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उत्तर प्रदेश

Gyanvapi Masjid पर दलित प्रोफेसर की टिप्पणी से और गहराया विवाद, माफी और हटाने की जिद पर क्यों अड़ी एबीवीपी?

Janjwar Desk
12 May 2022 5:55 AM GMT
Gyanvapi Masjid पर दलित प्रोफेसर की टिप्पणी से और गहराया विवाद, माफी और हटाने की जिद पर क्यों अड़ी एबीवीपी?
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Gyanvapi Masjid पर दलित प्रोफेसर की टिप्पणी से और गहराया विवाद, माफी और हटाने की जिद पर क्यों अड़ी एबीवीपी?

ज्ञानवापी मस्जिद ( Gyanvapi Masjid ) पर दलित प्रोफेसर की टिप्पणी से और गहराया विवाद, माफी और हटाने की जिद पर क्यों अड़ी एबीवीपी?

Gyanvapi Masjid Controversy : पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र स्थित ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को लेकर सड़क से लेकर अदालत तक बहस जारी है। इस बीच खबर यह है कि लखनऊ यूनिवर्सिटी में इस मुद्दे पर वैचारिक मतभेदों की वजह से बहस एबीवीपी और दलित प्रोफेसर के बीच जान से मारने की धमकी तक पहुंच गया है। इस स्थिति में एबीवीपी के छात्र प्रोफेसर रविकांत चंदन को मानते हैं, तो दलित प्रोफेसर का कहना है कि उनके बयान को तोड़ मरोड़कर पेश कर रहे हैं, साथ ही जान से मारने की धमकी भी दी है।

सवाल यह उठता है कि उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) की लखनऊ यूनिवर्सिटी में ज्ञानवापी मस्जिद के मुद्दे पर ऐसा क्या हो गया कि एबीवीपी के छात्र औद हिंदी विभाग में दलित प्रोफेसर रविकांत चंदन के बीच तनाव चरम पर है। एबीवीपी के छात्रों ने प्रोफेसर की गिरफ्तारी की मांग करते हुए जोरदार हंगामा कर रहे हैं। छात्रों ने प्रोफेसर के खिलाफ FIR भी दर्ज कराई है। दूसरी तरफ प्रोफेसर रविकांत ने भी मामला दर्ज करने के लिए थाने में शिकायत दी है।

दरअसल, इस पूरे विवाद के पीछे मुख्य वजह एक डिबेट के दौरान प्रोफेसर का काशी विश्वनाथ मंदिर (Kashi Vishwanath Temple) पर टिप्पणी करना माना जा रहा है, लेकिन इस मसले पर रविकांत चंदन का कहना है कि उनके बयान को तोड़मरोड़ कर पेश किया जा रहा है और कुछ छात्रों ने उनकी मॉब लिंचिंग करने की भी कोशिश की है। फिलहाल, पूरा मामला सोशल मीडिया पर भी चर्चा का विषय बना हुआ है।

क्या है विवाद की जड़?

10 मई को एक यूट्यूब चैनल पर ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे को लेकर बहस हो रही थी। इस बहस में लखनऊ यूनिवर्सिटी के हिंदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर रविकांत चंदन भी शामिल थे। बहस के दौरान रविकांत ने स्वाधीनता सेनानी और राजनेता पट्टाभि सीतारमैया की बुक "Feathers and Stones" के हवाले से काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर उसकी जगह बनाई गई मस्जिद के पीछे की कहानी बताई। बताया जा रहा है कि उन्होंने हिंदू साधु-संतों पर टिप्पणी भी की। प्रोफेसर रविकांत ने पूरे यूट्यूब डिबेट का लिंक भी अपने ट्विटर अकाउंट से साझा किया है।

