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समाज

भैयाजी की तरफदार संस्कारी लड़कियां और #MeToo कैंपेन

Prema Negi
12 Oct 2018 4:20 AM GMT
भैयाजी की तरफदार संस्कारी लड़कियां और #MeToo कैंपेन
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हमें समाज में ऐसी ही बदतमीज लड़कियों की जरूरत है जो तमाचा मारना जानती हों। न जानती हों तो सीख लें। और ये तमाचे मारने वाली बदतमीजी जरूरी नहीं यौन उत्पीड़कों तक सीमित रहे....

कश्यप किशोर मिश्रा, स्वतंत्र टिप्पणीकार

जनज्वार। लड़कियां एकाएक मुखर हो गई हैं, वे अपने यौन उत्पीड़न पर बोलने लगी हैं और खुलेआम अपने यौन शोषकों के घिनौने नाम सामने ला रही हैं। लड़कियों का साथ दूसरी लड़कियां दे रही हैं। वे आपस में जरूरी नहीं कि एक दूसरे को जानती हों, वे जीवन में अलग अलग पेशे में हैं, अलग अलग जगहों से हैं पर यौन उत्पीड़न पर उनके सामूहिक आक्रोश की लहर व्यापक है और जोरदार भी।

पर ऐसा नहीं है कि अपने यौन उत्पीड़न पर बोलने वाली लड़की को सारी लड़कियों या औरतों का समर्थन मिलता हो, बल्कि हो यह रहा है कि अपने यौन उत्पीड़न को साझा करने वाली लड़की के आरोप पर आरोपी बजाय सफाई देने के, अपने पक्ष में लड़कियों को लाकर खड़ा कर दे रहा है।

ये लड़कियां ठीक गोरा बनाने वाली क्रीम का विज्ञापन करनेवाली लड़कियों की तरह आरोपी के पक्ष में कसीदे काढ़ने लगती हैं "मैं रविनाश भैया को तबसे जानती हूँ जब से कोई सोच नहीं सकता, इनके जैसा भला और स्त्रीवादी मैंने दूसरा नहीं देखा। ये न जाने कितनी औरतों के पक्ष में रहते न जाने कितनों के दुश्मन बन गए। असल में रविनाश भैया को आपने गलत समझ लिया, वो ऐसे हो ही नहीं सकते।"

रविनाश भैयाजी ऐसे हर एक प्रत्येक टिप्पणी पर एक स्माइली देते प्रति उत्तर देना नहीं भूलते और टिप्पणी में जोड़ देते हैं, बाकी सब तो ठीक है पर इस "भैया" सम्बोधन से मैं परेशान हो चुका हूं।

समझ नहीं आता, यूं गोरे होने वाली क्रीम से गोरी हुई लड़कियों की तरह एक यौन उत्पीड़न के आरोपी की पक्षधर ये लड़कियां किस ग्रह से उतरकर आईं हैं?

कभी एक कहानी लिखी थी "शरीफजादियां" जिसमें सुबह की धक्कामुक्की झेलते बस में लड़कियों का झुंड कालिज जाता था, एक दिन एक नई आई लड़की नें अपने शरीर पर भीड़ का फायदा उठा छेड़छाड़ कर रहे एक लड़के को एक तमाचा जड़ दिया।

अब बाकी लड़कियों का ख्याल था एक शरीफ लड़की भरी बस में अपनी यूं बेइज्जती कतई नहीं करा सकती, यकीनन वो लड़की ही गलत है लिहाजा बाकी शरीफजादियों नें उस लड़की का साथ छोड़ दूसरी बस से जाने लगी। कहना न होगा कि वो धक्का मुक्की वाली भीड़ दूसरी बस में होने लगी।

हमें समाज में ऐसी ही बदतमीज लड़कियों की जरूरत है जो तमाचा मारना जानती हों। न जानती हों तो सीख लें। और ये तमाचे मारने वाली बदतमीजी जरूरी नहीं यौन उत्पीड़कों तक सीमित रहे। इसका दायरा बढ़ाने की जरूरत है।

