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71 हजार इंजीनियरिंग की सीटों में से 27 हजार पर नहीं ले रहा कोई छात्र एडमिशन
देश भर में विकास का डंका पीटने वाले प्रधानमंत्री मोदी के गृहराज्य गुजरात में उच्च शिक्षा हासिल करने वाले युवाओं की बेकारी का आंकड़ा हतप्रभ कर देने वाला है। आॅल इंडिया कॉउंसिल फॉर टेक्नीकल एजुकेशन 'एआइसीटीई' के अनुसार गुजरात में इंजीनियरिंग पढ़ने वाले 80 प्रतिशत छात्र नौकरी पाने से वंचित रहे जाते हैं, सिर्फ 20 फीसदी छात्रों को ही नौकरी मिल पाती है।
टाइम्स आॅफ इंडिया में छपी हरिता दवे की रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात में इंजीनियरिंग पढ़ रहे छात्रों में सबसे बुरा हाल सिविल इंजीनियरों के प्लेसमेंट का है। इनका सिर्फ 5 फीसदी ही प्लेसमेंट हो पाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह हालत इसलिए है कि पढ़ाई, कार्स और काम में बहुत फर्क है।
एआइसीटीई के 2015—2016 के आंकड़ों के अनुसार कम्प्यूटर साइंस में 11 हजार 190 छात्र पास हुए लेकिन 3 हजार 407 को केवल काम मिला। उसी तरह मैकेनिकल इंजीनियरिंग में 17 हजार 28 छात्र उत्तीर्ण हुए और 4 हजार 524 को नौकरी मिल पाई।
एआइसीटीई के 2015—2016 के आंकड़ों के अनुसार कम्प्यूटर साइंस में 11 हजार 190 छात्र पास हुए लेकिन 3 हजार 407 को केवल काम मिला। उसी तरह मैकेनिकल इंजीनियरिंग में 17 हजार 28 छात्र उत्तीर्ण हुए और 4 हजार 524 को नौकरी मिल पाई।
डिग्री लेकर कैंपस से बाहर निकलने वाले ज्यादातर छात्रों को पता ही नहीं कि उनकी डिग्री का असल मतलब क्या है? गुजरात चैंबर आॅफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष विपिन पटेल छात्रों की बेकारी के लिए सरकार को दोषी ठहराते हैं। उनका कहना है कि सरकार रिटायर्ड अधिकारियों को 15 लाख देकर नौकरियों पर रख रही है, लेकिन युवा डिग्रीधारी युवा बेकारी फांक रहे हैं।'
इस आंकड़े पर संदेह उठाने वालों का कहना है कि छात्रों को रोजगार केवल कैंपस में ही नहीं मिलता बल्कि वह बाहर भी रोजगार करते हैं और कुछ नौकरियां नहीं करते। लेकिन एआइसीटीई इन आंकड़ों को अपने स्रोत में शामिल नहीं करती है, जिससे बेकारी की भयावहता बड़ी दिखती है।
Janjwar Team
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