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सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा हिंदुओं ने चोरी से रख दी थी बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति

Prema Negi
4 Sep 2019 4:18 AM GMT
सुन्नी वक्फ बोर्ड ने कहा हिंदुओं ने चोरी से रख दी थी बाबरी मस्जिद में रामलला की मूर्ति
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सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील ने कहा मुस्लिम पक्ष के पास विवादित जमीन के कब्जे के अधिकार नहीं है, क्योंकि 1934 में निर्मोही अखाड़ा ने गलत तरीके से कर लिया था अवैध कब्जा, जिसके बाद नहीं की गई थी नमाज अदा...

जेपी सिंह की रिपोर्ट

योध्या मामले पर उच्चतम न्यायालय में चल रही सुनवाई के 18वें दिन 3 सितंबर को मुस्लिम पक्ष ने हिंदू पक्ष पर बड़ा आरोप लगते हुए कहा है कि हिंदुओं ने विवादित जगह पर भगवान राम की मूर्ति चोरी-चुपके से रखी थी। सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने दलील दी कि देश के आजाद होने की तारीख और संविधान की स्थापना के बाद किसी धार्मिक स्थल का परिवर्तन नहीं किया जा सकता।

राजीव धवन ने कहा महज स्वयंभू होने के आधार पर यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता कि अमुक स्थान किसी का है। उच्चतम न्यायालय से मैं चाहूंगा कि वह इस मामले के तथ्यों के आधार पर फैसला दे। उन्होंने यह भी कहा कि मूर्ति चोरी से रखी गई थीं।

राजीव धवन ने कहा कि अयोध्या विवाद पर विराम लगना चाहिए। अब राम के नाम पर फिर कोई रथयात्रा नहीं निकलनी चाहिए। उनका इशारा संघ परिवार द्वारा 1990 में निकाली गई रथयात्रा की ओर था, जिसके बाद बाबरी विध्वंस हुआ था। राजीव धवन ने कहा कि विवादित जमीन के ढांचे के मेहराब के अंदर के शिलालेख पर ‘अल्लाह’ शब्द मिला। धवन ने साबित करना चाहा कि विवादित जगह पर मंदिर नहीं बल्कि मस्जिद थी। बाबरी मस्जिद में भगवान रामलला की मूर्ति स्थापित करना छल से हमला करना है। धवन ने हिन्दू पक्ष की दलील का हवाला देते हुए कहा कि मुस्लिम पक्ष के पास विवादित जमीन के कब्जे के अधिकार नहीं है, क्योंकि 1934 में निर्मोही अखाड़ा ने गलत तरीके से अवैध कब्जा कर लिया था। इसके बाद नमाज अदा नहीं की गई।

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय संवैधानिक पीठ में जस्टिस एस. ए. बोबडे, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. ए. नजीर भी शामिल हैं। पूरा विवाद 2.77 एकड़ की जमीन को लेकर है, जिस पर संविधान पीठ सुनवाई कर रही है।

सुनवाई के 17वें दिन मुस्लिम पक्षों ने सोमवार 2 सितंबर को उच्चतम न्यायालय में कहा कि हिन्दुओं ने 1934 में बाबरी मस्जिद पर हमला किया, फिर 1949 में अवैध घुसपैठ की और 1992 में इसे तोड़ दिया और अब कह रहे हैं कि संबंधित जमीन पर उनके अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए। राजीव धवन ने पीठ को बताया कि कानूनी मामलों में ऐतिहासिक बातों और तथ्यों पर पूरी तरह भरोसा नहीं किया जा सकता।

सुन्नी वक्फ बोर्ड और वास्तविक याचिकाकर्ताओं में से एक एम सिद्दीक की ओर से पेश धवन ने कहा, ‘1934 में आपने (हिन्दुओं) मस्जिद को तोड़ दिया और 1949 में अवैध घुसपैठ की और 1992 में आपने मस्जिद को पूरी तरह नष्ट कर दिया और सभी तबाही के बाद आप कह रहे हैं कि ब्रिटिश लोगों ने हिन्दुओं के खिलाफ काम किया। अब आप कह रहे हैं कि हमारे अधिकार की रक्षा की जानी चाहिए।’

पीठ ने हालांकि उनसे कहा कि कृपया इस सबमें मत जाइए। आपकी दलीलें मुद्दे से संबंधित होनी चाहिए। धवन ने कहा कि ये सभी मुद्दे दूसरे पक्ष द्वारा उठाए गए हैं और उन्हें जवाब देने की अनुमति मिलनी चाहिए क्योंकि यह सुनवाई ‘देश के भविष्य’ से जुड़ी है। इस पर रामलला विराजमान पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन खड़े हुए और कहा कि धवन को मुद्दई (मुस्लिम पक्षों) के मामले के बारे में चर्चा करनी चाहिए।

स पर चीफ जस्टिस ने कहा कि वह अपने मामले को जिस तरह से रखना चाहें, उसके लिए वह स्वतंत्र हैं। धवन ने पीठ से कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तीन न्यायाधीशों में से एक ने उल्लेख किया था कि ऐतिहासिक तथ्य स्वामित्व पर फैसला करने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि तुलसीदास द्वारा लिखी गई रामायण एक काव्य है और उसे इतिहास का हिस्सा नहीं कहा जा सकता। इस पर पीठ ने कहा कि तुलसीदास समकालीन थे और काव्य में भी तथ्य हो सकते हैं।

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