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आंदोलन

पेप्सी ने गुजरात के किसानों पर लगाया था 4.20 करोड़ का जुर्माना, आंदोलन के दबाव में फिलहाल लिया वापस

Prema Negi
6 May 2019 2:08 PM GMT
पेप्सी ने गुजरात के किसानों पर लगाया था 4.20 करोड़ का जुर्माना, आंदोलन के दबाव में फिलहाल लिया वापस
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इस खबर को पढ़कर आपको ऐसा लगेगा कि हमारा देश गुलामी के दौर के ईस्ट इंडिया कंपनी के समय में पहुंचने लगा है। हमारे ही देश की सरकारें और न्यायपालिका के कारण भारत का किसान अपराधी बनाया जा रहा है और विदेशी कंपनी के साथ हमारी सरकार खड़ी है...

हमारे देश का आलू और उससे हमारे देश में ही चिप्स बनाकर पेप्सी 52 ग्राम आलू का चिप्स लेज नाम से 20 रुपए का यानी 384 रुपए किलो के हिसाब से बेच रही है और हमारे देश की न्यायपालिका का सहारा लेकर हमारे देश के ही किसानों को अपराधी करार दे रही है....

सामाजिक कार्यकर्ता और स्वतंत्र पत्रकार मुनीष कुमार की रिपोर्ट

देश के किसान क्या उगाएंगे, कैसे उगाएंगे और अपने उत्पाद कहां पर बेचेंगे, इस सबमें अब साम्राज्यवादी अमेरिकी कम्पनी पेप्सी दखलंदाजी कर रही है। पेप्सी ने गुजरात की सबरकांता कामर्सियल कोर्ट के माध्यम से 4 किसानों पर 4.20 करोड़ रुपए का मुआवजा देने का आदेश पारित करवाया है, जिसके खिलाफ किसानों की लामबंदी के बाद पेप्सी ने फिलहाल अपना मुकदमा वापस ले लिया है।

64.66 बिलियन डालर (लगभग 4.5 लाख करोड़ रुपए) के टर्नओवर वाली बहुराष्ट्रीय कम्पनी पेप्सी का देश के आधे से ज्यादा आलू चिप्स बाजार पर कब्जा है। उसका लेज नाम से चिप्स बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले आलू की एफसी 5 किस्म का देश में पेटेंट है, जिसका मतलब है कि देश का कोई भी व्यक्ति एफसी 5 आलू का उत्पादन व इस्तेमाल बगैर पेप्सी की अनुमति के नहीं कर सकेगा।

वर्ष 2009 से पेप्सी किसानों को एफसी 5 आलू का बीज उपलब्ध कराकर, किसानों से आलू खरीदने का काम रही है। गुजरात के कुछ किसानों ने एफसी 5 आलू का बीज बाजार से लेकर अपने खेतों में लगाया था।

पेप्सी ने प्राइवेट जासूसी संस्था के माध्यम से गुप्त तरीके से वीडियो बनाकर तथा उसके सैम्पल लेकर प्रोटेक्सन आफ प्लान्ट वैरायटीज एंड फारमर्स राइट एक्ट 2001 के तहत 9 किसानों पर मुकदमा दर्ज करवा दिया, जिस पर साबर कांता कामर्सियल कोर्ट ने 4 किसानों पर प्रति किसान 1.05 करोड़ रुपए का मुआवजा देने का एक पक्षीय आदेश विगत 9 अप्रैल को पारित किया।

इस आदेश के खिलाफ गुजरात समेत देश के किसानों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए देश में पेप्सी के उत्पादों के बहिष्कार को लेकर मुहिम शुरू कर दी। इस पर पेप्सी ने बयान जारी किया कि वह अपना मुकदमा वापस ले सकती है, बशर्ते किसान अपना आलू हमें बेचें अथवा वादा करे कि भविष्य में वह पुनः एफसी 5 किस्म का आलू नहीं उगाएंगे।

