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सिक्योरिटी

डकैतों-बागियों के लिए कुख्यात रहे चंबल की खूबसूरत और ऐतिहासिक तस्वीर दिखेगी चंबल आर्काइव में

Prema Negi
12 Sep 2018 5:04 PM GMT
डकैतों-बागियों के लिए कुख्यात रहे चंबल की खूबसूरत और ऐतिहासिक तस्वीर दिखेगी चंबल आर्काइव में
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चंबल संग्रहालय का प्रतीक चिन्ह रिलीज किया गया, यही होगी चंबल आर्काइव्स की पहचान

संग्रहालय में 17वीं शताब्दी से लेकर अब तक करीब 20 हजार पुस्तकें-पत्रिकाएं, सैकड़ों दुर्लभ दस्तावेज, विभिन्न रियासतों से लेकर विदेशों तक के चालीस हजार डाक टिकट, चार हजार हाथ से लिखे पत्र हैं....

इटावा, जनज्वार। चौगुर्जी स्थित चंबल संग्रहालय के प्रतीक चिन्ह को रिलीज किया गया। अब इसी निशान से चंबल आर्काइव्स को पहचाना जाएगा। इस प्रतीक चिन्ह का डिजाइन बीबीसी के प्रसिद्ध कार्टूनिस्ट गोपाल शून्य ने बनाया है। चंबल संग्रहालय की बौद्धिक संपदा में हर दिन लगातार इजाफा हो रहा है। संग्रहालय में 17वीं शताब्दी से लेकर अब तक करीब 20 हजार पुस्तकें-पत्रिकाएं, सैकड़ों दुर्लभ दस्तावेज, विभिन्न रियासतों से लेकर विदेशों तक के चालीस हजार डाक टिकट, चार हजार हाथ से लिखे पत्र हैं।

साथ ही प्राचीन पेंटिंग-तस्वीरें, प्राचीन मानचित्रों के अलावा राजा भोज के दौर से लेकर अलग-अलग काल के करीब तीन हजार प्राचीन सिक्के, सैकड़ों ग्रामोफोन रिकार्ड, सैकड़ों दस्तावेजी फिल्में आदि सामग्री उपलब्ध है।

यहां से मिली प्रतीक चिन्ह बनाने की प्रेरणा

दरअसल, आज से करीब 1200 साल पहले 9वीं सदी (वर्ष 801 से 900 के बीच) में प्रतिहार वंश के राजाओं द्वारा बनाया गया। इस मंदिर में 101 खंबे और 64 कमरे हैं। यह भवन गुर्जर व कछप कालीन है। चारों तरफ कोरिडोर के साथ एक गोलाकार कमरा बीच में बना हुआ है। इसका निर्माण लाल-भूरे बलूना ग्रेनाईट पत्थरों से किया गया है, जिसका आज भी बड़े पैमाने पर खनन मितावली के आसपास हो रहा है।

फिलहाल यह बेजोड़ नमूना पूरी तरह बदहाली की स्थिति में है। मितावली गांव की ऊंची पहाड़ी पर स्थित यह साधना का विश्वविद्यालय पूर्व में हुए अवैध खनन के चलते जीर्ण-शीर्ण हो चुका है।

बिखरा ज्ञान सहेजने में जुटा है संग्रहालय

संग्रहालय समाज में बिखरे अमूल्य ज्ञान स्रोत सामग्री सहेजने के मिशन में शिद्दत से जुटा है, जहां से भी बौद्धिक संपदा मिलने की रोशनी दिखती है, संग्रहालय उन सुधीजनों से संपर्क कर रहा है। तमाम स्रोतों के ज्ञानकोष से चंबल संग्रहालय हर दिन समृद्ध होता जा रहा है।

चंबल घाटी में साइकिल से 2800 किलोमीटर यात्रा कर गहन शोध करने वाले शाह आलम कहते हैं प्रतीक चिन्ह का मूल स्रोत चंबल घाटी के घने बीहड़ो-जंगलों के बीच मध्य प्रदेश के मुरैना सिटी से 35 किमी दूर मितावली गांव में है। ये जमीन से करीब 300 फीट ऊंची पहाड़ी पर बना है। यहां तक पहुंचने के लिए सिंगल लेन सड़क है, कई जगह जिसकी हालत खस्ता है। यहां तक पहुंचने में आपके को थोड़ी मुश्किल का सामना जरूर करना पड़ता है, लेकिन यहां आने के बाद महसूस होगा कि यदि इसे न देखते तो देखने के लिए बहुत कुछ छूट जाता।

बढ़ेगा पर्यटन, दिखेगी खूबसूरत तस्वीर

शाह आलम बताते हैं कि चंबल संग्रहालय शोध के साथ चंबल में पर्यटकों की संख्या बढ़ सकती है। कई लोगों ने इसके लिए संपर्क किया है। आगरा का ताजमहल और ग्वालियर का किला दुनिया को अपनी तरफ खींचता रहा है। यहां आने वाले इन मेहमानों को डकैतों-बागियों के लिए बदनाम रहे चंबल की खूबसूरत और ऐतिहासिक वादियों की तस्वीर भी दिखाई जा सकेगी। आजादी के आंदोलनों की प्रमुख धरोहरों को विश्व के मानचित्र पर उचित स्थान मिल सकता है। यहां देशी-विदेशी पर्यटकों का जमावड़ा बढ़ सकता है। इसका सीधा फायदा यहां के बीहड़वासियों को तो होगा ही साथ ही सरकारों के राजकोष में भी इजाफा हो सकेगा।

प्रतीक चिन्ह विमोचन में शामिल रहे ये लोग

चंबल संग्रहालय के संरक्षक किशन पोरवाल, वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश पालीवाल, वरिष्ठ पत्रकार दिनेश शाक्य, नेम सिंह रमन, प्रेमशंकर, डॉ. ए प्रसाद, कुश चतुर्वेदी, प्रो. वीपी शर्मा, गिरीश पाली, रवीन्द्र सिंह चौहान आदि लोग शामिल रहे।

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