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आंदोलन

पेशाब-पाखाना जाने पर जाती है नौकरी, यूनियन बनाने की कोशिश हुई तो भेज दिया जेल

Janjwar Team
13 Jun 2017 7:06 AM GMT
पेशाब-पाखाना जाने पर  जाती है नौकरी, यूनियन बनाने की कोशिश हुई तो भेज दिया जेल
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मजदूरों के यूनियन बनाने के बुनियादी हक़ के संघर्ष को विफल बनाने में पुलिस और न्यायपालिका भी अपना पूरा योगदान दे रही है...

आइसीन ऑटोमोटिव हरियाणा प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में पिछले कुछ महीनों से मजदूर अपनी यूनियन पंजीकृत करवाने के लिए और मैनेजमेंट से अपने काम की परिस्थितियों से सम्बंधित मांगों को लेकर संघर्षरत हैं. 31 मई 2017 को कंपनी के गेट पर बीते कई दिनों से शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे मज़दूरों पर पुलिस ने मैनेजमेंट की शिकायत पर पहले लाठीचार्ज किया और फिर उन्हें हिरासत में ले लिया. इन सभी के ख़िलाफ़ रोहतक के संपला थाने में एफ़आईआर दर्ज की गई है, जिनमें यूनियन लीडरों को मुख्य आरोपी नामित किया गया है.

आइसीन ऑटोमोटिव हरियाणा प्राइवेट लिमिटेड एक जापानी कम्पनी है, जो 2011 से आई.एम.टी. रोहतक में स्थित अपनी फैक्ट्री में टोयोटा, मारुती, होण्डा आदि नामी गाड़ी बनाने वाली कंपनियों के लिए 'डोर लॉक' एवं 'इनसाइड-आउटसाइड हैंडल' जैसे पार्ट्स बनाती है. इस फैक्ट्री में करीब 450 मज़दूर काम करते हैं. इन्हें 8000—10000 रुपए मासिक वेतन मिलता है.

आइसीन ऑटोमोटिव हरियाणा मज़दूर यूनियन के अनुसार, काम के दौरान मजदूरों को पानी व पेशाब के लिए मना किया जाता है, उनके साथ गाली—गलौज की जाती है और महिला मज़दूरों के साथ भी दुर्व्यवहार किया जाता है.

कम वेतन और काम की बुरी परिस्थितियों के चलते मज़दूरों ने फैसला किया कि वे अपनी यूनियन को पंजीकृत करेंगे और अपनी मांगों को मैनेजमेंट के सामने रखेंगे. 20 मार्च 2017 को उन्होंने यूनियन के पंजीकरण के लिए श्रम विभाग में अर्जी दी. 26 मार्च को मजदूरों ने अपना मांगपत्र कंपनी को दिया. पर न तो कंपनी मैनेजमेंट और न ही प्रशासन की तरफ से मजदूरों की कोई खबर ली गई या सुनवाई की गई.

उल्टा 25 अप्रैल को कंपनी ने रोहतक सिविल कोर्ट में मुकदमा दाखिल कर दिया और यूनियन लीडरों और सदस्यों को फैक्ट्री गेट के अन्दर आने से रोकने और फैक्ट्री परिसर के 1000 मीटर तक कोई धरना या शामियाना लगाने से रोकने के निर्देश मांगे.

26 अप्रैल को सिविल जज ने अंतरिम आदेश दिए की फैक्ट्री परिसर के अन्दर और फैक्ट्री गेट से 400 मीटर दूरी तक मजदूर धरने पर भी नहीं बैठ सकते. 3 मई को कंपनी ने मोर्चे की अगुवाई कर रहे 20 मज़दूरों को काम से निकाल दिया. बाकि मज़दूरों ने जब इसका विरोध किया तो कंपनी ने उन्हें एक "अंडरटेकिंग" थमा दी और यह शर्त रख दी कि इस पर हस्ताक्षर करके ही वे काम पर वापस आ सकते हैं. कंपनी के मनमाने बर्ताव के विरोध में मज़दूर 3 मई से कंपनी के गेट के बाहर बैठकर शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे हैं .

इस बीच 12 मई को मजदूरों की यूनियन पंजीकरण की अर्जी खारिज हो गई. यूनियन लीडरों का कहना है कि अर्जी को बेबुनियाद कारणों से खारिज किया गया है. जहां कारण बताया गया है कि यूनियन के चार सदस्य कानूनी परिभाषा में अनुसार “मजदूर” नहीं हैं, वहां लीडरों का कहना है की ये बात उनके वेतन रसीद से झूठ साबित होती है. जहाँ कारण बताया गया है कि यूनियन के कुल सदस्य कंपनी के कुल मजदूर संख्या के 10 प्रतिशत से भी कम है, वहां लीडरों का कहना है की कंपनी ने यह संख्या षड्यंत्र के तहत बढ़ाकर बताई है.

