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जनज्वार विशेष

मुस्लिम औरतों को न्याय क्या संघ की शरण में जाने से पहले नहीं दिला पातीं फरहा फ़ैज़

Prema Negi
19 July 2018 2:07 PM GMT
मुस्लिम औरतों को न्याय क्या संघ की शरण में जाने से पहले नहीं दिला पातीं फरहा फ़ैज़
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मुस्लिम महिलाओं को सामाजिक न्याय दिलाने जैसी बड़ी बड़ी बात करने वाली फरहा फैज़ उर्फ लक्ष्मी वर्मा महामानव महात्मा गाँधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे की मूर्ति पर माल्यार्पण करके उसकी विचारधारा के आगे नतमस्तक होती हैं...

सुशील मानव का विश्लेषण

डिबेट के नाम पर लोगों को उकसाना और मारपीट करना-करवाना यही अब जी न्यूज और जी भारत जैसे कथित राष्ट्रवादी गोदी चैनलों का चरित्र और पेशा रह गया है। ऐसा ये तमाम ज़रूरी मुद्दे और सांप्रदायिक सत्ता के कुत्सित एजेंडे से आवाम का ध्यान भटकाने के लिए करते हैं। आए दिन टीवी डिबेट में होने वाले शर्मनाक वाकिये स्क्रिप्टेड होते हैं। इसे यूँ भी कहा समझा जा सकता है कि डिबेट में हिस्सा लेने वाले कार्टून टाइप के लोग दरअसल पहले से लिखी उस स्क्रिप्ट पर एक्ट कर रहे होते हैं।

आज टीवी के तमाम एंकर सत्ता पार्टी का एजेंडा चलाते हुए विपक्षी पार्टी के नेताओं प्रवक्ताओं की लिंचिंग करते हैं। उन पर बेतहासा चीखते चिल्लाते और शारीरिक हमला तक करते हैं। सुमित अवस्थी, रोहित सरदाना, अर्णब गोस्वामी, सुधीर चौधरी, अमीष देवगन, श्वेता सिंह जैसे एंकर आजकल इसी के लिए जाने जाते हैं।

अभी मई 2018 में न्यूज 18 के एंकर सुमित अवस्थी ने कांग्रेस प्रवक्ता सुमित अवस्थी पर तमाचा जड़ दिया था। ताजा मामला जी न्यूज के कार्यक्रम में RSS के संगठन राष्ट्रवादी मुस्लिम महिला संगठन की अध्यक्ष फरहा फैज ने कार्यक्रम में हिस्सा लेने के लिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मुफ्ती एजाज अरशद कासमी को थप्पड़ जड़ दिया, जिसकी प्रतिक्रिया में मौलाना ने भी कई थप्पड़ फरहा फैज को जड़ दिए।

खबरों के मुताबिक ही फरहा फैज का सीधा संबंध RSS से है, वहीं मौलाना कासमी की RSS प्रवक्ता राकेश सिन्हा से गहरी छनती है। ऐसे में कहने की जरूरत नहीं की जी न्यूज के कार्यक्रम में हुए मारपीट का सूत्रधार कौन था।

गोल्ड गैलेक्सी अपार्टमेंट, सेक्टर-5 वैशाली निवासी विनोद वर्मा की पत्नी फरहा फैज उर्फ लक्ष्मी वर्मा ने कासमी के खिलाफ थाना सेक्टर 20 में दर्ज कराये मामले के आधार पर पुलिस ने मौलाना मुफ्ती एजाज अरशद कासमी को गिरफ्तार कर लिया है। मौलाना कासमी ने नोएडा फिल्म सिटी में एक टीवी चैनल पर लाइव शो के दौरान फरहा फैज के साथ मारपीट करने का आरोप है, जिसकी शुरुआत पहला थप्पड़ मारकर खुद मोहतरमा फरहा फैज ने किया था।

थाना सेक्टर 20 के प्रभारी निरीक्षक मनीष सक्सेना ने बताया कि सेक्टर-16ए स्थित जी मीडिया के एक कार्यक्रम में तीन तलाक के विरोध करने वाली निदा खान को फतवा जारी किए जाने पर बहस चल रही थी। इस संबंध में फरहा फैज उर्फ लक्ष्मी वर्मा निदा खान का समर्थन कर रही थी।

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पिछले साल यूपी समेत पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव के दौरान तीन तलाक़ के मुद्दे को मीडिया में लगातार हवा देकर भाजपा संघ ने खुद को मुस्लिम महिलाओं का हितैषी साबित करते हुए मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ करके उन्हें अपने वोट में बदलने में जबर्दस्त कामयाबी पाई थी। कोई ताज्जुब नहीं के देवबंदी जैसी 67 प्रतिशत मुस्लिम बाहुल्य सीट पर भी भाजपा ने अप्रत्याशित जीत दर्ज की थी। मुस्लिम महिलाओं को भाजपा के पक्ष में मोड़ने में फरहा फैज का बहुत बड़ा रोल रहा था।