उनके इस बयान पर छात्र संगठन ABVP ने हंगामा शुरू कर दिया। छात्रों का कहना है प्रोफेसर ने बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद मामले पर अभद्र टिप्पणी की है। टिप्पणी के लिए हवाला एक किताब का दिया है। किताब में छपी जानकारी सही है या गलत इसकी पुष्टि नहीं की जा सकती। फिर भी उन्होंने इसका इस्तेमाल कर जिस तरीके से हिंदुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाई है उसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। ऐसे शिक्षक को यूनिवर्सिटी में रहने का कोई अधिकार नहीं है, लिहाजा उन्हें बर्खास्त किया जाना चाहिए।

यूनिवर्सिटी प्रशासन ने कार्रवाई का भरोसा दिया

दूसरी तरफ लखनऊ यूनिवर्सिटी प्रशासन ने छात्रों को भरोसा दिया है कि पूरे मामले की जांच कर प्रोफेसर के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

छात्र की शिकायत पर प्रोफेसर के खिलाफ केस दर्ज

इस बीच प्रोफेसर रविकांत की विवादित टिप्पणी से नाराज एक छात्र अमन दुबे की शिकायत पर लखनऊ के हसनगंज थाने में धारा 153 A, 504, 505 (2) और आईटी ऐक्ट की धारा 166 के तहत मुकदमा दर्ज किया है। इस मामले में प्रोफेसर रविकांत की ओर से मुकदमा दर्ज किया गया है।

जानें, प्रोफेसर ने क्या कहा?

लखनऊ यूनिवर्सिटी हिंदी विभाग में दलित मामलों के जानकार प्रोफेसर रविकांत का कहना है कि वे एक दलित हैं इसलिए उनके साथ ऐसा किया जा रहा है। उन्होंने केवल एक किताब में लिखी बात का जिक्र किया है। प्रोफेसर ने पट्टाभि सीतारमैया की उस किताब के पेज की फोटो भी ट्वीट की है जिसमें ये पूरी बात लिखी है।

"फेदर्स एंड स्टोन्स" किताब के हवाले से रविकांत का बयान

लेखक पट्टाभि सीतारमैया की किताब "फेदर्स एंड स्टोन्स" के मुताबिक एक बार औरंगज़ेब बनारस के करीब से गुज़र रहा था… सभी हिंदू दरबारी अपने परिवार के साथ गंगा स्नान और विश्वनाथ दर्शन के लिए काशी आये। विश्वनाथ दर्शन कर जब लोग बाहर आए तो पता चला कि कच्छ के राजा की एक रानी ग़ायब हैं… खोज की गई तो मंदिर के नीचे तहखाने में वस्त्राभूषण विहीन, भय से त्रस्त रानी दिखाई पड़ी। जब औरंगज़ेब को पंडों की ये काली करतूत पता चली तो वे बहुत क्रुद्ध हुआ और बोला कि जहां मंदिर के गर्भ गृह के नीचे इस प्रकार की डकैती और बलात्कार हो, वो निस्संदेह ईश्वर का घर नहीं हो सकता। उसने मंदिर को तुरंत ध्वस्त करने का आदेश जारी कर दिया।

विश्वनाथ मंदिर तोड़े जाने के औरंगजेब के आदेश का तत्काल पालन हुआ, लेकिन जब ये बात कच्छ की रानी ने सुनी तो उन्होंने शहंशाह से कहलवा भेजा कि इसमें मंदिर का क्या दोष है, दोषी तो वहां के पंडे हैं। रानी ने इच्छा प्रकट की कि मंदिर को दोबारा बनवा दिया जाए लेकिन औरंगजेब के लिए अपने धार्मिक विश्वास के कारण फिर से नया मंदिर बनवाना संभव नहीं था। इसका जिक्र उसने अपने 'बनारस फरमान में भी किया है'। इसलिए उसने मंदिर की जगह मस्जिद खड़ी करके रानी की इच्छा पूरी की।

प्रोफेसर रविकांत कहते हैं कि किताब का और सीतारमैया का नाम हटा कर छोटी सी क्लिप डाल के वीडियो को चलाया गया। मेरे खिफाल दुष्प्रचार किया गया क्योंकि मैं दलित समुदाय से आता हूं, लिखता-पढ़ता और बोलता हूं। मुझे लगता है कि मैं इनके निशाने पर पहले से ही था। इसके बावजूद रविकांत कहते हैं कि अगर किसी की भावनाएं आहत हुई हैं तो मैं खेद प्रकट करता हूं।

