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शिक्षा

पहले केजरीवाल सरकार ने मारा, फिर दिल्ली हाईकोर्ट ने और अब दिल्ली पुलिस मार रही

Prema Negi
6 March 2019 7:30 AM GMT
पहले केजरीवाल सरकार ने मारा, फिर दिल्ली हाईकोर्ट ने और अब दिल्ली पुलिस मार रही
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आंदोलनरत शिक्षकों ने दी धमकी, नौकरी पर नहीं रखा गया तो मजबूरन आत्मदाह को होंगे मजबूर

दिल्ली हाईकोर्ट के आदेशानुसार 25 हजार से ज्यादा कंट्रैक्ट टीचर 28 फरवरी 2019 के बाद से बेरोजगार हो गए हैं। शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास के बाहर 4-5 दिन से कांट्रेक्ट टीचर घेराव कर रहे हैं। कई वर्षों से दिल्ली के सरकारी स्कूलों में कार्यरत आंदोलनरत शिक्षकों की मांग है कि उन्हें स्थायी करके उनका वेतनमान बढ़ाया जाए। कई टीचरों ने तो सरकार के विरोध में मुंडन तक करवा लिया....

सुशील मानव ​की रिपोर्ट

जनज्वार। प्रगति मैदान स्थित उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के घर के सामने धरना दे रहे कांटेक्ट टीचरों को दिल्ली पुलिस ने बलपूर्वक कार्रवाई करते हुए उठाकर थाने ले गई है। कांट्रेक्ट टीचर पिछले 1 मार्च से दिल्ली के शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया के घर के सामने धरने पर बैठे थे।

दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा नियत 28 फरवरी 2019 के डेडलाइन बीतते ही दिल्ली के सरकारी स्कूलों में सालों से पढ़ा रहे 25 हजार से अधिक गेस्ट टीचर एक झटके में बेरोजगार हो गए हैं। गौरतलब है कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के खाली पदों को भरने के लिए कांट्रेक्ट पर गेस्ट टीचर रखे गए थे।

दिल्ली में आम आदमी सरकार आने से पहले करीब 17 हजार गेस्ट टीचर थे। केजरीवाल सरकार आने के बाद ये संख्या बढ़कर 25 हजार से ज्यादा हो गई। दिल्ली सरकार को दिल्ली हाईकोर्ट ने आदेश दिया था कि वो सालभर में जितनी खाली सीटें हैं, उन्हें भरे। केजरीवाल सरकार जब पूरी सीटें नहीं भर पाई तो उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट से और समय मांगा। दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा केजरीवाल सरकार को एक साल का और समय दिया गया, जिसकी मियाद 28 फरवरी 2019 निर्धारित थी।

गौरतलब है कि शिक्षकों की भर्ती करने का काम दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड (डीएसएसएसबी) के माध्यम से होता है। केजरीवाल सरकार ने सरकारी स्कूलों के अतिथि शिक्षकों को स्थायी करने के लिए दिल्ली विधानसभा में एक विधेयक पेश किया था, मगर यह फाइल एलजी के यहां अटकी रह गई। पीड़ित कांट्रेक्ट टीचर कहते हैं कि बात-बेबात अनशन करने वाली केजरीवाल सरकार ने भी हमारे लिए कोई खास सक्रियता नहीं दिखाई।

28 फरवरी तक न तो डीएसएसएसबी वो सीटें भर पाई, न ही दिल्ली सरकार की ओर से कोई ठोस पहल हुई। पीड़ित शिक्षक कहते हैं दिल्ली सरकार द्वारा कांट्रेक्ट टीचरों के लिए किसी पॉलिसी के तहत ये नियम नहीं बनाया गया कि वो इसी तरह काम करते रहेंगे, हटेंगे नहीं। अगर ऐसा कोई नियम बन जाता तो इतनी सारी सीटें वैकेंट नहीं होती।

दिल्ली हाईकोर्ट के आदेशानुसार 25 हजार से ज्यादा कंट्रैक्ट टीचर 28 फरवरी 2019 के बाद से बेरोजगार हो गए हैं। शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया के आवास के बाहर 4-5 दिन से कांट्रेक्ट टीचर घेराव कर रहे हैं। ये शिक्षक लगातार कई वर्षों से दिल्ली के सरकारी स्कूलों में कार्यरत रहे हैं। आंदोलनरत शिक्षकों की मांग है कि उन्हें स्थायी करके उनका वेतनमान बढ़ाया जाए। कई टीचरों ने तो सरकार के विरोध में मुंडन तक करवा लिया। आंदोलनरत शिक्षकों का कहना है कि अगर उन्हें नौकरी पर नहीं रखा गया तो वो लोग आत्मदाह भी करेंगे।

कांट्रेक्ट टीचरों के दबाव में शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने एलजी को पत्र लिखकर सत्र बुलाने की सिफारिश की है। आंदोलनरत शिक्षक कह रहे हैं कि सरकार ने समय रहते ये कदम उठा लिया होता तो आज हमें स्कूल छोड़कर सड़कों पर न उतरना पड़ता। वहीं दिल्ली के स्कूलों में इस समय एक ओर जहां बोर्ड की परीक्षायें चल रही हैं, दूसरी कक्षाओं की भी परीक्षाएं चल रही हैं। परीक्षा के समय में 25 हजार गेस्ट शिक्षकों के बेरोजगार होकर सड़कों पर उतरने से परीक्षाएँ बुरी तरह प्रभावित हो रही हैं।

इस मसले पर दिल्ली अधीनस्थ सेवा चयन बोर्ड ने अपना पक्ष रखते हुए हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति विनोद गोयल के समक्ष शपथ पत्र पेश करते हुए कहा है कि नौकरी के लिए 21,135 अतिथि शिक्षकों ने परीक्षा दी थी, लेकिन इनमें से 16,383 अतिथि शिक्षक परीक्षा नहीं पास कर पाये। जबकि इनमें से कई शिक्षक 15 वर्षों से भी ज्यादा समय से पढ़ा रहे हैं।

सरकारों और बोर्डों का ये तर्क बेहद लचर और असंवेदनशील इसलिए है कि जो शिक्षक लगातार 15 साल से बच्चों को पढ़ा रहे हैं, वो गेस्ट टीचर के तौर पर पढ़ाने के लिए योग्य हैं मगर सिर्फ़ स्थायी होने या ज्यादा वेतनमान पाने के लिए योग्य नहीं।

एक बात ये भी समझने की है कि हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट से आये अधिकांश फैसलों में एक पार्टी सरकार होती है। सरकार अगर अपना काम साफ नीयत से करे या अपना पक्ष मजबूती से रखे तो इस तरह की परिस्थितियां उत्पन्न ही न हों। इन फैसलों को कोर्ट का फैसला कहकर सरकार अपना पल्ला नहीं झाड़ सकती।

इससे पहले यूपी की योगी सरकार की असंवेदनशीलता और बदनीयती का शिकार होकर 1 लाख 76 हजार शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द हो गया था, जिसके बाद वे शिक्षामित्र 8-10 हजारे के मामूली वेतन पर पढ़ाने को अभिशप्त हैं। बिहार में भी शिक्षामित्रों के साथ यही स्थिति दोहरायी गई।

ऐसे में यह सवाल मुंह बाये खड़ा है कि जब गेस्ट टीचर या शिक्षामित्र अपने भविष्य को लेकर खुद आशंकित और अंधकार में हैं तो वो बच्चों को अच्छे और स्वस्थ्य मन से कैसे पढ़ा सकते हैं।

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