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आंदोलन

अन्ना हजारे VS स्वामी आत्मबोधानंद का आमरण अनशन

Prema Negi
7 Feb 2019 8:35 AM GMT
अन्ना हजारे VS स्वामी आत्मबोधानंद का आमरण अनशन
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स्वामी आत्मबोधानंद जी बिना ठोस आश्वासन के अनशन नहीं त्यागेंगे, क्योंकि वे दिखावे और मीडिया में प्रचार के लिए अनशन नहीं कर रहे हैं बल्कि गंगा उनका जूनून है। मगर सरकार में सुनने वाला कोई नहीं है, सरकार बहरी हो चुकी है...

वरिष्ठ लेखक महेंद्र पाण्डेय

अन्ना हजारे ने 6 दिन अनशन किया, नरेन्द्र मोदी को कोसा और पदम पुरस्कार वापस करने की धमकी दी। बिना ठोस आश्वासनों के ही 6 दिन बाद अन्ना की अनशन तोड़ते हुए मीडिया में तस्वीर आ गयी। दूसरी तरफ स्वामी सानंद 112 दिन गंगा के लिए अनशन कर प्राण त्याग चुके, स्वामी आत्मबोधानंद भी 106 दिनों से अनशन पर आज भी बैठे हैं और संत गोपालदास इन्ही मांगों को लेकर सरकार की नाक के नीचे लापता हो गए। मगर गंगा के नाम पर आत्मप्रशंसा में विभोर मोदी सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ता है।

28 जनवरी से नई दिल्ली के जंतर मंतर रोड पर गंगा के लिए धरने के साथ ही क्रमिक भूख हड़ताल भी चल रही है। इसमें एक मांग यह भी है कि सरकार स्वामी आत्मबोधानंद से शीघ्र बात करे, पर आज तक किसी नेता को इन मांगों को सुनने की फुर्सत भी नहीं मिली है।

समस्या यह है कि स्वामी आत्मबोधानंद जी बिना ठोस आश्वासन के अनशन नहीं त्यागेंगे, क्योंकि वे दिखावे और मीडिया में प्रचार के लिए अनशन नहीं कर रहे हैं बल्कि गंगा उनका जूनून है। मगर सरकार में सुनने वाला कोई नहीं है, सरकार बहरी हो चुकी है।

इसी धरने में हरिद्वार के एक डॉक्टर और गंगा आन्दोलन से लम्बे समय से जुड़े डॉ, विजय वर्मा ने डॉ हिमांशु से आज की परिस्थितियों पर चर्चा की।

डॉ हिमांशु सेना में डॉक्टर रह चुके हैं और गंगा जल बिरादरी के राष्ट्रीय संयोजक हैं। डॉ हिमांशु के अनुसार गंगा को हम पूज तो रहे हैं, पर पूछ नहीं रहे हैं। यह सही भी है, नमामि गंगे के तहत वाराणसी में सारा ध्यान गंगा घाट बनाने में और गंगा आरती को और भव्य करने में लगाया गया। वाराणसी में गंगा दिखाने तो नहीं पर आरती दिखाने के लिए प्रधानमंत्री मोदी अनेक विदेशी अतिथियों को समय समय पर ले जाते रहे हैं।

हिमांशु से जब पूछा गया कि गंगा आन्दोलन से पढ़े लिखे लोग क्यों नहीं जुड़ रहे हैं, तब उन्होंने कहा कि पढना लिखना आपको सामाजिक सरोकार नहीं सिखाता है और यह हमारे समाज की बड़ी विडम्बना है। इनके अनुसार हमारी बर्बादी जितनी अंग्रेज भी नहीं कर पाए उससे अधिक बर्बादी हम लोग और हमारी सरकारें कर रही हैं। हमारा बौद्धिक तंत्र पूरी तरह भ्रष्ट हो चुका है।

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