लोकसभा चुनाव के बीच में मामला बिगड़ता देख सरकार को बीच में आना पड़ा और सरकार से वार्ता के बाद 2 मई को पेप्सी ने सभी 9 मुकदमे वापस ले लिये। पेप्सी द्वारा आरोपी बनाए गये 4 एकड़ के मालिक किसान हरीभाई पटेल का कहना है कि वे अपने खेत में लगाने के लिए आलू का बीज बाजार से लेकर आए थे।

पेप्सी द्वारा किसानों के ऊपर कोर्ट के माध्यम से की गयी उक्त कार्यवाही भारत सरकार द्वारा 1991 में लागू की गयी आर्थिक नीतियों का परिणाम है। डंकल प्रस्ताव, गैट के बाद 1995 से अस्तित्व में आए विश्व व्यापार संगठन (WTO) का भारत सदस्य देश है तथा देश में पेटेंट कानूनों का अनुपालन सरकारों के लिए बाध्यकारी है।

WTO के बौद्धिक सम्पदा अधिकार कानून (ट्रिप्स) के प्रावधानों के अतर्गत पेप्सी ने देश में वर्ष 2031 तक के लिए आलू की उक्त एफसी 5 किस्म का प्रोटेक्सन आफ प्लान्ट वैरायटीज एंड फारमर्स राइट एक्ट 2001 के तहत पेटेंट कराया हुआ है। यह कानून पेप्सी को देश के किसानों पर डंडा चलाने का अधिकार देता है।

देश में केवल एफसी 5 आलू का ही नहीं, बल्कि 3600 से भी अधिक किस्म के पौधों का उक्त एक्ट के अंतर्गत विभीन्न कम्पनियों व व्यक्तियों का पेटेंट है। देश के किसान सदियों से बीज बचाकर, आपस में विनिमय कर व बीज बाजार से खरीदकर खेती करते आ रहे हैं। पेटेंट कानून से किसानों के इस परम्परागत् अधिकारों पर कुठाराघात हो रहा है । भारत सरकार द्वारा WTO की शर्तों पर हस्ताक्षर करने से किसान धीरे-धीरे स्वतंत्र रुप से खेती करने की जगह उत्पादन व वितरण के लिए पेप्सी जैसी साम्राज्यवादी कम्पनियों पर निर्भर हो रहे हैं। बीज, खाद कीटनाशक सबकुछ उन्हें इन्हीं से खरीदना पड़ रहा है।

देश की सरकारों द्वारा WTO की शर्तों को मानने वाला समझौता देश की जनता की गुलामी का काला दस्तावेज है। यह देश में साम्राज्यवादी, विदेशी कम्पनियों को मनमानी करने छूट प्रदान करता करता है। यह गुजरात की घटना से भी साफ हो गया है कि पेप्सी जैसी कम्पनियां देश का विकास करने के लिए नहीं बल्कि देश को लूटने व तबाह-बरबाद करने के लिए आ रही हैं।

देश में घर-घर में चिप्स बनते हैं। देश में 6 हजार करोड़ से भी अधिक के चिप्स बाजार में से आधे पर पेप्सी का कब्जा है। इन्हें बनाने व बेचने के लिए कौन सी तकनीक व पूंजी चाहिए?

हमारे देश का आलू और उससे हमारे देश में ही चिप्स बनाकर पेप्सी 52 ग्राम आलू का चिप्स लेज नाम से 20 रुपए का (384 रुपए किग्रा) बेच रही है और हमारे देश की न्यायपालिका का सहारा लेकर हमारे देश के ही किसानों को अपराधी करार दे रही है।

यह सब कुछ 1947 के पूर्व के गुलाम भारत के दिनों की यादें ताजा कर रहा है। WTO पर कांग्रेस-भाजपा व उनके गठबंधन ने हस्ताक्षर किए हैं। आम देशवासियों को गुलामी के इन काले दस्तावेजों WTO, पेटेंट कानूनों व ट्रिप्स आदि को पूर्णतः नकार देना चाहिए। पेप्सी जैसी लुटेरी साम्राज्यवादी कम्पनियों के खिलाफ उठ खडे़ होने की जरूरत है।

(मुनीष कुमार समाजवादी लोक मंच के सह संयोजक हैं।)

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