मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म रायबरेली में हुआ था और रायबरेली सोनिया जी का चुनाव क्षेत्र है। कहीं जायसी ने सोनिया जी को राजनीतिक लाभ पहुँचाने के लिये तो "पद्मावत" की रचना नहीं की थी...
प्रवीण मल्होत्रा
कवि मलिक मुहम्मद जायसी (1492 - 1540) पर राज द्रोह का मुकदमा जरूर चलना चाहिये, क्योंकि यदि उनके समय से दो सौ साल पहले (यानी सन 1303 के आसपास) रानी पद्मावती के सौंदर्य पर मोहित होकर दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ के दुर्ग पर आक्रमण किया था और उसके परिणामस्वरूप रानी पद्मावती को 16,000 अन्य स्त्रियों के साथ जौहर करना पड़ा था तो यह सब इतने बरसों बाद कविता के रूप में लिखने की उसे क्या जरूरत थी?
हमारे देश में तो रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों की रचना "आँखों देखी" लिखने का रिवाज रहा है। और एक यह जायसी हैं कि अपने समय से 200 साल पहले की किसी घटना पर, जो हुई भी थी या नहीं इसका कोई प्रमाण नहीं है, पूरा एक महाकाव्य ही लिख मारा!
कवि मलिक मुहम्मद जायसी की इस घोर लापरवाही के कारण आज पांच - साढ़े पांच सौ साल बाद भारत देश में एक बिचारे फ़िल्म निर्माता-निर्देशक की जान पर बन आयी है और उस बिचारी नायिका का क्या दोष है, जिसने पद्मावती की भूमिका निभाई है, कि उसकी नाक पर बन आयी है।
वह बिचारी अपनी नाक बचाने की चिंता में दुबली हो रही है। मेरा तो यह सुझाव है कि दीपिका को अपनी नाक का पूरे 100 करोड़ रुपये का बीमा अवश्य करा लेना चाहिये। पता नहीं कौन सिरफिरा उनकी नाक ही काट कर ले जाये ? तब बिचारे रणवीर सिंह पर न जाने क्या बीतेगी ?
मुझे तो अपने ज्ञान चक्षु से इस पूरे प्रकरण में कांग्रेस पार्टी और सोनिया गांधी का भी कोई न कोई षडयंत्र दिखाई दे रहा है। मलिक मुहम्मद जायसी का जन्म रायबरेली में हुआ था,और यह तो सर्वविदित है कि रायबरेली सोनिया जी का चुनाव क्षेत्र है। कहीं जायसी ने सोनिया जी को राजनीतिक लाभ पहुँचाने के लिये तो "पद्मावत" की रचना नहीं की थी ?
पं. रामचन्द्र शुक्ल जैसे किसी साहित्यिक मनीषी को भी अवश्य इस पर शोध करना चाहिये कि मलिक मुहम्मद जायसी को ठेठ भारतीय राजवाड़े की कहानी पर "पद्मावत" जैसे काव्य की रचना, वह भी एक विदेशी भाषा - फ़ारसी में करने की क्या सूझी कि आज उसकी वजह से पांच सौ साल बाद हमारे देश में इतनी बड़ी समस्या पैदा हो गयी है जो सम्भले नहीं सम्भल रही है। यहां तक कि योगी आदित्यनाथ, उमा भारती से लेकर नितिन गडकरी तक को इस विवाद में कूदना पड़ रहा है!
अब यदि दो सप्ताह बाद देश के सिनेमा हॉल धूं-धूं कर जलने लगें तो इसका सारा दोष "पद्मावती" के रचनाकार मलिक मुहम्मद जायसी का ही होगा। इसलिये इस जायसी पर राजद्रोह का मुकदमा जरूर चलना चाहिये और उसे या तो फांसी पर लटका दिया जाना चाहिये या फिर सीधे पाकिस्तान भेज देना चाहिये।
हमारे देश में जायसी जैसे देशद्रोहियों के लिये कोई जगह नहीं है और न "पद्मावत" जैसी किसी साहित्यिक रचना की ही हमें जरूरत है। हमारे पास तो वीर सावरकर का "हिंदुत्व" है और नाथूराम गोड़से का "गांधी वध" भी है। हमारी साहित्यिक भूख इन दोनों किताबों से पूरी हो जाती है। हमें किसी "पद्मावत" की जरूरत नहीं है।
ये संजय लीला भंसाली भी अजीब डारेक्टर है जो बार-बार ऐतिहासिक फिल्में बना कर विवाद पैदा करता रहता है और हमारे अतीत के गौरव और वर्तमान शौर्य को चुनौती देता रहता है।
उसे पहले ही समझाया था कि "देवदास" तक तो ठीक है लेकिन तुमने पहले जिस अभिनेत्री को "मस्तानी" बनाया उसे ही हमारी गौरवशाली महारानी पद्मावती भी बना डाला! अब उस 'नाचने-गाने वाली' की यदि नाक कट गयी तो सारा दोष संजय लीला भंसाली का होगा।
राजपूत करणी सेना के रण बांकुरों की धमकियां सुन-सुन कर मैं तो इस निष्कर्ष पर पहुँच गया हूँ कि जितना दोष जायसी का है उससे कहीं अधिक दोष इस संजय लीला भंसाली का है। इसलिये इसे भी जायसी के साथ ही पाकिस्तान भेज देना चाहिये।
(लेखक सेवानिवृत्त आयकर अधिकारी और राजनीतिक-सामाजिक विषयों के टिप्पणीकार हैं।)