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राजनीति

5 वर्ष में पूंजीपतियों का ढाई लाख करोड़ माफ, इतने में संभव था 100 करोड़ लोगों का इलाज

Janjwar Team
10 Aug 2017 10:16 AM GMT
5 वर्ष में पूंजीपतियों का ढाई लाख करोड़ माफ, इतने में संभव था 100 करोड़ लोगों का इलाज
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कर्जमाफी के कारण आधा दर्जन सरकारी बैंक दिवालिया होने की कगार पर, पूंजीपतियों की लगी हैं निगाहें

किसानों की कर्जमाफी पर सरकार के पेट में उठती है मरोड़, होता है आर्थिक संकट का बहाना, पर पूंजीपतियों के हजारों करोड़ माफ करने से होता है विकास, देश में बढ़ती महंगाई का है यह सबसे बड़ा कारण

आर्थिक विश्लेषक मुनीष कुमार की विस्तृत रिपोर्ट

देश का बैकिंग सेक्टर इस समय गहरे संकट में है। बैंकों का एनपीए (ऐसा कर्ज जिसे बैंक वसूल पाने में अक्षम है) लगातार बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2017 के बजट में सरकार पब्लिक सेक्टर के बैंको को संकट से उबारने के लिए 8586 करोड़ रु की सहायता दी। इसके बावजूद भी बैंकों का संकट खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है।

देश के बैंको का कुल सकल एनपीए सात लाख-सात हजार करोड़ को पार चुका है। इस का एक चैथाई हिस्सा देश के जाने-माने दर्जन भर पूंजीपतियों ने दबा रखा है। जिन दर्जन भर पूंजीपतियों पर 5 हजार करोड़ रु से भी अधिक धनराशि बकाया है उनके नाम सार्वजनिक किए जा चुके हैं।

भूषण स्टील लिमिटेड, भूषण पावर एंड स्टील लिमिटेड, जेपी इन्फ्राटेक लिमिटेड, मोनेट इस्पात एवं एनर्जी लिमिटेड, लैंको इन्फ्राटेक लिमिटेड, माॅनेट इस्पात एवं एनर्जी लिमिटेड,ज्योति स्ट्रक्चर लिमिटेड, इलेक्ट्रोस्टील स्टील लिमिटेड, एमटेक आॅटो लिमिटेड, ऐरा इन्फ्रा इंजीनियरिंग लिमिटेड, अलोक इंडस्ट्रीज लिमिटेड, एबीजी शिपयार्ड लिमिटेड ने कुल एनपीए का 25 प्रतिशत अर्थात लगभग एक लाख पचहत्तर हजार करोड़ रु बैंकों का बकाया देना है।

विजय माल्या द्वारा बैंकों के 9 हजार करोड़ मारकर विदेश भागने को लेकर कांग्रेस-भाजपा आदि दल एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं परन्तु देश के भीतर मौजूद इन माल्याओं पर सभी चुप है। क्या सरकार इनका बकाया माफ करेगी या इन्हें भी माल्या की तरह विदेश भागने का सुरक्षित रास्ता दिलवाएगी, इसका जबाब अभी मिलना बाकी है।

भूषण स्टील अकेले ही बैंकों का 44000 करोड़ रु. का देनदार है। भूषण पावर को 35000 करोड़, अलोक इंडस्ट्रीज को 24000 करोड़, मोनेट इस्पात 12000 करोड़ व इलैक्ट्रो स्टील को 10 हजार करोड़ रु बैंकों के चुकाने हैं। सरकार व बैंक इस राशि को वसूलने में अक्षम साबित हो रहे हैं। पिछले दिनों बैंको की संयुक्त बैठक में उक्त राशि की वसूली को नेशनल कम्पनी आॅफ ट्रिब्यूनल में भेजने का निर्णय लिया गया। बताया जा रहा है कि ट्रिब्यूनल अक्टूबर माह से 180 दिनो के भीतर इस रकम की वसूली के लिए कार्यवाही करेगी।

