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जनज्वार विशेष

गंगा बचाने के लिए आमरण अनशन करने वाले साधु बनेंगे हिंदुत्व राजनीति की फांस

Prema Negi
11 Nov 2018 12:49 PM GMT
गंगा बचाने के लिए आमरण अनशन करने वाले साधु बनेंगे हिंदुत्व राजनीति की फांस
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जीडी अग्रवाल की आमरण अनशन के 112वें दिन हुई मौत के बाद आमरण अनशन पर बैठे आत्मबोधानंद ने लगाया आरोप मोदी सरकार सिर्फ दिखावे के लिए है राष्ट्रवादी, उसका विकास का नजरिया पूरी तरह पाश्चात्य, मोदी के मंत्री नितिन गडकरी हैं संवेदनहीन...

वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पाण्डेय का विश्लेषण

86 वर्षीय स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद, जो पहले गुरु दास अग्रवाल के नाम से भारतीय प्रोद्यौगिकी संस्थान कानपुर के प्रोफेसर व केन्द्रीय प्रदूषण बोर्ड के पहले सदस्य-सचिव रह चुके थे, ने 22 जून, 2018 से गंगा के संरक्षण हेतु कानून बनाने की मांग को लेकर हरिद्वार में अनशन किया।

112 दिनों तक अनशन करने के बाद 11 अक्टूबर को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, ऋषिकेश में उनका निधन हो गया। जैन मुनि 40 वर्षीय संत गोपाल दास जो पहले हरियाणा में गोचारन की भूमि को अवैध कब्जों से मुक्त कराने हेतु अनशन कर चुके हैं, भी स्वामी सानंद की प्रेरणा से गंगा को बचाने हेतु 24 जून, 2018 से बद्री धाम मंदिर, बद्रीनाथ में अनशन पर बैठ गए।

फिलहाल उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में भर्ती किया गया है। 26 वर्षीय ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद मातृ सदन, हरिद्वार, जिसे स्वामी सानंद ने अपनी अनशन स्थली के रूप में चुना था, में स्वामी सानंद की गंगा तपस्या को जारी रखने के उद्देश्य से 24 अक्टूबर, 2018 से अनशन पर बैठे हुए हैं।

जब स्वामी सानंद जीवित थे तो मातृ सदन के प्रमुख स्वामी शिवानंद ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रतिनिधिमण्डल जो उनसे मिलने आया हुआ था, को स्पष्ट शब्दों में कह दिया था कि यदि स्वामी सानंद को कुछ हो गया तो वे व उनके शिष्य स्वामी सानंद के अपूर्ण कार्य की पूर्ति हेतु गंगा तपस्या जारी रखेंगे। स्वामी सानंद का मातृ सदन की तरफ से गंगा को बचाने हेतु अभी तक का 59वां अनशन था और आत्मबोधानंद का 60वां है।

मातृ सदन से ही जुड़े हुए स्वामी पुण्यानंद जिस दिन से आत्मबोधानंद अनशन पर बैठे हुए हैं, उसी दिन से अन्न छोड़ कर फलाहार पर हैं और यदि आत्मबोधानंद को कुछ हुआ तो वे फल भी त्याग कर सिर्फ पानी ग्रहण करेंगे।

2011 में तब 35 वर्षीय स्वामी निगमानंद की गंगा में अवैध खनन के खिलाफ अनशन करते हुए हरिद्वार के जिला अस्पताल में 115वें दिन मौत हो गई थी। मातृ सदन का यह आरोप है कि तत्कालीन उत्तराखण्ड की भाजपा सरकार से मिले हुए एक खनन माफिया ने उनकी हत्या करवाई।

स्वामी गोकुलानंद, जिन्होंने स्वामी निगमानंद के साथ 4 से 16 मार्च, 1998, में मातृ सदन की स्थापना के एक वर्ष के बाद ही पहला अनशन किया था, की 2003 में बामनेश्वर मंदिर, नैनीताल में जब वे अज्ञातवास में रह रहे थे तो खनन माफिया ने हत्या करवा दी। बाबा नागनाथ वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर उन्हीं मांगों को लेकर जो स्वामी सानंद की थीं, कि गंगा को अविरल व निर्मल बहने दिया जाए, अनशन करते हुए 2014 में शहीद हो गए।

