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विमर्श

मनीष सिसौदिया ने केजरीवाल को क्यों भेजा इस्तीफा!

Janjwar Team
10 Jun 2017 10:37 PM GMT
मनीष सिसौदिया ने केजरीवाल को क्यों भेजा इस्तीफा!
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साप्ताहिक अखबार 'संडे पोस्ट' के संपादक अपूर्व जोशी ने अपने संपादकीय में किया दावा कि तत्कालीन राज्यपाल नजीब जंगी की सलाह से मनीष सिसौदिया को केजरीवाल ने बनाया था मुख्यमंत्री। अखबार का दावा कि कुमार विश्वास ठेले गए हाशिए पर, मनीष सिसौदिया की जगह केजरीवाल सत्येंद्र जैन को दे रहे तरजीह

पढ़िए इस पटकथा के पीछे की कहानी, संडे पोस्ट के संपादक अपूर्व जोशी के शब्दों में। संपादक की बयान की गई यह राजनीतिक किस्सागोई अपने तथ्यों के साथ बहुत साफ है और पढ़ते हुए स्पष्ट हो जाता है कि आम आदमी पार्टी में वर्चस्व और नेतृत्व को लेकर टकराहटों का दूसरा फेज शुरू हो गया है।

अपूर्व जोशी
संपादक संडे पोस्ट


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डिया अगेंस्ट करप्शन' की त्रिमूर्ति के आपसी संबंध राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ने की खबर है। कवि कुमार विश्वास तो पहले से ही हाशिए पर डाल दिए गए थे। अब मुख्यमंत्री केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री सिसोदिया के संबंध भी बिगड़ने लगे हैं। कुछ समय पूर्व सिसोदिया ने अपना त्यागपत्र तक सीएम को भेज दिया था। पार्टी सूत्र कहते हैं कि सिसोदिया की बढ़ती लोकप्रियता से खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे केजरीवाल इन दिनों सत्येंद्र जैन पर ज्यादा भरोसा करने लगे हैं।

भारतीय राजनीति के परिदृश्य में आम आदमी पार्टी का जन्म एक ऐसे समय में हुआ जब स्थापित राजनेताओं और राजनीतिक दलों पर से आमजन का भरोसा उठ चुका था। समाजसेवी अन्ना हजारे के नेतृत्व में शुरू हुआ आंदोलन तत्कालीन यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार पर चुनिंदा युवाओं का ऐसा प्रहार था जिसकी गूंज पूरे देश में सुनी गई। यकीनन्‌ इस आंदोलन का चेहरा महाराष्ट्र के वयोवृद्ध आंदोलनकारी नेता अन्ना का था लेकिन दिमाग इन्हीं चुनिंदा युवाओं का था।
'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' के नारे से शुरू हुए इस आंदोलन की एक सूत्रीय मांग एक जनलोकपाल कानून की थी] जिसके माध्यम से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके। टीम अन्ना के नाम से चर्चा में आए इन युवाओं में मुख्य रूप से आरटीआई कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल] मनीष सिसोदिया और कुमार विश्वास थे। आंदोलन के विस्तार ने योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को इससे जोड़ा। बाद में मेधा पाटकर, संतोष हेगड़े , संजय सिंह, आशुतोष आदि इनसे जुड़ते गए। आंदोलन की अप्रत्याशित सफलता के दौरान ही टीम अन्ना के मध्य आपसी विवाद की खबरें सामने आने लगी थीं।

