Begin typing your search above and press return to search.
जनज्वार विशेष

शर्म के मारे बेटे-बहू गांव नहीं आना चाहते

Janjwar Team
1 Jun 2017 10:25 PM GMT
शर्म के मारे बेटे-बहू गांव नहीं आना चाहते
x

घर में दो जून का अन्न न हो और बीमारी ऐसी हो जाये जो स्वास्थ के साथ चरित्र भी ले जाये तो परिवार किस हालत में जीता है, वह रामसखी दूबे जानती हैं।

अजय प्रकाश

रामसखी दूबे जानती हैं कि एचआइवी एड्स रोग से बड़ा अभिशाप है। जानती तो सरकार भी है, इसलिए उपाय का दावा भी करती है। लेकिन गांव की दीवारों पर राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको ) ने जो नारे लिखे हैं उनका असर बहुत कम है। हड़हा के ग्रामीण से बात करने पर जाहिर हो जाता है कि रोगी स्वास्थ्य बाद में गंवाता है, रोग का पता चलते ही उसका चरित्र सरेराह चौक- चौराहों पर उछाला जाने लगता है।

हड़हा गांव की बूढ़ी रामसखी के घर में गरीबी पहले से थी फिर भी वह बेटे-बहुओं के साथ जैसे-तैसे जी रही थीं। संतोष इस बात का भी था कि उनकी यह स्थिति अकेले की नहीं है। रामसखी दूबे का यह गांव उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में है जहां की आबादी का आधा से अधिक हिस्सा आधा पेट खाकर सुबह होने का इंतजार करता है।

उनका परिवार भी ज्यादातर गांव वालों की तरह प्रशासन के सामने हाथ जोड़कर, दो-चार रूपये थमाने वालों के आगे हाथ फैलाकर और मौका आने पर इन्हीं हाथों को नेताओं की जयजयकार में उठा कर, जीये जा रहा था। यानी वे लोग वर्षों से अन्न की कमी और भूख को भुगत रहे थे। मगर जबसे गांव-समाज को पता चला है कि उनके घर में एचआइवी एड्स के रोगी हैं तबसे वे जिंदगी को भुगत रहे हैं। लेकिन देश के ऐसे हजारों परिवारों की पीड़ा को ‘नाको ’ के 1254 मुख्य केंद्र जो अन्य हजारों नियंत्रण उपकेंद्रों को संचालित करते हैं, कम नहीं कर पा रहे हैं।

रामसखी, उसकी बहू उमादेवी और बेटा नंदलाल दूबे कहते हैं, ‘हमें नहीं याद कि ढंग का अन्न खाने को कब मिला था, मगर लोगों की हिकारत-नफरत हमारी रोज की खुराक बन गयी है।’ चित्रकूट जिले के बरगढ़ क्षेत्र के हड़हा में इस परिवार के साथ हिकारत का यह सिलसिला दो साल पहले उस समय शुरू हुआ था जब नंदलाल दूबे की पत्नी उमादेवी अपने दो वर्षीय बेटे अंकित के इलाज के लिए इलाहाबाद गयी थीं। उमादेवी बताती हैं कि, ‘बेटे अंकित के बुखार में मैंने कई हजार रूपये गवां दिये और बेटा मरने की हालत में पहुंच गया तो मैंने डॉक्टर को जान से मारने की ठान ली। तब जाकर डॉक्टर ने जांच की और पता चला कि मेरा बेटा एचआइवी पॉजिटिव है।’

रामसखी के घर में एचआईवी पॉजिटिव उजागर ह¨ने का यह पहला मामला था। इसके बाद अंकित की मां उमादेवी, बाप नंदलाल दूबे और बहन साक्षी भी जांच में पाजीटिव पाये गये। घर के इन रोगियों का ठीक से अभी इलाज भी नहीं शुरू हुआ था उससे पहले ही रामसखी के दूसरे बेटे फूलचंद दूबे, उसकी पत्नी निशा और बेटी अनु भी पाजिटिव पाये गये। डॉक्टरी जांच में एक ही घर के इन सात व्यक्तियों को एड्स रोगी माना गया है।

