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संस्कृति

कोरियर वाले लड़के की डायरी

Janjwar Team
21 Nov 2017 4:59 PM GMT
कोरियर वाले लड़के की डायरी
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आॅफिस पहुंचा तो मालिक की गालियां सुनी। क्यों रे! इतनी ‘लेट’ क्यों आया? कोरियर क्यों बच गये, पैसे काट लूंगा। सिर्फ इतना ही नहीं रात को सपने में भी कोरियर ही नजर आता है। घण्टी बजाता हूँ, मकान मालिक के चिल्लाने की आवाज आती है, एकदम से कह उठता हूँ- आपका कोरियर है...

भूपेंदर सिंह की कहानी

आप भी मुझे ‘कोरियर वाला लड़का’ ही कहेंगे, जैसा कि सभी कहते हैं। अगर मैं खुद को पोस्टमैन समझूं तो आपको एतराज नहीं होना चाहिए। जरा सोचिए, बिना पोस्टमैन के यह दुनिया कैसी होगी। हो सकता है कि आपके पास इस बात का कोई मजेदार सा जवाब हो, मगर एक पोस्टमैन की अपनी दुनिया कितनी बदहाल है, कभी सोचा आपने?

‘कोरियर वाला लड़का’ बनना तो मैं नहीं चाहता था, लेकिन बन गया। हुआ यह कि एक कारखाने में ‘कैजुअल’ मजदूर था। मालिक को जब तक जरूरत रही, तब तक बारह-बारह घण्टे निचोड़ता रहा और एक दिन उसने मुझे बाहर कर दिया। हालांकि यह कोई नई बात नहीं थी, यह तो कई वर्षों से चल रहा था। यानी तब से, जब से मैं इस महानगर में आकर मजदूरों की जमात में शामिल हुआ हूँ।

इतने वर्षों में कुछ नहीं बदला, जिन्दगी अब भी उसी लेबर चौराहे पर है बस इतना ही बदलाव आया कि अपने गांव की खेती-किसानी से उजड़कर जब आया था तो मसें भी ठीक से नहीं भीगी थी, आज अपनी उम्र से ज्यादा सलवटें चेहरे पर हैं।

खैर, इस बार जब कारखाने से निकाला गया तो मैंने सोचा कुछ दिन कोई हल्का-फुल्का काम कर लिया जाए। तब तक मेरे दिल में यह बात ठीक से नहीं बैठ पाई थी कि इस दुनिया में मजदूर के लिए कोई काम हल्का-फुल्का नहीं है। हल्का काम तलाशते हुए एक दिन में एक कोरियर कम्पनी में पहुंचा।

कोरियर कम्पनी में नौकरी के लिए पहुंचा तो आॅफिस में करीब 30 वर्ष के एक मोटे-तगड़े ठिगने से आदमी ने मेरा इंटरव्यू लिया। वह जब काम करता होता तो उसका केवल सिर ही नजर आता। मैं पहुंचा तो वह काम कर रहा था। मेरी तरफ को उठा उसका सिर ऐसा लगा जैसे कि बिल से सांप ने अपनी मुण्डी बाहर निकाली हो।

उसने कहा- काम तो मिल जायेगा, लेकिन पहले यह बताओ कि तुम जहां पहले काम करते थे, वहां क्यों छोड़ दिया? उसकी काली बींधती आंखें ऐसे लग रही थीं जैसे कि मेरे अन्दर घुस कर मुझे टटोल रही हों कि यह कितने पानी में है, हमारे काम लायक है या नहीं। वह सवाल करता रहा और मैं जवाब देता रहा।

मैंने उसे अपनी स्थिति के बारे में बताया कि मैंने कहां-कहां काम किया और वहां से क्यों काम छूट गया। अच्छा तो यह बताओ तुम कितना पढ़े हो? दसवीं तक और आईटीआई से फिटर का कोर्स। तो तुम फिटर का काम क्यों नहीं करते? क्या करूँ वहां हड्डियों का कचूमर निकाल देने वाला भारी काम होता है और महीने में ज्यादा से ज्यादा अठारह सौ रुपये मिलते हैं। तीन साल हो गये यही काम करते और काम छूटते, अब मैं इस काम से तंग आ गया हूँ। उसने आँखें बन्द कर कुछ सेकण्ड सोचा, फिर बोला- अच्छा तो तुम कल अपने कागज और फोटो लेकर आना।

अगले दिन उसने मुझे काम पर रख लिया। उसने मुझे बताया- देखो! हम तुम्हें दो हजार रुपये देंगे। सुबह तुम्हें पैकेट मिल जायेंगे, जब उन्हें बांटकर आॅफिस में रिपोर्ट दोगे तब तुम्हारी छुट्टी होगी। पहले दो दिन तुम्हें ‘ट्रायल’ पर रखा जायेगा, ताकि तुम एरिया देख लो और इन दो दिन का पैसा नहीं मिलेगा। कल सुबह नौ बजे काम पर आ जाना। मैं खुश हुआ कि चलो काम के अकाल में इस समय अच्छा काम मिल गया।

