अन्य विश्वविद्यालयों से दुगुनी फीस वसूलता है विकलांगों का विश्वविद्यालय
विकलांग विश्वविद्यालय में फ़ीस का स्वरूप इस तरह बनाया गया है कि छूट के बावजूद अन्य मदों की फीस ही अन्य विश्वविद्यालयों से तकरीबन दुगुनी है...
लखनऊ से अनुराग अनंत की रिपोर्ट
ये विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश की राजधानी में स्थित है। नाम में पुनर्वास लगा हुआ है। विकलांग कल्याण विभाग की ओर से संचालित होने वाला विशेष विश्वविद्यालय है। विश्वविद्यालय साल 2009 में दिव्यांगों को विशेष सुविधाओं के साथ शिक्षा प्रदान के उद्देश्य से हुआ था। यहाँ हर पाठ्यक्रम में 50 प्रतिशत सीट्स दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए आरक्षित हैं।
जी हाँ, इस विश्वविद्यालय का नाम डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय है। ये भारतभर में अपनी तरह का एकमात्र विश्वविद्यालय है जिसकी स्थापना दिव्यांगों के प्रोत्साहन, उत्थान व पुनर्वास के लिए की गयी है। पर यहाँ इन उदेश्यों पर पलीता लगा जा रहा है। विश्वविद्यालय के घोषित लक्ष्य को धता बताया जा रहा है।
सामान्यतया आम विश्वविद्यालयों में दिव्यांग विद्यार्थियों के लिए सामान्य विद्यार्थियों से कम फीस होती है। उन्हें शुल्क में छूट प्रदान की जाती है, लेकिन दिव्यांगों के पुनर्वास और उत्थान के लिए स्थापित इस विशेष विश्वविद्यालय में इस न्यूनतम राहत पर भी बट्टा लगा हुआ है।
जानकार हैरानी होती है कि लखनऊ विश्वविद्यालय, राज्य के अन्य विश्वविद्यालय और राज्य में स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय में अलग अलग पाठ्यक्रम के लिए जितना शुल्क एक सामान्य विद्यार्थी से वसूल किया जाता है, यहाँ दिव्यांग पुनर्वास विशेष विश्वविद्यालय में उसका दुगुना दिव्यांग छात्र देने को अभिशप्त हैं।
एमए हिंदी प्रथम वर्ष के छात्र अजयराज त्रिपाठी कहते हैं कि कई विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में दिव्यांगों की फीस पूरी तरह माफ़ होती है या बेहद कम होती है, पर हम तो यहाँ अन्य विश्वविद्यालयों के सामान्य विद्यार्थियों से भी दोगुनी फीस दे रहे हैं।
ये कैसा पुनर्वास है? सवाल सामने रास्ता रोक कर खड़ा हो जाता है। इस सवाल के उत्तर में विश्वविद्यालय के प्रवक्ता प्रो. एपी तिवारी कहते हैं, विश्वविद्यालय के परंपरागत पाठ्यक्रमों की ट्यूशन फीस पूरी तरह माफ़ है, पर प्रोफेशनल कोर्सेस के लिए ट्यूशन 50 फ़ीसदी ली जाती है। फिर सवाल उठता है आधी होने के बावजूद अन्य विश्वविद्यालयों के सामान्य विद्यार्थियों के मुकाबले दोगुनी फीस देते हैं दिव्यांग विद्यार्थी? जवाब एक वाक्य का। इस विश्वविद्यालय में फ़ीस का स्वरूप इस तरह का है कि छूट के बावजूद अन्य मदों की फीस ही अन्य विश्वविद्यालयों से ज्यादा है।
दरअसल इस विश्वविद्यालय में सिर्फ चार पाठ्यक्रम हैं जो परंपरागत श्रेणी में रखे गए हैं। जिनके लिए प्रशासन शत-प्रतिशत फीस छूट का दावा करता है, असल में ये छूट मिलने पर भी मामला ढाक के तीन पात ही रहता है। विश्वविद्यालय में चलने वाले दो दर्जन से ज्यादा पाठ्यक्रमों में सिर्फ बीए, बीकॉम, एमए और एमकॉम ये चार पाठ्यक्रम हैं जिन्हें परंपरागत श्रेणी में रखा गया है। इसके अलावा बीएससी और एमएससी जैसे सामान्य प्रचलन व के कोर्सेस को भी प्रोफेशनल कोर्सेस की श्रेणी में रखा गया है।
परंपरागत पाठ्यक्रमों में शत-प्रतिशत फीस माफ़ होने का असर देखिए कि यहाँ एमए के पाठ्यक्रम में दिव्यांग विद्यार्थी के लिए फीस पूरी तरह माफ़ है। इसके बाद भी अन्य मदों में विद्यार्थियों से 7200 रुपये लगभग वसूल लिए जाते हैं। वहीं राज्य के अन्य विश्वविद्यालयों में वार्षिक फीस एमए के पाठ्यक्रम के लिए 3000 रुपये से 3500 रुपये तक है। यही हाल बीए, बीकॉम जैसे पाठ्यक्रमों का भी है। मतलब अंधेरे में अंधेर नहीं है, बल्कि उजाले में अंधेर है।
नीचे दी गई तालिका में पुनर्वास विश्वविद्यालय और लखनऊ विश्वविद्यालय में दिव्यांगों से वसूल किये जाने वाले शुल्क का तुलनात्मक विवरण है।
पाठ्यक्रम | पुनर्वास विश्वविद्यालय | लखनऊ विश्वविद्यालय |
बीए | 7210 | 4719 |
बीकॉम | 8210 | 8919 |
बीबीए | 28810 | 35775 |
एमए | 7210 | 3377 |
एमकॉम | 8210 | 11804 |
एमबीए | 46610 | 80000 |
एलएलबी ऑनर्स | 35610 | 51000 |
एलएलएम | 39210 | 10184 |
बीबीए | 13210 | 2705 |
एमएससी | 28610 | 5177 |
एमसीए | 43610 | 54025 |
बीटेक | 84610 | 80000 |
अब बात साफ़ है कि यदि विशेष उद्देश्यों से बनी संस्थाएं ही अपने मूल उद्देश्य पूर्ति में अक्षम हैं तो संस्थाओं की स्थापना के औचित्य पर ही सवालिया निशान खड़ा हो जाता है। जो कि कल्याणकारी राज्य की संकल्पना के सुन्दर माथे पर कलंक की तरह लगता है।
(जनज्वार के सहयोगी पत्रकार अनुराग अनंत बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ से पत्रकारिता में पीएचडी कर रहे हैं।)