मार्च 2017 तक देश की सरकारें ढाई लाख करोड़ रु का कर्ज पिछले 5 वर्षों में माफ कर चुकी हैं। इस ढाई लाख करोड़ रु की राशि से देश के प्रत्येक व्यक्ति को अच्छी इलाज की सुविधा मुहैया कराई जा सकती थी।

वित्तीय वर्ष 2016-17 में सरकार ने 81680 करोड़़ रु पूंजीपतियों का माफ कर दिया। वहीं इस बजट में मोदी सरकार ने कुपोषण के शिकार बच्चों के लिए मात्र लगभग 14862 करोड़ रु का प्रावधान किया था। देश में हर वर्ष 0 से 6 वर्ष उम्र के 15 लाख बच्चे कुपोषण की वजह से मर जाते हैं, जिसको देखते हुए यह राशि बेहद कम है। परन्तु मोदी सरकार ने इन कुपोषण से मरते बच्चों के मुकाबले देश का खजाना पूंजीपतियों पर लुटाना ज्यादा जरुरी समझा।

2016-17 में ही सरकार ने बैंकों के 81680 करोड़ रु का पूंजीपतियों पर बकाया कर्ज माफ कर दिया। इसमें स्टेट बैंक व उसके एसोसिएट बैंकों का ही अकेले हिस्सा 25770 करोड़ रु. है।

इसके अतिरिक्त मुख्यतः पंजाब नेशनल बैंक द्वारा 9210 करोड़, बैंक आफ इंडिया द्वारा 7350 करोड़ तथा केनरा बैंक द्वारा 5550 करोड़ रु की राशि बैंकों की लेखा बहियों से (राईट आफ) माफ कर दी गयी। देश के कुल 7 लाख सत्तर हजार करोड़ रु के एनपीए में से 6 लाख करोड़ से भी अधिक की धनराशि पब्लिक सेक्टर बैंको की बतायी जा रही है।

इस कर्ज माफी के कारण पब्लिक सेक्टर बैंको की हालत बेहद पतली हो चुकी है। राहुल गांधी बेशक मोदी सरकार पर पूंजीपतियों के कर्ज माफी का आरोप लगा रहे हैं। परन्तु कांग्रेस सरकार ने भी पूंजीपतियों की कर्ज माफी में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है।

बैंको का कांगे्रस की मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल 2012-13 में 27230 करोड़, 2013-14 में 34410 करोड़ रु का कर्ज माफ कर दिया गया। वहीं भाजपा सरकार ने 2014-15 में पूंजीपतियों का 49020 करोड़, 2015-16 में 57590 करोड़ व बीते वित्तीय वर्ष 2016-17 में 81680 करोड़़ रु माफ कर दिया।

केबी थामस के नेतृत्व बनी पब्लिक एकाउन्ट कमेटी आॅॅफ पार्लियामेंट का कहना है कि देश के पब्लिक सेक्टर बैंको के कुल एनपीए 6.8 लाख करोड़ का 70 प्रतिशत हिस्सा कार्पोरेट सेक्टर ने दबा रखा है। किसानों के पास इस एनपीए का मात्र 1 प्रतिशत ही बकाया है। हकीकत यह है कि देश की सरकार को किसानों की कर्ज माफ करना तो उसकी आंखों में शूले की तरह चुभता है परन्तु पूंजीपतियों-कोर्पोरेट सेक्टर का कर्ज माफ करना उसे तिनका भी नहीं लगता।

सरकार द्वारा पूंजीपतियों को देश का धन दानों हाथों से लुटाने का सिलसिला यहां पर आकर अभी थमा नहीं है। क्रेडिट एजेन्सी इंडिया क्रेडिट का कहना है कि 4 लाख करोड़ रु का कोर्पोरेट लोन अभी और माफ किया जाएगा।

सरकार बैंकिग सैक्टर का निजीकरण करने के लिए आतुर है। तमाम क्रेडिट एजेन्सियों के द्वारा पब्लिक सेक्टर के बैंकों की नकारत्मक छवि बनायी जा रही है। तथा इसके लिए बैंक कर्मचारियों व उनकी यूनियनों पर दोषारोपण किया जा रहा है।