मैं सुबह 9 बजे आॅफिस पहुँचा तो एक लड़का कमरे में झाड़ू लगा रहा था। वह झाड़ू लेकर हटा ही था कि नीचे से किसी ने उसे आवाज लगाई। दूसर मंजिल से, जहाँ आॅफिस है, वह लगभग दौड़ता हुआ नीचे पहुंचा। मैंने नीचे झाँका तो वही ठिगना सा आदमी अपने स्कूटर पर एक बोरा लादे हुए खड़ा दिखा। लड़के ने बोरे को पीठ पर लादा और लड़खड़ाते हुए सीढ़ियाँ चढ़कर बोरे को आॅफिस में ला पटका।

ठिगने से आदमी, जो मालिक ही था, ने आॅफिस के दरवाजे को तीन बार छूकर हाथ माथे से लगाया। अन्दर आकर मूर्तियों के सामने धूप जलाई। थोड़ी देर बाद मुझे देखकर बोला- अच्छा तो तुम आ गये। अभी मैं तुम्हें एक लड़के के साथ भेज देता हूँ। पूरे एरिया को ठीक से समझ लेना।

जिस लड़के के साथ भेजा गया, उसने रास्ते में पैकेट देने के बाद कहाँ दस्तखत करवाने हैं, किस पैकेट में पहचान-पत्र की फोटोस्टेट काॅपी लेनी है आदि समझाया। उसने यह भी बताया कि मैं जल्दी से काम सीख लूँ क्योंकि मालिक बहुत हरामखोर है, एक बार उसने एक लड़के की दस दिन की दिहाड़ी ‘ट्रायल’ के नाम पर मार ली।

काम सीखने के बाद जब पहले दिन अकेले डाक लेकर निकला तो मन ही मन यह सोचकर खुश था कि अब पक्का पोस्टमैन हो गया हूँ जल्दी-जल्दी काम पूरा करके जाऊँगा। आज के ‘रूट’ में सबसे पहले एक चार मंजिला अपार्टमेंट में डाक देनी थी।

थैले से पैकेट निकाला, पता पढ़़ा, डाक दूसरे मंजिल की थी। फ्लैट के दरवाजे पर गया, ‘कालबेल’ बजाई। अंदर से कोई आवाज नहीं आई तो फिर बेल बजाई। अन्दर से एक औरत ने दबे पांव आकर झटके से जाली के अन्दर वाला दरवाजा खोला और कड़क आवाज में बोली-कौन है, मैं तो घबरा गया, उसने मुझे ऐसे घूरा जैसे मैं कोई चोर या भिखमंगा होऊँ। मेरे मुँह से मरी सी आवाज निकली-कोरियर।

अगला पता चौथी मंजिल का था। जल्दी-जल्दी सीढ़ियां चढ़कर ‘बेल’ बजाई। अन्दर से कोई आदमी चिल्लाया- कौन है- जैसे मैंने उसका कोई सामान तोड़ दिया हो। वह बाहर निकलकर मुझ पर बरसा- अरे धीरे से घण्टी क्यों नहीं बजाते।

मैंने सफाई दी कि नहीं भाईसाहब मैं तो ...। अच्छा, बकवास बन्द करो। यह बताओ क्यों आये हो? साहब आपका कोरियर है। उसने कोरियर लेकर इतनी फुर्ती से दरवाजा बन्द किया कि कहीं मैं उसके घर में न घुस जाऊँ।

इसके बाद में दूसरे अपार्टमेंट के तीसरे फ्लोर पर पहुंचा। घण्टी बजाते ही अन्दर से कुत्ते ने भोंकना शुरू कर दिया। बाप रे बाप यहां तो कुत्ता है। अगर इस दुबले-पतले शरीर पर दरवाजा खोलते ही टूट पड़ा तो यहीं दम निकल जायेगा और अगर उल्टे पांव वापस चला गया तो कोरियर रह जायेगा।

यह सोच ही रहा था कि अन्दर से एक महीन रेशमी आवाज आई-कौन है। लड़कियों की अदा के साथ एक चिकना-चुपड़ा लड़का जाली वाले दरवाजे के अन्दर से पूछताछ करने लगा। उसने मुझे देखकर ऐसे मुँह बिचकाया और आँख मटकाईं जैसे मुझ आवारा लड़के ने किसी अमीर लड़की पर फब्ती कसी हो। जल्दी से कोरियर देकर मैं लगभग दौड़ते हुए सीढ़ियों से नीचे उतरा। कुत्ते का आतंक बरकरार था।