न्ना हजारे इस आंदोलन को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक मुहिम के रूप में जारी रखना चाहते थे जबकि उनकी कोर टीम की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जागने लगी थी। नतीजा उन्नीस सितंबर २०१२ के दिन अन्ना और उनके चेलों के बीच चल रहा शीतयुद्ध अलगाव का कारण बन गया। दोनों ने स्वीकारा कि राजनीतिक दल बनाने के मुद्दे पर उनके मतभेद हैं। अरविंद केजरीवाल ने दो अक्टूबर २०१२ को राजनीतिक दल बनाने की शुरुआत की। संतोष हेगड़े और किरण बेदी ने उनके निर्णय का विरोध किया जबकि सिसोदिया और विश्वास अरविंद के साथ रहे।
नीष सिसोदिया केजरीवाल संग २००५ के अंत से ही जुड़ गए थे। 'कबीर' नाम के एनजीओ के संस्थापक मनीष पत्रकारिता से भी जुड़े रहे। २००६ में सूचना के अधिकार कानून का मसौदा तैयार करने वालों में वे शामिल रहे। २००६ में केजरीवाल और सिसोदिया ने पब्लिक कॉज रिसर्च फाउंडेशन बनाया। सिसोदिया के पुराने मित्र रहे कुमार विश्वास को अन्ना आंदोलन से जोड़ने में मुख्य भूमिका सिसोदिया की ही रही। कुमार विश्वास पेशे से अध्यापक और हिंदी कविता का जाना-पहचाना नाम हैं।
न्ना आंदोलन के दौरान इन तीनों की जुगलबंदी देखते बनती थी। जब कभी अन्ना हजारे संग अरविंद का विवाद होता तो विश्वास मध्यस्थ की भूमिका में नजर आया करते थे। योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण संग केजरीवाल के संबंध खराब होने के दौरान कुमार विश्वास ही आपसी सुलह का प्रयास करते देखे गए थे। इस त्रिमूर्ति में आपसी टकराहट के संकेत बहुत अर्से से सामने आने लगे थे। केजरीवाल और विश्वास के बीच खटपट दिल्ली में आम आदमी पार्टी की पहली सरकार के दौरान ही देखने को मिली थी। केजरीवाल के कई पुराने साथियों ने पार्टी में बढ़ते अधिनायकवाद और केजरीवाल के इर्द-गिर्द एक चौकड़ी के विरोध में अपना इस्तीफा दे दिया। इस पूरे दौर में विश्वास के भी हाशिए में चले जाने और पार्टी छोड़ने की अफवाहें फिजा में तैरती रही हैं। लेकिन मनीष सिसोदिया केजरीवाल के विश्वस्त सहयोगी बने रहे।

जानकारों की मानें तो उपराज्यपाल नजीब जंग की सलाह पर अरविंद केजरीवाल ने मनीष सिसोदिया को उपमुख्यमंत्री बनाने का निर्णय लिया था। मनीष सिसोदिया के पास वित्त] नियोजन] राजस्व शिक्षा समेत कई महत्वपूर्ण विभाग भी होना उनके और मुख्यमंत्री के बीच विश्वास को दर्शाता है। लेकिन अब खबर है कि दोनों के मध्य भी खटपट होने लगी है। 'दि संडे पोस्ट' को विश्वस्त सूत्रों के हवाले से जानकारी मिली है कि दोनों के रिश्ते कुछ समय पूर्व इतने तनावपूर्ण हो चले थे कि केजरीवाल को मध्यस्थों का सहारा लेना पड़ रहा है। जानकारी के अनुसार दिल्ली में अतिथि शिक्षकों के वेतन मुद्दों से उठा सवाल पिछले दिनों एक बड़े संकट का कारण बन गया। सरकारी फाइल पर मुख्यमंत्री की कठोर टिप्पणी से आहत हो सिसोदिया ने अपना त्यागपत्र मुख्यमंत्री के पास भेज दिया।
ताया जाता है कि दिल्ली के उपमुख्यमंत्री इतने नाराज थे कि उन्होंने अपना त्यागपत्र भेजने के साथ ही अपने कार्यालय को छोड़ दिया। वे अपनी निजी कार में बैठ घर चले गए। सिसोदिया का त्यागपत्र केजरीवाल के लिए एक बड़ा झटका था। दोनों के बीच संबंधों में आई खटास का दूसरा संकेत तब मिला जब स्वयं बात न करके केजरीवाल ने पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह और आशुतोष को मनीष के घर सुलह-सफाई के लिए भेजा। हालांकि मामला आपसी समझ से हल हो गया लेकिन जैसा रहीम दास कह गए 'रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय। टूटे से फिर न जुड़े, जुड़े गांठ परि जाए।'
दोनों के बीच अब रिश्ते पहले से मजबूत नहीं रह गए, बताए जा रहे हैं। पार्टी सूत्रों की मानें तो इसके पीछे एक बड़ी वजह केजरीवाल के भीतर जमी असुरक्षा की वह भावना है जो अपने समक्ष किसी भी बड़े नेता को नहीं सह पाती। दिल्ली सरकार का कामकाज पूरी तरह देख रहे सिसोदिया ने जनता के समक्ष एक काम करने वाले नेता की छवि बनाने में सफलता पाई है। शिक्षा के क्षेत्र मे दिल्ली सरकार ने बेहतरीन काम किया है। इतना ही नहीं दिल्ली के राज्यपाल नजीब जंग से भी सिसोदिया के संबंध ठीक रहे। जैसे-जैसे केजरीवाल की महत्वाकांक्षा उन्हें दिल्ली से दूर लेती गई मनीष सिसोदिया का प्रशासन पर प्रभाव बड़ा।
दिल्ली की जनता को भी यह लगने लगा है कि केजरीवाल अब दिल्ली के शासन पर ध्यान न के बराबर देते हैं। मनीष की इसी बढ़ती लोकप्रियता से केजरीवाल असुरक्षित हो चले हैं। जानकारों की मानें तो इसकी काट के तौर पर उन्होंने सत्येंद्र जैन को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है। जब गोपाल राय से परिवहन मंत्रालय हटाया गया तो जैन को उसका प्रभार सौंपा जाना इसी तरफ इशारा करता है।
सी प्रकार यकायक ही जुलाई २०१६ में सिसोदिया से शहरी विकास मंत्रालय हटाकर सत्येंद्र जैन को सौंप दिया गया। पहले से ही जैन के पास स्वास्थ्य] गृह] परिवहन एवं उद्योग जैसे भारी-भरकम मंत्रालय हैं। जाहिर है केजरीवाल मनीष सिसोदिया को अपने विकल्प के तौर पर उभरता देख कहीं न कहीं बेचैन हैं। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता कहते हैं यदि पंजाब में पार्टी को अपेक्षित सफलता नहीं मिली तो केजरीवाल का ध्यान फिर से दिल्ली में केंद्रित हो जाएगा। ऐसे में पार्टी के इन दो शीर्ष नेताओं के बीच टकराव होना निश्चित होगा।
दूसरी तरफ पार्टी के एमएलए अरविंद केजरीवाल की कार्यशैली से खासे नाखुश बताए जा रहे हैं। ऐसी खबरें भी आ रही हैं कि पार्टी के असंतुष्ट एमएलए केजरीवाल की बजाय सिसोदिया संग काम करने में ज्यादा सहज रहते हैं। जाहिर है इन सबके चलते केजरीवाल और सिसोदिया के बीच सत्ता के लिए संद्घर्ष हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो अन्ना आंदोलन के विश्वास की संपदा सहारे खड़ी हुई पार्टी की यह अधोगति निश्चित ही कष्टकारी होगी।

