शहीद हनुमंथप्पा की पत्नी नौकरी के लिए खा रही दर-दर की ठोकरें
3 साल पहले शहीद हुए कर्नाटक के जवान हनुमंथप्पा की पत्नी महादेवी को सिवाय कोरे आश्वासनों के कुछ नहीं मिला है आज तक, सरकारी नौकरी के लिए अब तक खा रही हैं ठोकरें
जनज्वार। पुलवामा में शहीद हुए सैनिकों पर जहां देश में राजनीतिक रोटियां सेंकने का खेल जारी है, वहीं एक शहीद का परिवार ऐसा भी है जो सालों बाद भी पेंशन और नौकरी के लिए भटक रहा है। इस शहीद के परिवार को जुमलेबाजों की तरफ से सिवाय आश्वासन के कुछ नहीं मिला। मीडिया ने भी तब उनकी शहादत के बाद भरपूर कवरेज दी थी। मगर अब जब उनका परिवार आर्थिक दिक्कतों से दो चार हो रहा है, कोई भी उनका साथ देने वाला नहीं है।
बात हो रही है 3 साल पहले शहीद हुए कर्नाटक के लांसनायक हनुमंथप्पा की, जिनको सियाचिन से बर्फ के नीचे से छह दिन बाद जिंदा बाहर निकाला गया था, मगर बाद में उनकी मौत हो गई थी। हनुमंथप्पा की मौत के बाद केंद्र की मोदी सरकार और राज्य सरकार ने उनके परिवार को नौकरी, जमीन और घर देने के बड़े—बड़े दावे किए थे।
हनुमंथप्पा की मौत के बाद केंद्र और राज्य सरकार ने कहा था कि उनकी पत्नी महादेवी को तुरंत नौकरी दी जाएगी और उनकी मासूम बेटी नेत्रा का भविष्य सुरक्षित करने की दिशा में भी ठोस कदम उठाया जाएगा, मगर दावों और वादों के उलट सच इतना भयावह है कि महादेवी को 3 साल बीत जाने के बावजूद नौकरी नहीं मिल पाई है। ऐसा तब है जबकि महादेवी के पास कोई भी ऐसा आर्थिक स्रोत नहीं है जिससे वह अपनी बेटी नेत्रा का भविष्य सुरक्षित करने के लिए उसे बेहतर शिक्षा दिलवा सके।
नवभारत टाइम्स में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक महादेवी कहती हैं, 'दो साल पहले मुझे केंद्र की मोदी सरकार की तरफ से एक पत्र मिला था, जिसमें मुझसे धारवाड़ जिले में रेशम उत्पादन विभाग में नौकरी करने के संबंध में पूछा गया था। मैंने रेशम उत्पादन विभाग में छह से आठ महीने तक अस्थायी कर्मचारी के रूप में नौकरी की, इस दौरान मुझे छह हजार रुपये तनख्वाह दी जाती थी। मगर जब मैंने अधिकारियों से अपनी नौकरी पक्की करने की बात की तो उन्होंने कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं दिया।'
महादेवी आगे कहती हैं, 'सरकारी नौकरी पाने के लिए मैंने काफी मशक्कत की। मुख्यमंत्री, कलेक्टर से लेकर कई विभागों को सरकार के दावों और वादों को याद दिलाते हुए इस संबंध में पत्र लिखा, मगर किसी का कोई जवाब नहीं आया। शासन-प्रशासन का निराशाजनक रुख देख अब मेरी स्थायी नौकरी पाने की मेरी सारी आशाएं खत्म हो गईं हैं।'
महादेवी के मुताबिक 'मोदी सरकार में केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने मुझे मेरे पति की शहादत के बाद सरकारी नौकरी दिलाए जाने को लेकर एक ट्वीट किया था। स्मृति ईरानी के हुबली आने पर मैंने उनसे मुलाकात भी की थी, मगर हैरत तब हुई जब उन्होंने ऐसा कोई ट्वीट किए जाने से इनकार कर दिया। नौकरशाहों और नेताओं—मंत्रियों की असंवेदनशीलता देख मैंने अब नौकरी के लिए किसी से सिफारिश करना छोड़ दिया है।'
हालांकि अपने वादे की खानापूर्ति के लिए कर्नाटक सरकार ने महादेवी को बेगदूर के पास चार एकड़ कृषि भूमि दी, मगर बंजर होने की वजह से यह किसी काम की नहीं है। इसके अलावा बारीदेवरकोप्पा में महादेवी को एक एकड़ का प्लॉट भी मिला, मगर आर्थिक दिक्कतों के चलते उसमें भी अभी तक घर नहीं बनवाया गया है। शासन-प्रशासन की बेरुखी को देखते हुए अब महादेवी को अपनी बेटी के भविष्य की चिंता सता रही है। नौकरी की तरफ से लगभग निराशा हो चुकी महादेवी ने अपनी बेटी को निशुल्क शिक्षा दिलाए जाने की मांग की है।