30 मई को चल रहे सिविल मुक़दमे में जज ने एक और निर्देश दिया की यूनियन के सदस्य फैक्ट्री परिसर में न तो घुसेंगे, न उसके 200 मीटर के दायरे में कोई धरना करेंगे, न नारे लगाएंगे, न घेराव करेंगे, न रास्ता रोकेंगे. कंपनी द्वारा दिए गए तथ्यों जैसे मजदूरों द्वारा फैक्ट्री संपत्ति को नुक्सान पहुँचाया गया और उत्पादन धीमा किया गया, की पड़ताल किये बिना और संविधान के अनुच्छेद 19 में दिए गए शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने के बुनियादी हकों को नकारते हुए फैसला कंपनी के पक्ष में सुना दिया गया.

31 मई को सुबह से ही मज़दूर अपने परिजनों के साथ अपनी अनसुनी मांगों को उठाने हेतु फैक्ट्री के बाहर धरने पर बैठे थे. मैनेजमेंट की शिकायत पर हरियाणा पुलिस वहां एकत्रित हो गई, प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया, उन्हें हिरासत में ले लिया और उन पर सांपला थाने में मुकदमा दर्ज़ कर दिया. एफ़.आई.आर. के अनुसार मज़दूरों पर आरोप है कि वे गैरकानूनी रूप से खतरनाक हथियार (यानी झंडे) लेकर एकत्रित हुए, रास्ता रोका, कंपनी के गेट को जाम कर दिया, कंपनी के स्टाफ को धमकी दी और चोट पहुंचाई. 425 लोगों को, जिनमें मजदूर, उनके परिजन और कुछ कार्यकर्ता भी शामिल थे, रोहतक के सुनारियन जेल में बंद कर दिया और मजिस्ट्रेट को अर्जी देने पर ही 6 जून तक सभी को बेल पर छोड़ा गया.

मज़दूरों के काम की परिस्थितियों से सम्बंधित मांगों को लेकर कंपनी प्रबंधन और श्रम विभाग की उदासीनता उनके रवैये से स्पष्ट है. मजदूरों के यूनियन बनाने के बुनियादी हक़ के संघर्ष को विफल बनाने में पुलिस और न्यायपालिका भी अपना पूरा योगदान दे रही है . एक तरफ मज़दूरों को संगठित होने से रोकने के लिए प्रबंधन ने 20 मज़दूरों को सीधा निष्कासित कर दिया और बाकियों से अंडरटेकिंग देने की शर्त रख दी। उनकी मांगों के बारे में कोई पहल न कर गेट पर बाउन्सरों को तैनात किया गया. सिविल कोर्ट में यूनियन के सदस्यों को बाहर निकालने के लिए मुकदमा कर दिया और फिर 31 मई को उनके खिलाफ पुलिस में शिकायत भी दर्ज कराई.

दूसरी तरफ प्रशासन, ख़ास तौर से श्रम विभाग की तरफ से मज़दूरों की मांगों के लिए प्रबंधन पर कोई दबाव नहीं बनाया गया है. प्रबंधन का मनोबल बढाते हुए पुलिस ने मजदूरों पर लाठीचार्ज किया, उन पर मुकदमा दर्ज किया और कई दिनों तक गिरफ्तार करके रखा. साथ ही सिविल कोर्ट ने मजदूरों को फैक्ट्री के आसपास प्रदर्शन करने से भी रोक दिया है.

हरियाणा में आईसीन, होण्डा, मारुती, ओमाक्स आदि कंपनियों के संघर्षों से स्पष्ट पता चलता है की आज भी मजदूरों के लिए संविधान के अनुच्छेद 19 में दिए गए संगठित होने के मूलभूत अधिकार को हासिल करना कितना मुश्किल है.

पीपल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स (पीयूडीआर) ने संघर्षरत मज़दूरों के खिलाफ दर्ज मुक़दमे एवं गिरफ्तारी की निंदा करते हुए मांग है मजदूरों पर दर्ज झूठे मुकदमे वापस लिए जाएँ. मजदूरों की यूनियन को तुरंत पंजीकृत किया जाये। साथ ही श्रम विभाग मैनेजमेंट से मजदूरों की मांगें मनवाने के लिए उचित कार्यवाही करे.

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