स्वामी शिवानंद व ब्रह्मचारी आत्मबोधानंद ने प्रधानमंत्री को सम्बोधित अपने अलग-अलग पत्रों में श्रीमद्भागवत का जिक्र करते हुए लिखा है कि जब गंगा दूसरे के पापों का हरण करते हुए खुद गंदी हो जाएगी तो सर्वत्यागी संन्यासी अपना बलिदान देकर उसके पापों का हरण करेंगे। किंतु अपना कर्तव्य समझ सिर्फ आमरण अनशन कर उन्होंने एक औपचारिकता पूरी नहीं की है। उन्होंने सरकार, उसके मंत्रियों, नीतियों व रवैए की भी खुलकर आलोचना की है।

दोनों संतों ने प्रधानमंत्री की इस बाद के लिए निंदा की है कि उन्होंने उपभोग-प्रधान विकास नीतियां अपनाईं हैं? जिसमें गंगा को आर्थिक दोहन हेतु मात्र एक जल संसाधन के रूप में देखा गया है। उन्होंने जल संसाधन, नदी घाटी विकास व गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी को आड़े हाथों लेते हुए उनकी गंगा के प्रति श्रद्धा पर ही सवाल खड़े किए हैं।

आत्मबोधानंद ने नितिन गडकरी द्वारा स्वामी सानंद की मौत से एक घंटे पहले यह झूठ बोलने के लिए कि स्वामी सानंद की मांगें मान ली गई हैं? संवेदनहीन बताया है। दोनों संत जल के व्यवसायीकरण - चाहे वह बोतलबंद पानी हो अथवा पवित्र गंगाजल की मार्केटिंग - के पूरी तरह से खिलाफ हैं। स्वामी शिवानंद ने नरेन्द्र मोदी की विदेश यात्राओं व उनके द्वारा वाराणसी जैसी सांस्कृतिक नगरी को क्योटो बनाने की पेशकश पर भी कटाक्ष किया है कि ’मोदी जी को विदेशी रहन-सहन बहुत भाता है, स्वदेशी से उनको कोई मतलब नहीं है।’

आत्मबोधानंद के अनुसार यह सरकार सिर्फ दिखावे के लिए राष्ट्रवादी है, नहीं तो उसका विकास का नजरिया पूरी तरह से पाश्चात्य ही है। उन्होंने प्रधानमंत्री से स्वामी सानंद की चार में से दो मांगों - गंगा पर सभी निर्माणाधीन व प्रस्तावित बांधों तथा सभी खनन पर रोक - को तुरंत स्वीकार कर राष्ट्र की ओर से सच्ची श्रद्धांजलि देने को कहा है।

आत्मबोधानंद ने सरकार द्वारा स्वामी सानंद की मांगों को 'एक व्यक्ति की जिद’ मानना बड़ी भूल बताया है। उनके अनुसार स्वामी सानंद उपभोग-प्रधान विकास नीतियों, विश्व में गहराते पर्यावरणीय संकट, आदर्श विहीन विकास नीतियों के प्रभाव में पतित हो रही मानव चेतना व फलस्वरूप बढ़ते अधर्म, अपराध व भ्रष्टाचार व अपने उपभोग हेतु सभी जीवों, पर्यावरण व सह-अस्तित्व की संस्कृति को नष्ट करने पर आमादा मानव की पीड़ा का प्रतिनिधित्व कर रहे थे और सत्ता के अहंकार में चूर सरकार यह देख पाने में असमर्थ है जिसे वह ’संतों की बलिदानी परम्परा’ की पीड़ा बताते हैं।

जैसे जैसे गंगा के लिए बलिदान होने वाले संतों की संख्या बढ़ती जाएगी और अन्य संत इसी राह पर चलने के लिए दृढ़ संकल्पित होते जाएंगे हमारे देश और उसकी सरकार के लिए इसको नजरअंदाज करना मुश्किल होता जाएगा।

भाजपा यदि अयोध्या में राम मंदिर मुद्दे अथवा केरल में शबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को रोकने के मुद्दे को भुनाने के चक्कर में गंगा के मुद्दे पर ध्यान नहीं देगी तो अपना ही नुकसान करेगी। लोग भूले नहीं कि जब प्रधानमंत्री वाराणसी से चुनाव लड़ने आए तो उन्होंने देश को बताया कि ’मां गंगा ने मुझे बुलाया है।’

देश में एक बड़े बजट वाला भरपूर प्रचार के साथ ’नमामि गंगे’ कार्यक्रम चल रहा है, जिसकी उपलब्धि कुछ दिखाई नहीं पड़ती। उल्टे जब से नरेन्द्र मोदी प्रधान मंत्री बने हैं और गंगा में काफी पानी बह गया है वे साफ होने के बजाए गंदी ही हुई हैं। 2019 के चुनाव में गंगा का मुद्दा नरेन्द्र मोदी और भाजपा के लिए भारी पड़ सकता है।

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