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राजनीति

रेल हादसों में 5 साल में 1,000 मौतें

Janjwar Team
20 Aug 2017 10:18 PM GMT
रेल हादसों में 5 साल में 1,000 मौतें
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बीते पांच सालों में देश में 586 रेल हादसे हो चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इन घटनाओं में से सबसे ज्यादा 308 बार ट्रेन पटरी से उतरी, जिसके कारण सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी...

मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश। कल 19 अगस्त को मुज़फ़्फ़रनगर के खतौली में हुए भीषण रेल हादसे में कई दर्जन लोगों के मारे जाने की खबर आ रही है। हालांकि अभी तक मृतकों का ठीक—ठीक आंकड़ा पता नहीं चल पाया है, मगर इस घटना ने भारतीय रेलवे की सुरक्षा व्यवस्था और सरकार की आम लोगों के प्रति संवेदनहीनता को तो सामने ला ही दिया है। सवाल उठने लगे हैं कि शासन—प्रशासन के लिए आम लोगों की जान की कोई कीमत है भी या नहीं।

गौरतलब है कि इसी महीने में कई भयानक घटनाओं में सैकड़ों लोग असमय काल के गाल में समा गए हैं। पहले गोरखपुर में एक साथ तकरीबन सौ बच्चों के मरने की हृदयविदारक घटना सामने आयी। उसके बाद बिहार बाढ़ में 200 से भी ज्यादा लोग अपनी जान गंवा चुके हैं, संपत्ति के नुकसान का तो अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। वहीं अब उत्तर प्रदेश के मुज़फ़्फ़रनगर में कलिंग-उत्कल एक्सप्रेस के डिब्बे पटरी से उतरने के कारण दर्जनों लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे हैं। अब तक लगभग 30 मौतों की पुष्टि की गई है और तकरीबन सवा दो सौ लोग इस घटना में घायल हुए हैं।

वैसे प्रत्यक्षदर्शियों और आसपास के ग्रामीणों का कहना है कि इस दुर्घटना में 200 के लगभग लोगों की मौत हुई है।

रेलवे प्रवक्ता अनिल सक्सेना के मुताबिक, इस घटना के लिए रेलवे स्टाफ को जिम्मेदार ठहराते हुए अब तक रेलवे के चार अधिकारियों सीनियर डिवीजनल इंजीनियर, असिस्टेंट डिवीजनल इंजीनियर, सीनियर सेक्शन इंजीनियर (पाथवे) और जूनियर इंजीनियर (पाथवे) को निलंबित कर दिया गया है। साथ ही उत्तर रेलवे के चीफ़ ट्रैक इंजीनियर का तबादला करने के अलावा दिल्ली रेल मंडल के डीआरएम और उत्तर रेलवे के महाप्रबंधक छुट्टी पर भेजे दिए गए हैं। रेलवे बोर्ड के मेंबर इंजीनियरिंग भी छुट्टी पर भेज दिए गए हैं।

खतौली में घटे इस भीषण रेल हादसे के ठीक एक महीने पहले केंद्रीय रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने संसद में एक सवाल के जवाब में बताया था कि बीते पांच सालों यानी 2012 से 2017 तक में देश में 586 रेल हादसे हो चुके हैं। इनमें भी सबसे बड़ी बात यह है कि इन घटनाओं में से 308 बार ट्रेन पटरी से उतरी, जिसके कारण सैकड़ों लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

पांच सालों में हुए रेल हादसों में लगभग एक हजार लोगों की मौत हो गई। पटरी से उतरने वाली ट्रेनों के कारण ही साढ़े तीन सौ के लगभग लोगों की जान चली गई।

लगातार बढ़ती जा रही रेलवे दुर्घटनाओं के बाद इसके लिए जिम्मेदार कारकों की पड़ताल इस तरह होती है और जिम्मेदार विभाग के मंत्रियों—अधिकारियों के ऐसे बयान आते हैं कि लगता है शायद अब अगली रेल दुर्घटना की खबर न सुनाई दे, मगर होता वही ढाक के तीन पात हैं।

हादसे के बाद सरकार जाँच—पड़ताल के आदेश इस तरह देती है, जैसे जिम्मेदार व्यक्ति या विभाग को फांसी के फंदे पर चढ़ा दिया जाएगा, मगर जैसे ही मीडिया में हो—हल्ला कम होता है, कसूरवार का नाम तक सामने नहीं आ पाता। कभी हादसा का ठीकरा रेलवे कर्मचारियों के सिर पर फोड़ा जाता है, तो कई बार इस तरह की बातें भी सामने आती हैं कि ऐसी घटनाओं के पीछे आतंकी घटनाओं का हाथ था।

ये सब बातें एक तरफ, मगर हालिया घटना के बारे में यह जरूर कहा जा सकता है कि मोदी सरकार में रेलवे दुर्घटनाओं की जैसे बाढ़ आ गई है। मीडिया में रेलवे मंत्री सुरेश प्रभु भी लगातार ट्रोल हो रहे हैं हादसों के लिए।

मीडिया में खबरें आती हैं जिसमें ज्यादातर रेल हादसों के लिए कर्मचारियों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया जाता है। बीबीसी में प्रकाशित एक खबर में कहा गया है कि रेलवे सेफ्टी और यात्री सुरक्षा से जुड़े एक सवाल के जवाब में सात दिसंबर, 2016 को लोकसभा में सरकार ने इस सवाल का लिखित जवाब देते हुए सुरेश प्रभु ने बताया था कि 'साल 2014-15 में 135 और 2015-16 में 107 रेल हादसे हुए. 2016-17 में नवंबर 2016 तक 85 रेल हादसे हुए।'

सुरेश प्रभु की मानें तो, 'पिछले दो साल और मौजूदा साल में हुए रेल हादसों की बड़ी वजहें रेलवे स्टाफ़ की नाकामी, सड़क पर चलने वाली गाड़ियां, मशीनों की ख़राबी और तोड़-फोड़ हैं। 2014-15 के 135 रेल हादसों में 60 और 2015-16 में हुए 107 हादसों में 55 और 2016-17 (30 नवंबर, 2016 तक) के 85 हादसों में 56 दुर्घटनाएं रेलवे स्टाफ़ की नाकामी और लापरवाही के कारण घटीं।

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