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समाज

जन्म के दो घंटे बाद ही मां ने नवजात बच्ची को फेंका गड्ढे में

Prema Negi
13 Nov 2018 6:32 AM GMT
जन्म के दो घंटे बाद ही मां ने नवजात बच्ची को फेंका गड्ढे में
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कानून नहीं दे सकता उन तमाम नवजात लड़कियों को न्याय जो पैदा होते ही दाब दी जाती हैं गड्ढे में, जिनके गड्ढ़े में फेंकने और मिट्टी डालने के बीच नहीं होती कोई आहट, जिनकी चीखों को नहीं सुन पाता कोई सही समय पर...

सुशील मानव की रिपोर्ट

जनज्वार। कोई मां 9 महीने तक अपनी कोख में रखने के बाद कैसे जन्म के महज 2 घंटे बाद ही अपनी नवजात बेटी को गड्ढे में जिंदा दफ़नानी चाहेगी? कोई मां अपने हाड़—मांस—खून से जीवन रचने के बाद कैसे अपने ही जने बच्ची से उसका जीवन छीन लेना चाहेगी।

मगर ऐसा कराती है पितृसत्ता, जो स्त्री की मानसिक कंडीशनिंग करके उसको इस हद तक बर्बर बना देती है कि एक सृजनकर्ता मां दया, करुणा ममता सब भूलभाल कर हत्यारिन बन बैठती है।

ऐसी ही एक सोचने पर मजबूर कर देनी वाली हृदयविदारक घटना गुजरात के सुरेंद्रनगर जिले के ध्रांगधरा क्षेत्र में घटी है। यहां एक महिला ने अपनी नवजात बच्ची को गड्ढे में फेंककर उसे मिट्टी में दबाने जा रही थी कि तभी किसी की आहट सुनकर बच्ची को वैसी ही छोड़कर भाग निकली, जबकि बच्ची पांच घंटे तक तेज ठंड में वहां पड़ी रही।

दोपहर करीब 11 बजे वहाँ से गुजर रहे कुछ स्थानीय लोगों ने बच्ची के रोने की आवाज सुनी। आवाज सुनकर लोग सूखी झील के पास जाकर देखा कि वहां एक नवजात बच्ची गड्ढे में पड़ी रो रही है। उन लोगों ने पुलिस को सूचना दी। मौके पर पहुंची पुलिस ने बच्ची को वहां से निकालकर अस्पताल में भर्ती कराया, जहां बच्ची को जिंदा बचा लिया गया है।

बच्ची को अस्पताल में भर्ती कराने के बाद पुलिस ने छानबीन शुरू की और बच्ची की मां की तलाश करने लगे। कुछ आदिवासियों के निशानदेही पर पुलिस इलाके की तमाम गर्भवती महिलाओं के पास पहुंची और फिर इन तमाम महिलाओं में लीला नाम की वो महिला मिली जिसके प्रसव के बाद से उसकी नवजात लापता थी।

जांच अधिकारी वीरेंद्र सिंह परमार के मुताबिक जब पुलिस लीला के घर पहुंची तो वह अपनी झोपड़ी में सो रही थी। उसके नवजात के बारे में पूछने पर वह टाल-मटोल करने लगी। लेकिन जब पुलिस ने थोड़ी सख्ती की तो उसने कुबूल किया कि उसे सुबह 4 बजे डिलीवरी हुई और थोड़ी देर बाद ही वह नवजात को लेकर झील के पास एक गड्ढे में फेंककर वापिस आ गई।

लीला के मुताबिक वो गड्ढा भरना चाहती थी, लेकिन उसे लोगों के आने की आहट मिली तो वो पकड़ी जाने के डर से वहां से भाग निकली। बता दें कि लीला के दो बेटियां पहले से हैं। वह लड़का चाहती थी लेकिन जब उसे तीसरी बार फिर लड़की हुई तो उसे वह पालना नहीं चाहती थी इसलिए उसे फेंकने का फैसला लिया।

पुलिस ने आरोपी महिला को गिरफ्तार कर लिया है। कानून अपने मुताबिक उस महिला को सजा देगा ही। पर क्या अपराधी केवल वो महिला है। क्या कानून उस समाज को भी सजा दे सकता है, जिसने उस महिला में बेटे की चाहत पैदा की। क्या कानून उस पितृसत्ता को सजा दे सकती है जिसमें केवल पुत्र ही पितरों के धार्मिक आर्थिक और सामाजिक वारिश हो सकता है, जहां उनके खानदान का नाम केवल पुत्र ही जीवित रख सकता है।

कानून किसी इंसान को सिर्फ सजा दे सकता है, पर उन तमाम नवजात लड़कियों को न्याय नहीं दे सकता जो पैदा होते ही ऐसे गड्ढे में दाब दी जाती हैं। जिनके गड्ढ़े में फेंकने और मिट्टी डालने के बीच कोई आहट नहीं होती। जिनकी चीखों को सही समय पर कोई नहीं सुन पाता।

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