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उत्तराखंड में डॉक्टरों ने कहा, नौकरी छोड़ देंगे पर पहाड़ नहीं चढ़ेंगे

Janjwar Team
22 Jan 2018 10:09 AM GMT
उत्तराखंड में डॉक्टरों ने कहा, नौकरी छोड़ देंगे पर पहाड़ नहीं चढ़ेंगे
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चार दर्जन से अधिक डॉक्टर सरकार व उनके बीच हुए करार को तोड़कर पहाड़ में अपनी सेवायें देने से मुकर चुके हैं। पहाड़ में अपनी सेवायें देने की शर्त पर सरकार के खर्च पर डॉक्टर बने इन धरती के भगवानों का कसम तोड़ना पहले से चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था को और बदहाल कर रहा है...

हल्द्वानी से हरीश रावत और गिरीश चंदोला की रिपोर्ट

प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की दशा व दिशा सुधारने के लिए सरकारी स्तर से तमाम प्रयास किये जाने के बाद प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाएं पटरी पर आती नहीं दिखाई दे रही हैं। आलम यह है कि सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए जिन एमबीबीएस छात्रों को विशेष रियायती दरों पर चिकित्सक बनाया था, अब वे सरकार के साथ हुए करार से साफ मुकर रहे हैं।

करीब चार दर्जन से अधिक चिकित्सकों ने सरकार के साथ हुए करार को ठेंगा दिखाते हुए पहाड़ में अपनी सेवाएं देने से साफ इंकार कर दिया है। ऐसे में पहाड़ में अपनी सेवायें देने की शर्त पर सरकार के खर्च पर डॉक्टर बने इन धरती के भगवानों का कसम तोड़ना कोढ़ में खाज का काम कर रहा है।

सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने के लिए जिन युवाओं को रियायती दरों पर चिकित्सक बनाया था, अब वही डॉक्टर प्रदेश सरकार ओर उनके बीच हुए करार को ठेंगा दिखा रहे हैं।

गौरतलब है कि चार दर्जन से अधिक डॉक्टर सरकार व उनके बीच हुए करार को तोड़कर पहाड़ में अपनी सेवायें देने से मुकर चुके हैं जिसके चलते सरकार की इन चिकित्सकों को पहाड़ चढ़ाने की रणनीति पूरी तरह फेल होती दिख रही है। ऐसे हालातों में पर्वतीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की हालत क्या होगी, इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

मेडिकल कॉलेज हल्द्वानी से पूर्व में एमबीबीएस कर रहे करीब 500 डॉक्टरों में से 50 डॉक्टरों ने सरकार व उनके बीच हुए करार को तोड़ दिया है, इसमें 10 स्पेशलिस्ट चिकित्सक भी शामिल हैं।

गौरतलब है कि हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस करने वाले डॉक्टर को एक बांड भरना होता है, जिसके तहत उनको 5 साल तक पर्वतीय इलाकों में अपनी सेवा देनी होती है, यदि डॉक्टर ऐसा नहीं करते तो उनको 18 लाख रुपये जमा करने होते हैं, जबकि स्पेशलिस्ट डॉक्टर बनने पर दुर्गम इलाकों में 3 साल की सेवा देना करार के तहत अनिवार्य है।

यदि वह ऐसा नहीं करते तो उन्हें 15 से 17 लाख रुपये जमा करने होते हैं, हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज प्राचार्य के मुताबिक पहाड़ो में सुविधायें न उपलब्ध होने की बात कहकर डॉक्टर अनुबंध को तोड़कर पर्वतीय क्षेत्रों में अपनी सेवाएं देने से साफ इंकार कर देते हैं। ये हाल है पर्वतीय क्षेत्रों का।

अब अगर हम बात करें कुमाऊं के प्रवेशद्वार कहे जाने वाले हल्द्वानी शहर की तो यहां सरकारी अस्पतालों में एक भी न्यूरो सर्जन नहीं है। गम्भीर मरीजों को प्राइवेट अस्पतालों में तैनात न्यूरो सर्जनों को मोटी फीस देकर अपना इलाज कराने के लिए विवश होना पड़ रहा है।

हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज में बहुत कम फीस देकर एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर चुके डॉक्टर अनुबन्ध के अनुसार जब पहाड़ों में अपनी सेवाएं नहीं दे रहे तो ऐसे में विपक्ष भी सरकार का ध्यान इस ओर आकृषित करने के लिए लगातार अपना विरोध जता रहा है।

कांग्रेसी युवा नेता हेमन्त साहू इस पूरे मामले को बेहद गम्भीर बताते हुए कहते हैं कि हल्द्वानी मेडिकल कॉलेज से सरकार के खर्च पर जो युवा डॉक्टर बने हैं, उन्हें अनुबन्ध के मुताबिक पहाड़ में अपनी सेवाएं देनी चाहिए। वे कहते हैं कि यदि चिकित्सक मुकरता है तो उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाई किये जाने के साथ ही उनकी डिग्री भी सरकार को छीन लेनी चाहिए।

इस बाबत भाजपा के कुमाऊं मीडिया प्रभारी सुरेश तिवारी कहते हैं कि प्रदेश की त्रिवेन्द्र सरकार स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर बेहद गम्भीर है। मुख्यमंत्री खुद इसकी मॉनेटरिंग कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार की कारगुजारियों के चलते स्वास्थ्य सेवाओं की बिगड़ी हुई स्थिति को भाजपा सरकार पटरी पर ले आई है। सभी अस्पतालों में चिकित्सकों की तैनाती की जा रही है। (फोटो : संजय चौहान की वॉल से)

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