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विमर्श

शाहरूख खान जाते ही क्यों हैं, जब अमेरिका हर बार उतरवा लेता है उनकी पैंट

Janjwar Team
30 March 2018 11:41 AM GMT
शाहरूख खान जाते ही क्यों हैं, जब अमेरिका हर बार उतरवा लेता है उनकी पैंट
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फिल्म कलाकार शाहरूख खान हर बार रौरा मचाते हैं कि हाय, अमेरिकियों ने मेरी पैंट उतार ली, मैं पूछता हूँ क्यों जाते हो अमेरिका...

शंभुनाथ शुक्ल, वरिष्ठ पत्रकार

मुझे अत्यंत दुःख हुआ, जब पता चला कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहिद खाकान अब्बासी की न्यूयार्क में ज़ामा-तलाशी ली गई। यह एक स्वयंभू राष्ट्र का अपमान है। मुझे तब भी दुःख हुआ था जब गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिका ने वीज़ा देने से मना किया था। इसी तरह भारत में राष्ट्रपति रहे अब्दुल कलाम और पूर्व रक्षा मंत्री जार्ज फर्नांडीज की अमेरिका में तलाशी हुई थी। ऐसी स्थिति में अमेरिका के चरण-चुम्बन से लाख गुना बेहतर है, अमेरिका जाने की अपनी हूक को दबा दिया जाए।

फिल्म कलाकार शाहरूख खान हर बार रौरा मचाते हैं कि हाय, अमेरिकियों ने मेरी पैंट उतार ली। मैं पूछता हूँ क्यों जाते हो अमेरिका? मेरी अमेरिका घूमने की तमन्ना कभी नहीं हुई, शायद इसलिए भी कि हम लोग सोवियत संघ को सदैव पसंद करते रहे हैं। आज देखिये, चीन अमेरिका को ठेंगे पर रखता है। वियतनाम के हो ची मिन्ह ने इसी अमेरिका की कभी परवाह तक नहीं की थी।

और तो और हमारे समय की महान नेता इंदिरा गाँधी ने 1968 में अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन के साथ नाच का प्रस्ताव ठुकरा दिया था, यह कहकर कि हमारे देश के संस्कार इसकी इजाजत नहीं देते। एक ऐसी दबंग नेता को पाकिस्तान का फौजी शासक याहिया खान ‘वो औरत’ कहा करता था। और बाद का अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन उन्हें ‘बूढ़ी चुड़ैल’ और ‘बूढ़ी कुतिया’ तक। लेकिन इंदिरा गाँधी भी उस निक्सन को उसके ही देश में ‘बूढ़ा खूसट’ कहकर आई थीं।

दरअसल इंदिरा गांधी और रिचर्ड निक्सन में पहले दिन से ही नहीं बनी। जब निक्सन उनसे दिल्ली में मिले तो बीस मिनट में ही इंदिरा इतनी बोर हो गईं कि उन्होंने निक्सन के साथ आए भारतीय विदेश मंत्रालय के एक अधिकारी से हिंदी में पूछा- "मुझे इन्हें कब तक झेलना होगा?"

अमेरिका के तब के विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर ने अपनी किताब ‘व्हाइट हाउज़ इयर्स’ में लिखा है कि, "इंदिरा ने कुछ इस अंदाज़ में निक्सन से बात की जैसे एक प्रोफ़ेसर पढ़ाई में थोड़े कमज़ोर छात्र का मनोबल बढ़ाने के लिए उससे बात करता है।"

किसिंजर आगे लिखते हैं कि निक्सन ने "भावहीन शिष्टता के ज़रिए किसी तरह अपने ग़ुस्से को पिया।" इंदिरा गाँधी ने कभी अमेरिकी दबाव को नहीं माना। पर आज हालत इतनी शर्मनाक है कि अमेरिकी अधिकारी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री की पैंट खुलवा कर तलाशी लेते हैं। धिक्कार है तुम लोगों के बौनेपन पर।

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