ताजा विवाद निदा खान को लेकर है। मालूम हो कि हलाला, तीन तलाक और बहुविवाह के खिलाफ आवाज उठाने वाली निदा ख़ान के खिलाफ फतवा जारी किया गया है। यह फतवा उत्तर प्रदेश के बरेली स्थित दरगाह आला हजरत के ताकतवर व प्रभावशाली शहर इमाम मुफ्ती खुर्शीद आलम ने जारी किया है।

निदा ख़ान आला हज़रत ख़ानदान की बहू हैं। 16 जुलाई 2015 में उनका निकाह ख़ानदान के उस्मान रज़ा खां उर्फ अंजुम मियां के बेटे शीरान रज़ा खां से हुआ था। अंजुम मियां आल इंडिया इत्तेहादे मिल्लत काउंसिल के मुखिया मौलाना तौकीर रज़ा खां के सगे भाई हैं। निकाह के बाद शीरान रज़ा ने 5 फरवरी 2016 को तीन तलाक देकर निदा को घर से बाहर निकाल दिया था। निदा को जारी फतवे में कहा गया है कि, ‘अगर निदा ख़ान बीमार पड़ती हैं तो उन्हें कोई दवा उपलब्ध नहीं कराई जाएगी। अगर उनकी मौत हो जाती है तो न ही कोई उनके जनाज़े में शामिल होगा और न ही कोई नमाज़ अदा करेगा।’

फतवे में यह भी कहा गया है, ‘अगर कोई निदा ख़ान की मदद करता है तो उसे भी यही सजा झेलनी होगी। उनसे तब तक कोई मुस्लिम संपर्क नहीं रखेगा जब तक वे सार्वजनिक तौर पर माफी नहीं मांग लेती हैं और इस्लाम विरोधी स्टैंड को छोड़ती नहीं हैं।’

सुप्रीम कोर्ट में तीन तलाक केस के सुनवाई के मसले पर ‘हरिभूमि’ को दिए एक इंटरव्यू में फरहा फैज से जब पत्रकार ने पूछा कि- ‘आप पर आरोप है कि पूरी कवायद संघ के इशारे कर रही हैं?’ तो फरहा फैज उर्फ लक्ष्मी वर्मा ने जवाब में कहा- “नहीं, न तो मैं आरएसएस की मेंबर हूं और न ही बीजेपी की। लेकिन मैं सर संघचालक मोहन भागवत जी की कार्यप्रणाली, जीवनशैली और उनके आचार-विचार से बहुत प्रभावित हूं। इस्लाम जिस धर्मनिरपेक्षता और नारी सम्मान की बात करता है। वो सारी चीजें मुझे संघ में दिखाई देती हैं।”

फरहा फैज का रिमोट कंट्रोल किसके हाथ में है और उनकी राजनीतिक विचारधारा का उदगम कहाँ ये उनके उपरोक्त वक्तव्य से समझा जा सकता है। अब निकाह हलाला को आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र ही तूल दिया जा रहा है। जो मामला केस के रूप में न्यायालय में चल रहा है उस पर लगातार मीडिया विमर्श का आखिर और क्या प्रयोजन है। ये बिल्कुल राम मंदिर मसले की तरह है जिसका केस चल तो सुप्रीम कोर्ट में रहा है, लेकिन चुनावी समय में अचानक वो किसी संघी या भाजपाई के बयान के बाद मीडिया विमर्श बन जाता है।

इतना ही नहीं गुजरात समेत पाँच राज्यों के चुनाव से ठीक पहले फरहा फैज ने अयोध्या राम मंदिर विवाद में भी नया पक्षकार बनते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपनी अर्जी दाखिल करते हुए दावा किया कि वो खुद सुन्नी परिवार में जन्म लेने और हाफिज पिता की पुत्री होने के साथ इस्लाम की अच्छी समझ रखती हैं, इसी को उन्होंने अपने दावे का आधार बी बनाया। 14 पेज की अपनी अर्ज़ी में फराह ने मस्जिद कहां और कैदी ज़मीन पर बने इन तमाम नुक्तों पर इस्लाम की व्यवस्था और नियम बताते हुए ये भी बताया कि सुन्नी मुस्लिमों का विवादित स्थल पर दावा इस्लाम के सिद्धांतों के मुताबिक नाजायज़ है।