यूनिवर्सिटी प्रशासन के रवैये को लेकर प्रोफेसर रविकांत का कहना है कि पहले उन्होंने कहा कि मामला ख़त्म हो गया है, फिर मैं घर पर आ गया और मेरे ख़िलाफ एफ़आईआर हो गई। इसका मतलब है कि वे लोग मिले हुए हैं। प्रशासन में भी संघ और भाजपा की विचारधारा के लोग मिले हैं। उसमें कुछ एक दो टीचर्स ने टीचर्स एसोसिएशन के ग्रुप पर अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया। यहां के सवर्ण आरएसएस से जुड़े लोगों ने व्यक्तिगत टिप्पणी भी की। प्रोफेसर रविकांत पूरी घटना को अपनी अभिव्यक्ति की आजादी का हनन और जान से मारने की कोशिश कहते हैं।

छात्रों का आरोप क्या है?

एबीवीपी के छात्रों का आरोप है कि रविकांत चंदन ने काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर आपत्तिजनक टिप्पण की है। जिसके लिए उन्हें सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी चाहिए। यूनिवर्सिटी प्रशासन को उनके खिलाफ करवाई करनी चाहिए। प्रोफेसर रविकांत चन्दन कम्युनिस्ट मानसिकता से ग्रस्त हैं। लगातार अपने पद का इस्तेमाल करते हुए हमारी हिंदू सभ्यता और रीति रिवाज पर टिप्पणी कर रहे हैं। मंगलवार को ही उन्होंने हमारे सबसे पवित्र स्थान काशी विश्वनाथ मंदिर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। यह कैसी मानसिकता है, जो समाज को बांट रही है? यह कैसे लोग हैं जो लगातार विश्वविद्यालय में ऐसा माहौल खड़ा कर रहे हैं? प्रोफ़ेसर रविकांत की दलील है कि उन्होंने एक लेखक की किताब में छपी कहानी को दोहराया है, उसके बारे में अंकित शुक्ल का कहना है कि कि बिना तथ्यों की जानकारी के मुझे नहीं लगता है की ऐसे सामाजिक मुद्दे को सार्वजनिक तौर पर रखना चाहिए था।

वहीं देश के ग़द्दारों वाले नारे के बारे में एबीवीपी के केंद्रीय कार्यसमिति के सदस्य अंकित शुक्ल का कहना है कि यह विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं के नारे नहीं हैं। नारे किसने लगाए हम लोग पता कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि एबीवीपी ने केवल इतना कहा की प्रोफेसर माफ़ी मांगें। यह अभद्र नारा विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं का नहीं था जिन लोगों ने यह नारे लगाए उन्हें चिह्नित करना चाहिए।

इन पहलुओं को देखकर ऐसा लगता है कि कहीं एबीवीपी ने प्रोफेसर रविकांत को इसलिए निशाना तो नहीं बनाया की वो दलित बिरादरी के हैं? इसके जवाब में अंकित शुक्ल कहते हैं। उनका कहना है कि प्रोफेसर के बयान का विरोध करने वाले छात्रों में दलित बिरादरी के भी थे। वर्मा भी थे। ब्राह्मण भी थे और क्षत्रिय भी थे। प्रोफेसर रविकांत ने जिन आठ लोगों के खिलाफ एफआईआर कराई है, उसमें वर्मा भी हैं। दलित और अम्बेडकरवाद की आड़ में हम समाज में गलत चीजों को नहीं रख सकते हैं। यूनिवर्सिटी के पीआरओ डॉक्टर दुर्गेश श्रीवास्तव का कहना है कि छात्रों की शिकायत को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन ने डॉ रविकांत से स्पष्टीकरण मांगा है। छात्रों ने लिखित में यूनिवर्सिटी को शिकायत सौंपी थी। शिकायत किसी संगठन की नहीं बल्कि छात्रों की है।

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