यदि आज देश के पब्लिक सेक्टर बैंको की हालत खराब है तो इसके लिए भी देश की सरकारें ही जिम्मेदार हैं। एक आम आदमी के डिफाल्टर होने पर बैंक उसके बर्तन-भांडों की भी कुड़की कर देता है। परन्तु सरकार ने पूंजीपतियों से कर्ज वसूली की जगह कर्ज माफी का रास्ता अख्तियार किया हुआ है। सवाल उठता है कि सरकार उनकी कुड़की क्यों नहीं करती है। वर्ष 2015 में सरकार ने पब्लिक सेक्टर बैंकों की स्थिति सुधारने के लिए इंन्द्रधनुष स्कीम की घोषणा की। जिसके तहत अगले 4 वर्षों में सरकार पब्लिक सेक्टर के बैंकों को 70 हजार करोड़ रु. की भरपाई करेगी।

इसके तहत 2017 के वित्तीय वर्ष में सरकार ने आईडीबीआई बैंक को 19 सौ करोड़, बैंक आफ इंडिया को 15 सौ करोड, यूको बैंक को 1150 करोड़, आंध्रा बेंक को 11 सौ करोड़, इंडियन ओवरसीज बैंक को 11 सौ करोड़, देना बैंक को 600 करोड़, इलाहबाद बैंक को 418 करोड़, यूनाइटेड बैंक को 418 करोड़, बैंक आफ महाराष्ट्र को 300 करोड़, सेन्टल बेंक को 100 करोड़ रु. संकट से उबारने के लिए जारी किए।

सरकार ने इन बैंकों को सख्त निर्देश दिये हैं कि बैंक अपने लिए बाजार से पूंजी जुटाए तथा घाटे में चल रहीं शाखाएं बन्द करें। सरकार ने बैंकों को कम महत्व की सम्पत्तियों को बेचने के लिए भी कहा गया है। इससे स्पष्ट है कि सरकार आने वाले समय में देश के पब्लिक सेक्टर बैंको के निजीकरण की प्रक्रिया तेज होगी। सरकार एक बैंक का दूसरे बैंक में विलय कर बैंकों व कर्मचारियों की संख्या में कटौती के कार्यक्रम को आगे बढ़ाएगी। सरकार की इस नीति पर चलते हुए यदि पब्लिक सेक्टर के बैंक आपको दिवालिया होते हुए दिखाई दें तो इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं होगी।

देश के पब्लिक सेक्टर के बैंकों की खस्ता हालत इन सरकारों की ही देन है। दरअसल देश की सरकारें आम आदमी, मजदूर-किसानों के लिए नहीं बल्कि पूंजीपतियों के लिए काम कर रही हैं। देश की संसद के दोनों सदनों में मौजूद सांसद हो या देश के राज्यों की विधानसभाओं के विधायक हो, सभी धन्ना सेठ हैं। तथा पूंजीपति वर्ग से ही आते हैं। इसी पूंजीपति वर्ग की धन-दौलत को बढ़ाने के लिए देश की जनता की मेहनत पर खड़े पब्लिक बैंकिग सेक्टर को कोर्पोरेट घरानों पर लुटाया जा रहा है, उसे तबाह-बरबाद किया जा रहा है।

पहले पूंजीपति वर्ग ने बैंको का लोन मारकर तथा नाममात्र के ब्याज पर सस्ता लोन लेकर बैंको को तबाही की तरफ धकेला। अब यही पूंजीपति वर्ग इन बैंकों को निजी बनाकर इनका पूरा मालिक बनना चाहता है। देश का प्रधान चैकीदार पूंजीपति वर्ग की इस चाहत में उनके साथ है तथा लाव-लश्कर के साथ उनकी सेवा में जुटा है।

(स्वतंत्र पत्रकार मुनीष कुमार आर्थिक मसलों के जानकार हैं और वह उत्तराखंड में समाजवादी लोक मंच के सहसंयोजक हैं।)

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