दस घर कोरियर पहुंचाने के बाद तो मेरा पसीने से बुरा हाल था। सीढ़ियाँ चढ़ते-उतरते पैर दर्द कर रहे थे। गला सूख रहा था। एक जगह पानी मांगा तो घर की मालकिन ने साफ मना कर दिया कि घर में पानी नहीं है। अगले सेक्टर में, जहां मैं चिलचिलाती दुपहरी में पहुंचा था। एक भलामानस मिल गया जिसने मुझे पानी भी पिला दिया।

इस सेक्टर के दूसरे अपार्टमेंट में जब मैं पहुंचा तो वहां इतना सन्नाटा था जैसे कोई कब्रिस्तान हो। यह ‘हाई-फाई’ अपार्टमेंट था। चारों ओर कैमरे लगे थे, कहीं कोई चोर-उचक्का न आ जाय। अन्दर बीचोंबीच एक स्वीमिंग पूल था। लिफ्ट और अन्य सुविधाएं थीं। मैं गेट पर ‘एण्ट्री’ कराकर अन्दर घुसा, मुझे चौथे फ्लोर पर जाना था। सोचा आज तो लिफ्ट का मजा ले लूँ। लिफ्ट में अन्दर शीशे लगे थे, जिसमें पसीने से लथपथ मेरा दुबला-पतला शरीर अटपट लग रहा था। जब तक लिफ्ट की शांति का सुख मिलता, तब तक चौथा फ्लोर आ गया।

घण्टी बजाते ही अन्दर से एक खूब मोटी, लम्बी-तगड़ी सी औरत आई। हाँ बोलो, क्या बात है। मैडम जी, आपका कोरियर है। जाली वाले दरवाजे के अन्दर से ही पहले उसने मुझे घूरा, फिर बोली-लाओ दो। काला रंग, भारी शरीर डील-डौल और उस पर सफेद कपड़े पहने वह ऐसी लग रही थी कि जैसे किसी भैंस पर कपास लपेट रखी हो और वह बस सींग मारने के लिए तैयार हो।

जो कोरियर उसको देना था, उसको देने से पहले आईडी प्रूफ या कोई पहचान पत्र की फोटोकाॅपी चाहिए थी। मैंने उस महिला से कहा तो वह अपना पासपोर्ट ले आई और बोली- लो देख लो। तब तक उसका पति भी आ चुका था। जब मैंने पासपोर्ट की फोटोकाॅपी या फिर उसका नम्बर नोट कराने के लिए कहा तो उसका पति भड़क गया बोला- अगर तू कोरियर नहीं देगा तो तुझे यहां से बाहर नहीं जाने देंगे और तेरी नौकरी भी छुड़वा देंगे। बड़ा आया आईडी प्रूफ मांगने वाला।

मैंने उन दोनों को समझाने की कोशिश की कि यदि वे आईडी प्रूफ नहीं देंगे तो कोरियर मालिक या तो नौकरी से निकाल देगा या फिर जुर्माना कर देगा, लेकिन उन पर मेरी बात का कोई असर नहीं पड़ा। जिस कोरियर वाले काम को हल्का-फुल्का समझ रहा था, उसकी असलियत ने मेरी एक ही दिन में अक्ल ठिकाने लगा दी।

मुझे यह समझ में नहीं आता कि हम ‘छोटे लोगों’ को देखकर इन ‘बड़े लोगों’ का मूड क्यों बिगड़ जाता है? मुझे तो लगता है कि सुख से अघाये ये लोग इतने मनहूस हैं कि इनका इंसानों से लगाव ही खत्म हो गया है। पूरे दिनभर में तीन चौथई घर तो ऐसे ही मिलते हैं, खासकर अपार्टमेंट या बंगलों में, जो ऐसे व्यवहार करते हैं, जैसे मैंने उनका उधार ले रखा हो।

जहां भी कोरियर देने जाता हूँ, कुछ न कुछ सुनने को मिल ही जाता है। पागल हो, हमारी घण्टी खराब हो जायेगी, कैसे-कैसे आवारा लोग घूमते हैं, पूरा मूड ही बिगाड़ दिया, नींद खराब कर दी आदि-आदि। कहीं-कहीं घर का कुत्ता आकर स्वागत करता है तो कहीं घर की मालकिन ही खुंखार कुत्ते का मोरचा संभाले होती है।

दिनभर यह सब झेलने के बाद शाम को कोरियर आॅफिस पहुंचा तो मालिक की गालियां सुनी। क्यों रे! इतनी ‘लेट’ क्यों आया? कोरियर क्यों बच गये, पैसे काट लूंगा। सिर्फ इतना ही नहीं रात को सपने में भी कोरियर ही नजर आता है। घण्टी बजाता हूँ, मकान मालिक के चिल्लाने की आवाज आती है, एकदम से कह उठता हूँ- आपका कोरियर है। तभी नींद खुल जाती है। सोचता हूँ यह कैसी बीमारी लग गई है।

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