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महामहिम की महिमा: लेखक, पत्रकार और शिक्षक सड़ रहे जेल में और अर्णब जैसे मना रहे विजय जुलूस

Janjwar Desk
12 Nov 2020 3:46 PM GMT
महामहिम की महिमा: लेखक, पत्रकार और शिक्षक सड़ रहे जेल में और अर्णब जैसे मना रहे विजय जुलूस
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अर्णब की त्वरित रिहाई के साथ ही इस बात की भी चर्चा होनी शुरु हो गई है कि कथित नक्सली संबंधों को लेकर जेल की सलाखों के भीतर बंद लेखक, पत्रकारों, शिक्षकों आदि पर अर्णब की तरह सुनवाई क्यों नहीं हो रही है....

नई दिल्ली। साल 2018 के एक इंटीरियर डिजाइनर और उनकी मां के सुसाइड के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को सुनवाई करते हुए रिपब्लिक टीवी के एडिटर इन चीफ अर्णब गोस्वामी को अंतरिम जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया। उनके साथ ही इस मामले के सह-आरोपियों को भी रिहा किया गया। कोर्ट ने पचास हजार रूपये के बॉन्ड पर अर्णब को अंतरिम जमानत दी है।

अर्णब की रिहाई के एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने तत्काल उनकी याचिका पर सुनवाई करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट को पत्र लिखा था। दवे ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि अर्णब के मामले में इतनी मेहरबानी क्यों हो रही है? दवे ने पत्र में आपत्ति जताते हुए कहा था कि अर्णब की याचिका दो दायर होते ही लिस्ट हो गई लेकिन ऐसे ही कुछ मामलों में इस तरह की त्वरित कार्रवाई नहीं हुई थी।

दवे ने पत्र में आपत्ति जताते हुए कहा था कि अर्णब की याचिका दो दायर होते ही लिस्ट हो गई लेकिन ऐसे ही कुछ मामलों में इस तरह की त्वरित कार्रवाई नहीं हुई थी। उन्होंने रजिस्ट्री के महासचिव से यह भी पूछा कि क्या अर्णब गोस्वामी की याचिका पर तुरंत सुनवाई को लेकर सीजेआई जस्टिस एस.ए. बोबड़े ने तो विशेष निर्देष नहीं दे रखे हैं? उन्होंने अपने पत्र में पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी.चिदंबरम के महीनों जेल में रहने का भी हवाला दिया।

वहीं अर्णब की रिहाई के साथ ही सोशल मीडिया पर इस बात की भी चर्चा होनी शुरु हो गई है कि भीमा कोरेगांव हिंसा और कथित नक्सली संबंधों को लेकर जेल की सलाखों के भीतर बंद लेखक, पत्रकारों, शिक्षकों आदि पर अर्णब की तरह सुनवाई क्यों नहीं हो रही है।

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जेल में बंद हैं अभी ये जानी-मानी हस्तियां-

सुधा भारद्वाज : छत्तीसगढ़ में कार्यरत ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता व वकील। छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा (मजदूर कार्यकर्ता समिति) के साथ जुड़ी हुई। पीयूसीएल की राष्ट्रीय सचिव और अखिल भारतीय जन वकील संगठन की उपाध्यक्ष, गिरफ्तारी -28 अगस्त 2018

वरावर राव : हैदराबाद में रहने वाले कवि और रिटायर्ड कॉलेज शिक्षक। स्रुजुना नाम साहित्यिक पत्रिका के पूर्व संपादक एवं विरासम (क्रांतिकारी लेखक संघ) के एक संस्थापक। माओवाद विचारक। कई बार गिरफ्तार किए लेकिन हमेशा बरी हुए हैं। गिरफ्तारी 28 अगस्त 2018

आनंद तेलतुंबड़े : जाने-माने दलित लेक और शोधकर्ता। इंजीनियर एवं इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (अहमदाबाद) से स्नातक। आईआईटी (खड़गपुर) के पूर्व शिक्षक और वर्तमान में गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट में वरिष्ठ प्रोफेसर। गिरफ्तारी-14 अप्रैल 2018

सुरेंद्र गाडलिंग : नागपुर में रहने वाले प्रसिद्ध दलित एक्टिविस्ट और वकील। अखिल भारतीय जन वकील संगठन के महासचिव, जीएन साईबाबा, सुधीर धावले, अरूण फरेरा और वर्नोन गोंसाल्वेस के पक्ष में केस लड़े हैं। गिरफ्तारी 6 जून 2018

सुधीर धावले : मुंबई में रहने वाले लेखक और जाति विरोधी एक्टिविस्ट। विद्रोही पत्रिका का संपादन। रिपब्लिक पैंथर्स पार्टी के सदस्य। 2011 में गिरफ्तार हुए थे और चार साल बाद बरी हो गए थे। गिरफ्तारी-6 जून 2018

