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राजनीति

योगेंद्र साव पर फैसला बदलने वाले जज को सुप्रीम कोर्ट ने लिया आड़े हाथों, मांगा 4 हफ्तों में जवाब

Janjwar Team
9 Nov 2017 12:15 PM GMT
योगेंद्र साव पर फैसला बदलने वाले जज को सुप्रीम कोर्ट ने लिया आड़े हाथों, मांगा 4 हफ्तों में जवाब
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झारखंड हाईकोर्ट का आदेश उनके मुवक्किल योगेंद्र साव के मामले में दो हिस्से में है। इसके पहले हिस्से में जमानत रद्द करने का आदेश है तो दूसरे में 50 हजार रुपए के बांड पर जमानत देने का आदेश है...

रांची, जनज्वार। कल तो गजब ही हो गया जब झारखंड हाईकोर्ट के एक फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने जांच का आदेश दिया। सर्वोच्च न्यायालय को आदेश इसलिए देना पड़ा क्योंकि उच्च न्यायालय एक फैसले में जमानत देता है, तो दूसरे में जमानत रद्द करता है। इस फैसले में राजनीतिक दबाव साफ—साफ दिखाई दे रहा है। इस मामले में निर्मला देवी हजारीबाग जेल में बंद हैं, जबकि उनके प्रति योगेंद्र साव एम्म में ईलाज के लिए आए हैं।

झारखंड के बड़कागांव गोलीकांड में पूर्व कृषि मंत्री योगेंद्र साव और उनकी विधायक पत्नी निर्मला देवी गिरफ्तार हैं। यह मामला 1 अक्तूबर, 2016 का है। इस गोलीकांड में 4 लोगों की मौत हो गई थी, जिसमें योगेंद्र साव की पत्नी और विधायक निर्मला देवी, योगेंद्र साव, उनका बेटा अंकित राज समेत कुछ अन्य को सरकार द्वारा अभियुक्त बनाया गया था। 4 लोगों की मौत पुलिस की गोली से हुई थी। पुलिस ने गोली जमीन अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन कर रहे ग्रामीणों के खिलाफ चलाई थी।

इसी मामले में सु्प्रीम कोर्ट ने योग्रेंद्र साव की जमानत से संबंधित एक फैसले को लेकर यह टिप्पणी की है। योगेंद्र साव बनाम झारखंड सरकार मामले की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट के जज एल नागेश्वर राव और एसए बोबदे की खंडपीठ ने कल झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से इस मामले में 4 सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है। अगली सुनवाई 13 दिसंबर को होगी।

योगेंद्र साव की पत्नी और बड़कागांव से कांग्रेस विधायक निर्मला देवी के वकील विवेक तनखा हाईकोर्ट के बदले फैसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे। योगेंद्र साव के वकील विवेक तनखा ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि झारखंड हाईकोर्ट का आदेश उनके मुवक्किल योगेंद्र साव के मामले में दो हिस्से में है। इसके पहले हिस्से में जमानत रद्द करने का आदेश है तो दूसरे में 50 हजार रुपए के बांड पर जमानत देने का आदेश है।

हाईकोर्ट की वेबसाइट पर पहले जमानत वाला आदेश अपलोड किया गया, उसके बाद बदले हुए फैसले वाला आदेश अपलोड किया गया। अब जमानत वाला आदेश वेबसाइट से हटा दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे भी गंभीरता से लिया है और माना है कि इससे न्याय के प्रति लोगों का भरोसा कम होगा।

सुप्रीम कोर्ट ने इसी प्वाइंट को गंभीर मानते हुए झारखंड हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को जांच का जिम्मा सौंपा है। यह फैसला अपने आप में मजाक भी है। झारखंड में सक्रिय राजनीतिक कार्यकर्ता मनोज ठाकुर कहते हैं कि इस तरह की गड़बड़ियां रघुवर सरकार तो करती रहती है, लेकिन अब अगर उच्च न्यायालय भी इस तरह के पूर्वाग्रहित आदेश देगा तो न्याय पर से भरोसा उठ जाएगा।

गौरतलब है कि इससे पहले खुद सुप्रीम कोर्ट मई में एक बार योगेंद्र साव की जमानत याचिका खारिज कर चुका है। पूर्व मंत्री योगेंद्र साव और बेटे अंकित राज की जमानत सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि 8 मई को हाईकोर्ट ने केस डायरी देखे बिना ही जमानत दे दी है।

9 मई को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत रद्द करते हुए हाईकोर्ट से कहा है कि वह पहले केस डायरी देखे, उसके बाद जमानत पर निर्णय ले। सरकार ने योगेंद्र साव और उनके बेटे पर आंदोलन के दौरान भीड़ को उकसाने एवं पुलिस पर हमला करने का मुकदमा दर्ज किया था।

इस मामले में निचली अदालत से जमानत खारिज होने के बाद हाईकोर्ट में जमानत की अपील की थी। हाईकोर्ट ने जमानत दे दी थी, लेकिन हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सरकार सुप्रीम कोर्ट गई जहां सरकार की ओर से कहा गया कि जमानत देने के पूर्व तय प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया।

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