दरअसल फ़रहा फैज़ के चेहरे को आगे करके RSS देश में ‘समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code)’ के अपने एजेंडे पर आगे बढ़ा रहा है और इसी एजेंडे के तहत मुस्लिम पर्सनल बोर्ड लॉ को लगातार फ़रहा फैज़ अपने निशाने पर रखती आ रही हैं। परसों जी न्यूज चैनल पर मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के सदस्य मौलाना काजमी को उकसाकर उनके साथ थप्पड़बाजी घटना को अंजाम देना उसी कड़ी का हिस्सा था।

तीन तलाक मसले के जरिए फरहा फैज यानी RSS ने देश में समान नागरिक संहिता लागू करवाने की ओर एक कदम और आगे बढ़ा दिये हैं। फरहा फैज के जरिए RSS दलील देता है कि ‘शरीयत एक्ट 1937 में अंग्रेजों के राज में बना था, वो मुसलमानों के धार्मिक मामलों में दखल नहीं देना चाहते थे। इसीलिए जिन बुरी परंपराओं का विरोध होना चाहिए था, जिन्हें रोका जाना चाहिए था, वो बदस्तूर जारी रहीं। मगर इसका ये मतलब तो नहीं कि वो कुरीतियां अभी भी जारी रहें। फरहा कहती हैं कि अंग्रेज तो विदेशी शासक थे। उन्हें सिर्फ अपने साम्राज्य की फिक्र थी। उन्हें यहां के लोगो से कोई मतलब नहीं था। लेकिन एक आजाद और लोकतांत्रिक भारत में तो ऐसा नहीं होते रहना चाहिए।’

फरहा के मुताबिक,- ‘तीन तलाक के साथ-साथ विरासत के कानून में भी सुधार की जरूरत है। ये अधिकार मुस्लिम महिलाओं को 1400 साल पहले दिए गए थे जिसके बाबत हमें पता ही नहीं।’

फरहा फैज उर्फ लक्ष्मी वर्मा ने अदालत में भी कहा कि उनके हिसाब से संवैधानिक और बुनियादी अधिकार, धार्मिक अधिकारों से ऊपर हैं। इसीलिए पर्सनल लॉ को भी अदालतें ही तय करें। ये किसी रजिस्टर्ड मुस्लिम संगठन की बपौती नहीं।

फरहा ने अपनी अर्जी में ऑल इंडिया मुस्लिम लॉ बोर्ड को खुली चुनौती दी है कि बोर्ड, मुसलमानों के मामले में किसी भी अदालती दखल के ख़िलाफ़ हैं। फरहा ने अपनी अर्जी में सुप्रीम कोर्ट को बताया कि पर्सनल लॉ बोर्ड देश भर में दारुल-काजी के नाम से अपनी संस्थाएं चला रहा है और इसी के जरिए देश भर में काजी और नायब काजी नियुक्त किए जाते हैं।

ये काजी 1880 के काजी एक्ट के तहत नियुक्त होते हैं। यही काजी और उनके नायब शरीयत के नाम पर दारुल कजा का संचालन कर रहे हैं। फरहा ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य खुद को मुस्लिम समुदाय के बीच इंसाफ के ठेकेदार के तौर पर देखते हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि तमाम धर्मों की तरह मुस्लिम धर्म में भी तमाम बुराइयाँ हैं और तमाम कौम की औरतों की तरह मुस्लिम कौम की औरतें भी पितृसत्ता का सताई हुई हैं, लेकिन फरहा फैज की लड़ाई उस कौम की पितृसत्ता के खिलाफ न होकर सीधे उस कौम के ही खिलाफ है।

फरहा फैज उर्फ लक्ष्मी वर्मा उस क़ौम के चंद पुरुषों की बुराइयों बदमाशियों अपराधों को पूरी कौम का अपराध बताकर प्रचारित करके न सिर्फ पूरी कौम का अपराधीकरण करके उसे सांप्रदायिक रंग में रंग रही हैं।

मुस्लिम महिलाओं को सामाजिक न्याय दिलाने जैसी बड़ी बड़ी बात करने वाली फरहा फैज़ उर्फ लक्ष्मी वर्मा महामानव महात्मा गाँधी के हत्यारे नाथू राम गोडसे की मूर्ति पर माल्यार्पण करके उसकी विचारधारा के आगे नतमस्तक होती हैं।

मुस्लिम महिलाओं की पीड़ा और उत्पीड़न के खिलाफ लड़ने वाली फरहा फैज़ आखिर मनुष्यता के हत्यारे के पक्ष में कैसे खड़ी हो सकती हैं। ऐसे में उनकी मनुष्यता की बुनियादी समझ और संवेदना और मुस्लिम महिलाओं के लिए उनकी कथित सामाजिक लड़ाई की नीयत पर ही बड़ा प्रश्नचिन्ह लग जाता है।

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