सरकार में थोड़ी भी नैतिकता बची है तो वह नोटबंदी पर श्वेत पत्र जारी करे
शशांक यादव
एमएलसी, उत्तर प्रदेश
रिजर्व बैंक की यह घोषणा कि 99 फीसदी हजार और 5 सौ के नोट बैंकों में वापस आ गए हैं। 15 लाख 44 हजार करोड़ रुपए के हजार-पांच सौ के नोटों में 15 लाख 28 हजार करोड़ रुपए की बैंकों में वापसी हुई है। कालाधन समाप्त करने के नाम पर शुरू की गयी यह नोटबंदी अब शक के दायरे में है। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के आरोप सही लग रहे हैं कि यह बड़ा घोटाला है और नोटबंदी से मोदी कालेधन को तैयारी के साथ सफेद कर रहे हैं।
नोटबंदी पर अर्थव्यवस्था पर असर दिखाने के लिए कहा जा रहा है कि तीन लाख करोड़ से अधिक की धनराशी कर योग्य होने जा रही है। यह बात सदन में केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कही, लेकिन उनका यह आकलन किस अध्ययन पर है, कोई नहीं जानता।
नोटबंदी का दूसरा फायदा गिनाया जा रहा है कि आयकर देने वालों की संख्या बढ़ रही है, जो कि स्वाभाविक है। स्वाभाविक इसलिए है कि करदाता हर साल बढ़ रहे हैं, लोग इसका महत्व समझने लगे हैं, नोटबंदी नहीं भी होती तो भी कर देने वालों की संख्या में इजाफा होता।
लेकिन जो घाव मोदी सरकार ने नोटबंदी से दे दिए हैं, उसका कोई आकलन नहीं हो रहा है। नोटबंदी के बाद विकास दर घटकर 6 प्रतिशत रह गयी है। भारत सरकार के श्रम मंत्रालय के आंकड़े और 15 अगस्त को प्रधानमंत्री के भाषण में जमीन-आसमान का अंतर है। रोजगार सृजन नहीं हो पा रहा है, निर्माण की गति रुक गयी है, उत्पादन कम हुआ है और बिल्डर सेक्टर उबर ही नहीं पा रहा है, लेकिन जुमलेबाजी जारी है।
नोटबंदी और जीएसटी की सामूहिक मार से कुटीर उद्योग आखिरी सांसें गिन रहा है। नोटबंदी के बाद किसान बड़ी संख्या में साहूकारों के चंगुल में फंसे हैं, क्योंकि उनके पास खेती और जीवन की अन्य जरूरतें पूरी करने के लिए पैसे नहीं थे। कर्ज माफी रिकाॅर्ड फसल उत्पादन और किसान आमदनी दो गुने करने के बाद भी किसान आत्महत्याएं बढ़ रही हैं। नोटबंदी का किसान संसद के बगल में जंतर-मंतर पर अपना पेशाब और जहर पीकर भी सरकार की चिंता का हिस्सा नहीं बन पाया।
सरकार अगर नोटबंदी के फैसले को सही मानती है तो हिम्मत करे और श्वेत पत्र जारी करे। जनता को सरकार बताए कि किन परिस्थितियों में नोटबंदी लागू की गयी थी। कितना पैसा आया था, 8 नवंबर 2016 के बाद रोजगार के कितने अवसर बढ़े। नोट छपाई की प्रचार-प्रसार योजना में कितने पैसे खर्च हुए। नोटबंदी के लिए लाइन लगाकर, इलाज के लिए पैसों के अभाव में कितनी मौतें हुईं और शादियां कैंसिल होने में समाज का कितना नुकसान हुआ, इसका ब्यौरा आना चाहिए।
यह जुमला कि अमीरों का पैसा निकालकर सरकार गरीबों में बांटेगी, इस पर जनता को कुछ देर तक तो शांत रखा जा सकता है, लेकिन सवाल उठने बंद नहीं होंगे। शायद इसीलिए सरकार के मैनेजरों ने 2022 में नए भारत का झांसा देना शुरु कर दिया है।
नोटबंदी के लाभार्थी अब तो पूंजीपति ही लग रहे हैं। सरकार ने शुरू में सिर्फ पहचान पत्र के आधार पर 4 हजार रुपए प्रति व्यक्ति के नोट बदलने की व्वस्था ने ही अधिकतर काले धन को किनारे लगा दिया, क्योंकि उस शुरु के सप्ताह का रिकाॅर्ड बनाया ही नहीं गया कि किस-किस व्यक्ति ने नोट बदले और कितनी बार-कितने।
एक फायदा और बताया गया था कि आतंकवादियों की फंडिंग बंद होगी। नोटबंदी के बाद ही सबसे वीभत्स और दर्दनाक हादसे सीमापार इलाकों में हुए हैं। आतंकवाद में कहीं कोई प्रत्यक्ष कमी नहीं दिखाई पड़ी।
विदेशों में नोटबंदी ने हमेशा सरकारों के विरूद्ध क्रांति खड़ी की है, लेकिन हमारे देश में बहुत ही होशियारी से नोटबंदी को धार्मिक आतंकवाद, राॅबिनहुड सरीखी गरीबों को मदद देने का झांसा और राष्ट्रप्रेम की चाशनी में पूंजीपतियों ने भारत की अर्थव्यवस्था को अपने कब्जे में ले लिया है।
सरकार ईमानदार है तो बताए कि सरकारी बैंकों का लाखों करोड़ रुपए दाबे बैठे पूंजीपतियों की वित्तीय हैसियत में नोटबंदी के बाद क्या अंतर आया है? जो जानकारी आ रही है उसके अनुसार तो असंगठित क्षेत्र मृतप्राय हो गया और संगठित क्षेत्र के पूंजीपति दिन दुनी रात चौगुनी से बढ़ रहे हैं।
अंत में यही कहा जा सकता है कि नोटबंदी के प्रभाव की ईमानदारी से जांच होगी तो यही साबित होगा कि रिजर्व बैंक के तत्कालीन मुखिया रघुराम राजन राय के खिलाफ और विपक्षी दलों की आशंकाओं को परे ढकेलते हुए सरकार ने पूंजीपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए नोटबंदी लागू की थी।