Begin typing your search above and press return to search.
शिक्षा

दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रों से फीस लेता है या हफ्तावसूली करता है

Janjwar Team
31 May 2018 5:48 PM GMT
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रों से फीस लेता है या हफ्तावसूली करता है
x

दिल्ली विश्वविद्यालय में एक ही पढाई पढने के लिए फीस अलग—अलग है। सबसे कम फीस 3046 रुपये सालाना है, तो अधिकतम फीस 38105 रुपये सालाना है। बाकी कॉलेज इन दो सीमाओं के भीतर फीस वसूलते हैं....

दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक रवींद्र गोयल का विश्लेषण

दिल्ली विश्वविद्यालय में इस साल 66 संस्थाओं में बीए स्तर पर दाखिले किये जायेंगे। जिसमें दो विश्वविद्यालय विभाग और 64 कॉलेज शामिल हैं। कहा जाता है कि यह दिल्ली विश्वविद्यालय एक केंद्रीय विश्वविद्यालय है और यहाँ देश का कोई भी छात्र बिना भेदभाव के दाखिला ले सकता है। बेशक आजकल निहित स्वार्थों द्वारा इसके केंद्रीय चरित्र पर सवाल उठाये जा रहे हैं, पर वो सवाल दूसरा है।

इस समय यह विश्वविद्यालय देश के सबसे अच्छे विश्वविद्यालयों में माना जाता है और हर वो छात्र जो यहाँ पढाई का खर्चा दे सकता है और दाखिला पा जाता है, वो यहाँ पढ़ सकता है। लेकिन वो पढ़ पायेगा की नहीं यह इस बात पर भी निर्भर करेगा की दाखिले की पात्रता के अलावा उसके पास फीस आदि देने की हैसियत भी है या नहीं।

स्तरीय पढ़ाई केवल पढ़ने वाले के लिए ही गरीबी से मुक्ति की राह नहीं खोलती, बल्कि व्यापक समाज के लिए भी हितकारी है, इसीलिए आज के दौर में यह सभी जिम्मेवार व्यक्तियों द्वारा यह स्वीकार किया जाता है कि राज्य द्वारा सब युवाओं के लिए सस्ती शिक्षा की सुविधाएँ मुहैय्या करायी जानी चाहिए।

पिछले कुछ सालों में इस सोच पर हुक्मरानों ने पलटी मारी है। तर्क है कि सरकारों को और जरूरी काम करने चाहिए और शिक्षा को गैर सरकारी हाथों में सौंप दिया जाना चाहिए। निजी स्वार्थी तत्व भी इस तर्क से संभावित मुनाफे के मद्दे नज़र शिक्षा के निजीकरण के पक्ष में माहौल बनाने में जुटे रहते हैं।

लेकिन पहले की बनाई हुई संस्थाओं को रातोंरात ख़त्म कर देना संभव नहीं है। ऐसी ही संस्था है दिल्ली विश्वविद्यालय। यहाँ कानूनी तौर पर बहुत कम खर्चे में पढाई की जा सकती है। बीए की पढाई के लिए tution फीस है मात्र 15 रुपये महीना या 180 रुपये सालाना। और शेष सभी खर्चा भारत सरकार देने के लिए बाध्य है।

बेशक यहाँ भी अपनी जिम्मेवारियों से हटने के लिए सरकार ने पिछले बीस/ पच्चीस सालों से कोई कॉलेज नहीं खोले हैं, पर अब तक tution फीस नहीं बढ़ा पाई है। ऐसी स्थिति में और चारों तरफ निजीकरण के बढ़ते शोर में यूनिवर्सिटी अफसर, प्रिंसिपल्स और शिक्षकों के एक हिस्से ने फीस बढ़ोतरी के माध्यम से भ्रष्टाचार और हेरा फेरी का एक चोर दरवाज़ा ढूंढ़ लिया है।

आलम यह है एक ही विश्वविद्यालय में एक ही पढाई पढने के लिए फीस अलग अलग है। इसमें कितना अंतर है इसका अंदाज़ा निम्न से लगाया जा सकता है। सबसे कम फीस 3046 रुपये सालाना है, तो अधिकतम फीस 38105 रुपये सालाना है। बाकि कॉलेज इन दो सीमाओं के भीतर फीस वसूलते हैं।

संस्था का नाम सालाना फीस 2018–19 के लिए

डिपार्टमेंट ऑफ़ जर्मनिक एंड रोमांस स्टडीज 3046 रुपये
सैंट स्टीफेंस कॉलेज 38105 रुपये

(स्रोत- DU एडमिशन बुलेटिन 2018-19)

तय है की यह राशि छात्रों से विभिन्न मदों में वसूली जाती है। ये मद कितने गैरजरूरी और मनमाने होंगे ये मद इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि JNU में सालाना फीस आज भी केवल 400 रुपये ही है। यदि वहां फीस इतनी कम है और DU में मनमानी फीस तो इसका एक मात्र कारण है की जहाँ JNU के छात्र और शिक्षक फीस के सवाल के महत्व को समझते हैं वहीं इस सवाल पर DU में शिक्षकों/ छात्रों की कोई चिंता नहीं है।

मध्यम वर्ग से आने वाले ये लोग आम समाज से कितना कटे हुए हैं, यह इस बात का भी सबूत है। उम्मीद करनी चाहिए की प्रगतिशील छात्र/शिक्षक/कर्मचारी इस सवाल के महत्व को समझेंगे और इस सवाल को मुस्तैदी से उठाएंगे। मांग करेंगे की DU में मनमानी फीस का चलन बंद हो, नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब मजदूर किसान और मेहनतकश तबकों के बच्चे विश्वविद्यालय की शिक्षा से बिलकुल बाहर खदेड़ दिए जायेंगे।

गौरतलब है कि सरकार ने उच्चशिक्षा का 30 फीसदी खर्चा छात्र फीस से वसूल करने की अपनी मंशा का इज़हार कर दिया है। पंजाब विश्वविद्यालय में इसको लागू करने की कोशिश भी कुछ दिन पहले हो चुकी है। ये अलग बात है कि वहां के छात्रों के प्रबल विरोध के चलते सरकार को पीछे हटना पड़ा था।

(दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक रवींद्र गोयल मजदूरों संबंधी मसलों को लेकर सक्रिय रहते हैं।)

Janjwar Team

Janjwar Team

    Next Story

    विविध