हाशिए में कुमार विश्वास

अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का अग्रणी चेहरा बन उभरे लोकप्रिय कवि डॉ कुमार विश्वास इन दिनों आम आदमी पार्टी में हाशिए का दंश झेलने को विवश हैं। कभी अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के संग इंडिया अगेंस्ट करप्शन की महत्वपूर्ण तिकड़ी का हिस्सा रहे विश्वास की पार्टी प्रमुख केजरीवाल संग खास बनती नहीं। यही कारण है इन दिनों वे पार्टी मंच पर बहुत सक्रिय नजर नहीं आते। हालांकि पार्टी की सबसे महत्वपूर्ण राजनीतिक कार्य समिति के वे सदस्य हैं लेकिन उन्हें न तो पंजाब में स्टार प्रचारक के तौर पर बुलाया गया है] न ही गोवा में उनकी छवि को उपयोग में लाया जा रहा है। जानकारों की मानें तो केजरीवाल विश्वास को विश्वसनीय नहीं मानते। दूसरी तरफ विश्वास समर्थकों का मानना है चूंकि विश्वास केजरीवाल के यसमैन नहीं हो सकते इसलिए उन्हें जानबूझकर किनारे लगाने का काम चल रहा है। २०१८ में दिल्ली से राज्यसभा की तीन सीटें खाली होने जा रही हैं। विधानसभा में प्रचंड बहुमत के कारण तीनों पर भी आप नेताओं का चुना जाना तय है। पहले इन तीनों सीटों के लिए प्रशांत भूषण] योगेंद्र यादव और कुमार विश्वास का नाम लिया जाता था। अब प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव के पार्टी से निष्कासित होने के चलते संजय सिंह और आशुतोष का नाम सामने आने लगा है। तीसरा नाम कुमार विश्वास के बजाय किसी अन्य का हो सकता है। ऐसे में देखना होगा कि कुमार विश्वास क्या कदम उठाते हैं।

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का किसी के साथ लंबा रिश्ता नहीं चला

पहला टकराव 'परिवर्तन' संस्था के अपने सहयोगी अरुणा राय से हुआ। अन्ना हजारे से जुड़ते ही अरुणा से इनका अलगाव हो गया।
राजनीतिक दल बनाने के बाद अन्ना के साथ-साथ किरण बेदी से भी टकराव और अलगाव।
दिल्ली में सरकार गठन के साथ ही अरविंद ने प्रशांत भूषण] आनंद कुमार और योगेंद्र यादव को भी छोड़ दिया जो उनकी पार्टी के संस्थापक सदस्य थे।

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