इसी गांव की 25 वर्षीय युवती गुड़िया कको भी एड्स है। जबकि उसके पति की इसी रोग से पिछले वर्ष मौत हो गयी थी। एक ही गांव में नौ एड्स ररोगियों की वजह से बाजार में इस गांव का नाम पूछने पर लोग इसे ‘एड्स’ वाला गांव कहते हैं। हड़हा से थोड़ी दूर पर चित्रकूट के बरगढ़ क्षेत्र में ही कोनिया गांव है। इस गांव के रामेश्वर प्रसाद मिश्र के दो बेटों जनार्दन प्रसाद मिश्र, सुरेश प्रसाद मिश्र और उनकी बीबियों कि भी आठ साल पहले इसी बीमारी से मौत हो गयी थी। अब घर में 80 वर्षीय रामेश्वर प्रसाद मिश्र के अलावा उनकी पत्नी और दिमागी रूप से विक्षिप्त एक बेटा है।

रामेश्वर प्रसाद मिश्र बताते हैं कि, ‘बेटे मुंबई में रेलवे कैंटीन में काम करते थे। वहां के डॉक्टरों ने बता दिया कि एड्स इतना बढ़ गया है कि अब मरने के इंतजार के सिवा कोई रास्ता नहीं है। फिर तो उसके बाद सुरेश की, फिर जनार्दन की बीवी की और सबसे बाद में सुरेश की बीबी की एक के बाद एक एड्स से मौत हो गयी।’ रामेश्वर प्रसाद की 75 वर्षीय पत्नी कहती हैं, ‘बाकी दो बेटे मुंबई में ही काम करते हैं और घर में हम बुढ़े-बुढ़िया गांव बहिष्कार और लानत-मलानत सहने को मजबूर हैं। शर्म के मारे बेटे-बहू गांव नहीं आना चाहते हैं।’

हालांकि रामसखी का बेटा नंदलाल मुंबई या किसी दूसरे महानगर में नहीं गया था जहां से उसे एड्स का संक्रमण हुआ। वह तो गृहजिले चित्रकूट में गाड़ी चलाने का काम करता था। नंदलाल ने स्वीकार किया कि ‘शादी से पहले एक औरत से शारीरिक संबंध था। लेकिन उसे नहीं पता कि रोग औरत से आया या फिर एक बार टांग टूटने पर खून चढ़ा था उससे। जहां तक घर वालों की बात है तो नंदलाल की बीबी उमादेवी भी पति को ही रोग का सुत्रधार मानती हैं।

उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी के अनुसार लगभग डेढ़ लाख लोगों की काउंसिलिंग हुई है और एक लाख से अधिक लोगों की जांच प्रदेश भर में फैले केन्द्रों पर की गयी है। लेकिन जमीनी हकीकत का पता हड़हा, कोनिया के पीड़ितों से चलता है। एड्स पीड़ित नंदलाल ने बताया कि ‘उसके घर में सात मरीज हैं फिर भी इलाज नहीं शुरू हुआ है। केवल सर्वोदय सेवाश्रम के कार्यकर्ताओं की ओर से ही मदद मिल पाती है।’ सर्वोदय सेवाश्रम के सचिव अभिमन्यु सिंह ने बताया कि, ‘इस क्षेत्र में गरीबी, भुखमरी और सूखा ने लोगों के जीवन को पहले से तबाह कर रखा है, अगर सरकार ने बेहतर प्रयास नहीं किया तो एड्स रोगियों की संख्या में इजाफा होने से रोकना मुश्किल होगा।’

रामसखी जिंदगी से कैसे रोज दो चार हो रही है, परिवार में एड्स होने के बाद गाँव समाज कैसा व्यहार करता है........इन बातों को उसकी जुबानी सुनाने के लिए यहाँ क्लिक करें...

Janjwar Team

Janjwar Team

    Next Story

    विविध