एक बच्ची थी, उतनी ही छोटी सी, मासूम जैसी छोटी सी मासूम कभी मेरी बेटी, मेरी बहन और कभी मेरी मां रही होगी। एक अंकल आया करते थे घर में, दलितों की बातें करते, बाते करते फेमेनिज्म की और मानवाधिकारों की।

एक दिन बच्ची नें मम्मा को बताया कि वह अंकल उसके साथ जब भी मौका मिलता है, ऐसा वैसा करते हैं। माँ ने घबरा कर इधर उधर देखा। कोई देख तो नहीं रहा ना! मां ने बच्ची को समझाया, वह अंकल आएं तो तुम उनके पास न जाया करो। उनके करीब भी मत जाना।

अब अंकल आते और लड़की छिप जाती। बंद कमरे के अंधेरे में डरी सहमी छिपी रहती और अंकल बैठक में बैठे दुनिया जहान की बाते करते। ऐसा भी हुआ कि कभी किसी बैठकी में अंकल पर कोई लांछन लगा, तो वो मम्मा को अपनी बेदाग नेकनीयत के गवाह के तौर पर सामने कर देते।

मम्मा अपने मेकअप में छुपे भावों पर फहरती प्लास्टिक स्माईल के साथ हामी भर देती।

एक दिन अंकल चाय के साथ बिस्किट की नरमी पर बहस करते जब चाय सुड़के जा रहे थे, बंद कमरे के अंधेरे ने बच्ची जो अब किशोरी थी, की रगों में भूचाल ला दिया।

वह बंद कमरे से बाहर निकली और बैठक में आकर खड़ी हो गई। एकटक अंकल को घूरती लड़की को सम्हालने मम्मा आगे बढ़ी...और लड़की ने एक जोरदार तमाचा अपनी मां को धर दिया।

तो यौन उत्पीड़न पर पर्दा डालने की कोशिश करने वालों को भी जब तक तमाचे की जद में नहीं लाया जाएगा, यौन शोषण की मनोवृत्ति रुकेगी नहीं।

लड़कियों को बेचारी, अबला या गऊ की छवि से बाहर आना होगा। वरना वो अपने स्पेस को लुटाती रहेंगी।

एक कस्बे में, दो परिवार अगल बगल थे। एक परिवार में खूब सारे लड़के ही लड़के थे और दूसरे परिवार में खूब सारी लड़कियां ही लड़कियां थीं। दोनों घरों के बीच एक बेहद पतली गली थी।

लड़कों से भरे घर के लड़कों नें लड़कियों का जीना दूभर कर दिया था। वो हर दम पड़ोसी घर में झांकते रहते। हारकर लड़कियों के बाप ने पड़ोसी से शिकायत की कि उनके लड़कों को नियंत्रित करने की जरुरत है।

लड़कों के बाप ने पुट्ठे पर हाथ ठोंकते हुए कहा "भाई साहब! सांड खूंटे से नहीं बांधे जाते, गाय को खूंटे से बांधकर रखें।

अगली दोपहर लड़कों के बाप, दोनों मकानों के बीच की गली से गुजर रहे थे कि दूसरी छत के पनाले से गिरती पानी की धार आपादमस्तक उनका अभिषेक कर गई।

लगभग गरजती आवाज़ में ऊपर देखते उन्होंने पूछा "यह क्या है?" एक चेहरे ने बाहर झांककर जवाब दिया "यह खूंटे से बंधी गाय का गोमूत्र है, चाचाजी!"

यौन शोषकों को, उनको शह देने वालों को, उस पर पर्दा डालने वालों को पटक पटक कर जवाब देने की जरूरत है और ये जवाब जितना ज्यादा लड़कियां खुद देंगी वो उतना गहरा होगा। उतना मारक होगा।

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