महेश राउत : गढ़चिरौली में रहने वाले आदिवासी अधिकारों पर संघर्षरत एक्टिविस्ट। भारत जन आंदोलन से जुड़े हुए। टीआईएसएस मुंबई से पढ़ाई की और गढ़चिरौली में प्रधानमंत्री ग्रामीण विकास फेलो के रूप में काम किया। विस्थापन के विरुद्ध संघर्षरत मंच, विस्थापन विरोधी जन विकास आंदोलन के सह संयोजक। गिरफ्तारी- 6 जून 2018

रोना विल्सन : दिल्ली में रहते हैं। राजनीतिक कैदियों के मुद्दे पर संघर्षरत। कमिटी फॉर रिलीज पॉलिटीकल प्रिजनर्स के जनसंपर्क सचिव जीएन साईंबाबा की रिहाई के लिए काम किया और यूएपीए व एनएसए जैसे दमनकारी कानूनों के विरुद्ध संघर्षत। गिरफ्तारी-6 जून 2018

शोमा सेन : नागपुर में रहने वाली एक प्रसिद्ध शैक्षिक एव दलित और महिला अधिारों पर संगर्षत एक्टिविस्ट। नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष थी। वे कमिटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स में सक्रिय रूप से जुड़ी थी। गिरफ्तारी- 6 जून 2018

शोमा सेन : नागपुर में रहने वाली एक प्रसिद्ध शैक्षिक एव दलित और महिला अधिारों पर संगर्षत एक्टिविस्ट। नागपुर विश्वविद्यालय में अंग्रेजी विभाग की अध्यक्ष थी। वे कमिटी फॉर द प्रोटेक्शन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स में सक्रिय रूप से जुड़ी थी। गिरफ्तारी- 6 जून 2018

अरूण फरेरा : ठाणे में रहने वाले लेखक, कार्टूनिस्ट और वकील। वे 2007 में गिरफ्तार हुए थे और तबसे बरी होते ही तुरंत फिर से गिरफ्तार किए गए। लगभग पांच साल जेल में ते और फिर सभी मामलों में बरी हुए। उन्होंने जेल के अनुभव पर एक जेल डायरी लिखा जो 'कलर्स ऑफ द केज' के नाम से छपी है। गिरफ्तारी- अगस्त 2018

वर्नोन गोंसाल्वेस : चंद्रपुर, महाराष्ट्र के रहने वाले एक लेखक, अनुवादक और असंगठित मजदूरों के पूर्व ट्रेड यूनियन कार्यकर्ता। मुंबई विश्वविद्यालय से कॉमर्स में गोल्ड मैडल प्राप्त छात्र। कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ ट्रेड यूनियन से जुड़ गए। 2013 में 18 मामलों में बरी होने से पहले लगभग 6 साल जेल में गुजारा। एक मामले में दोषी पाए गए थे जिसके विरुद्ध बॉम्बे हाईकोर्ट में अपील की गयी है एवं एक अन्य मामले में गुजरात हाईकोर्ट में डिस्चार्ज आवेदन लंबित है। गिरप्तारी- 28 अगस्त 2018

हनी बाबु : दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर। वे भाषाविद हैं एवं जाति और भाषाओं पर शोधकर्ता हैं। वे आरक्षण के पक्ष और विश्वविद्यालय में अन्य सामाजिक न्याय आंदोलनों से सक्रिय रूप से जुड़े रहे हैं। गिरफ्तारी-28 जुलाई 2020

रमेश गाईचोर, सागर गोरखे और ज्योति जगताप: ये सभी कबीर कला मंच से जुड़े कवि और गायक हैं। कबीर कला मंच पुणे का एक दलित और मार्क्सवादी विचारधारा आधारित संगठन है। 2013 में भी रमेश और सागर गिरफ्तार हुए थे और तीन सालों तक जेल में रहे थे। फिर सुप्रीम कोर्ट से उन्हें जमानत मिली थी। गिरफ्तारी- रमेश गाईचोर और सागर गोरखे-8 सितंबर 2020 को गिरफ्तार हुए और ज्योति जगताप 9 सितंबर 2020

स्टैन स्वामी : स्टैन झारखंड के एक जाने-माने सामाजिक कार्यकर्ता हैं. वे चार दशकों से राज्य के आदिवासी व अन्य वंचित समूहों के अधिकारों के लिए संघर्षरत रहे हैं। उन्होंने विशेष रूप से विस्थापन, संसाधनों की कंपनियों द्वारा लूट, विचारधीन कैदियों व पेसा कानून पर काम किया है। स्टैन ने समय पर भाजपा सरकार की भूमि अधिग्रहण कानूनों में संशोधन करने के प्रयासों की आलोचना की है। साथ ही, वे वन अधिकार अधिनियम, पेसा व संबंधित कानूनों के समर्थक हैं। गिरफ्तारी- 8 अक्टूबर 2020

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