराचार्य स्वरूपानंद ने लंबी कानूनी लड़ाई भी लड़ी। गंगा सेवा अभियान में भी शंकराचार्य ने योगदान दिया था। साथ ही वे गौरक्षा आंदोलन के पहले सत्याग्रही थे।

परमहंसी गंगा आश्रम में स्वरूपानंद ने ली अंतिम सांस

स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वाराका और ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य थे। 11 सितंबर 2022 को मध्य प्रदेश के नरसिंहपुर जिले के झोतेश्वर स्थित परमहंसी गंगा आश्रम में उन्होंने अंतिम सांस ली। उन्हें आश्रम में ही भू-समाधि दी गई।

स्वरूपानंद का विवादों से रहा है नाता

बता दें कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का विवादों से भी नाता रहा है। स्वरूपानंद सरस्वती विवादित बयान भी देते रहते थे। उन्होंने साईं बाबा की पूजा करने से भी मना किया था। साथ ही वह महिलाओं से संबधित विवादित बयान भी देते रहते थे।

साईं बाबा की मूर्ति मंदिर में रखने के खिलाफ थे शंकराचार्य

बात दें कि शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती साईं बाबा की मूर्ति को मंदिरों में रखने के खिलाफ थे, उन्होंने आदेश जारी किया था कि मंदिरों से साईं बाबा की मूर्ति हटाई जाए क्योंकि ऐसा करके हिन्दू एक मुसलमान फकीर की पूजा कर रहे थे। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का कहना था कि साई बाबा एक मुस्लिम फकीर थे और उनकी पूजा मंदिरों में नहीं होनी चाहिए। स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज इस्कॉन मंदिरों के भी खिलाफ थे, उनका मानना था कि कृष्णभक्ति के नामपर विदेशी लोग हिन्दू धर्म को विभाजित करना चाहते थे।

महिलाएं शंकराचार्य नहीं बन सकतीं

द्वारका-शारदापीठ एवं ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती ने महिलाओं के धार्मिक परम्पराओं में हस्तक्षेप पर सवाल उठाते हुए कहा था कि महिलाएं अन्य क्षेत्रों के समान राजनीति में तो जा सकती हैं, किंतु वे शंकराचार्य जैसी सनातन संस्था की प्रतिनिधि नहीं बन सकतीं।

नेपाल में पशुपतिनाथ पीठ के अस्तित्व पर सवाल उठाते हुए उसकी स्थापना के लिए अखिल भारतीय विद्वत परिषद को कठघरे में खड़ा किया था। उन्होंने कहा था कि 'अखिल भारतीय विद्वत परिषद के नाम से खड़ी की गई संस्था नकली शंकराचार्य गढ़ने का कार्य कर रही है। यही नहीं, इसने पिछले दिनों नेपाल में पशुपतिनाथ के नाम से एक नई पीठ ही बना डाली, जबकि, इस तरह की कोई पीठ नहीं रही है लेकिन इसके लिए वहां एक महिला को शंकराचार्य बना दिया गया, जबकि कोई भी महिला शंकराचार्य पद पर आसीन नहीं हो सकती। ऐसा विधान स्वयं आदि शंकराचार्य द्वारा तय किया गया है।' साथ ही उन्होंने कहा था कि 'महिलाएं प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, सांसद, विधायक बनें, यह अच्छी बात है। परंतु, कम से कम धर्माचार्यों को तो छोड़ दें। धर्म के यह पद स्त्री के लिए नहीं हैं।'

मंदिरों में दलितों के प्रवेश पर रोक उचित

पुरी पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने कहा था कि दलितों का मंदिर में प्रवेश निषिद्ध है। यह शास्त्र सम्मत नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि सत्य सनातन आर्य देवताओं के साथ हिंदू मंदिरों में साईं की प्रतिमा नहीं रखी जा सकती। हमारे जो देवता हैं, वे ही मंदिरों में स्थापित हो सकते हैं। पुरी पीठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती ने खुद का उदाहरण देते हुए कहा था कि कि कल कोई श्रद्धावश मेरी प्रतिमा मंदिरों पर स्थापित पर दे तो एक समय बाद दूसरे यही कहेंगे कि हमारे आराध्य राम और कृष्ण ऐसे ही रहे होंगे।

जानिए कैसे चुनते हैं शंकाराचार्य ?

हिंदू धर्म के प्रचार-प्रसार में सबसे बड़ी भूमिका आदि शंकारचार्य की मानी जाती है। आदि शंकराचार्य ने सनातन परंपरा को एक सूत्र से जोड़कर रखने के लिए देश की चारों दिशाओं में मठों की स्थापना की थी, जिसमें गोवर्धन, जगन्नाथपुरी (उड़ीसा) पूर्व में, पश्चिम में द्वारका शारदामठ (गुजरात), ज्योतिर्मठ बद्रीधाम (उत्तराखंड) उत्तर में , दक्षिण में शृंगेरी मठ, रामेश्वरम (तमिलनाडु) में है। आदि शंकराचार्य ने इन चारों मठों में सबसे योग्य शिष्यों को मठाधीश बनाने की परंपरा शुरु की थी, तब से ही इन मठों के मठाधीश को शंकराचार्य की उपाधि देते हैं।

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