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सिक्योरिटी

ब्लू मून, सुपर मून और चंद्रग्रहण

Janjwar Team
31 Jan 2018 10:18 AM GMT
ब्लू मून, सुपर मून और चंद्रग्रहण
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चांद का भूरापन इस बात पर भी निर्भर करता है कि हमने अपने वायुमंडल को खुद कितना प्रदूषित कर दिया, चंद्रमा से लौटकर आने वाली चांदनी प्रदूषित वायुमंडल को कितना पार करके हमारी आंखों में पहुंचती है...

देवेन्द्र मेवाड़ी

आकाश के रंगमंच पर 31 जनवरी 2018 को अर्थात आज एक अनोखा नजारा दिखाई देगा। इसके अभिनेता हैं सूर्य, चंद्रमा और पृथ्वी। आकाश में घूमते-घूमते आज ये तीनों एक ऐसी स्थिति में आ रहे हैं कि 150 वर्ष बाद यह नजारा देखने को मिल रहा है।

इस घटना में आप ब्लू मून की पूर्णिमा भी देखेंगे, सुपर मून भी और तांबई चेहरे वाला ग्रहण लगा चांद भी। जानते हैं, क्या है यह ब्लू मून और सुपर मून? असल में आमतौर पर एक महीने में एक बार ही पूर्णिमा का चांद दिखाई देता है। लेकिन, कभी-कभी पृथ्वी की परिक्रमा करते-करते ऐसा संयोग हो जाता है कि चंद्रमा हमें एक महीने में दो बार दिख जाता है।

आपको याद होगा 1 जनवरी को भी पूर्णिमा का चांद निकला था और अब इसी महीने 31 जनवरी को भी पूर्णिमा का चांद निकल रहा है। आपने अंग्रेजी का मुहावरा सुना होगा - ‘वन्स इन अ ब्लू मून’। यानी, कभी-कभार। इस मुहावरे में नीला शब्द तो है लेकिन नीला रंग नहीं है। इसलिए 31 जनवरी का चांद भी ब्लू मून तो होगा लेकिन उसका रंग नीला नहीं होगा! वह तो ब्लू मून है यानी एक माह में दो बार पूर्णिमा का चांद! मतलब वही ‘वन्स इन अ ब्लू मून’ यानी कभी-कभार।

अब रही सुपर मून की बात। सुपर यानी बड़ा। अक्सर जो चीज अपने सामान्य आकार से बड़ी होती है उसे ‘सुपर’ कह देते हैं। आज का चांद भी अपने सामान्य आकार से करीब 13-14 प्रतिशत बड़ा दिखेगा, इसलिए वह सुपर मून होगा। तो क्या चांद का आकार अचानक बढ़ जाएगा? नहीं, लेकिन वह बड़ा जरूर दिखाई देगा।

जिस तरह हमें दूर की चीज छोटी दिखाई देती है और पास आने पर वही चीज बड़ी दिखाई देती है, ठीक वही किस्सा ‘सुपर मून’ का भी है। चंद्रमा हमारी पृथ्वी के चारों ओर गोल नहीं बल्कि अंडाकार कक्षा में चक्कर लगाता है। इस कारण कभी तो वह 4 लाख किलोमीटर से भी दूर हो जाता है और कभी 3,56,000 किलोमीटर तक करीब आ जाता है। बस, तो जब चांद हमारी पृथ्वी के इतना करीब आ जाता है तो वह हमें बड़ा दिखाई देने लगता है। इसलिए ऐसा चांद ‘सुपर मून’ होता है।

अब रही बात चांद के तांबई, सिंदूरी या भूरे रंग की और उसके ग्रहण की। हालांकि आर्यभट तो छठी शताब्दी में ही बता गए थे कि चंद्रग्रहण चंद्रमा पर पृथ्वी की छाया पड़ने के कारण दिखाई देता है, लेकिन पंद्रह शताब्दियां बीतने के बाद आज भी कई लोग इस भ्रम में पड़े हैं कि चंद्रग्रहण कोई काल्पनिक राक्षसी कारनामा है!

असल में होता यह है कि सूर्य के चारों और घूमते-घूमते, कभी-कभी सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीध में आ जाते हैं। चंद्रमा का अपना प्रकाश तो है नहीं। उस पर सूर्य का प्रकाश पड़ता है जो पलट कर यहां हमारी आंखों तक आ जाता है। इसीलिए हमें चांद चमकीला दिखाई देता है। लेकिन, जब सूर्य और चंद्रमा के बीच में पृथ्वी आ जाती है तो उसकी छाया सीधे चांद पर पड़ती है। वही छाया हमें ग्रहण के रूप में दिखाई देती है।

चांद पर पृथ्वी की छाया के कारण कुल रोशनी कम पड़ती है, इसलिए वह हमें तांबई, सिंदूरी या भूरे रंग का दिखाई देता है। उसका भूरापन इस बात पर भी निर्भर करता है कि हमने अपने वायुमंडल को खुद कितना प्रदूषित कर दिया है। चंद्रमा से लौट कर आने वाली चांदनी प्रदूषित वायुमंडल को कितना पार करके हमारी आंखों में पहुंचती है, उससे भी चांद का रंग तय होगा। तो साथियो आप भी देखिएगा ब्लू मून, सुपर मून और चंदग्रहण का यह अनोखा नजारा।

(देवेन्द्र मेवाड़ी जाने-माने विज्ञान लेखक हैं।)

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