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आंदोलन

सांप्रदायिकता का उभार सामंतवाद की उपस्थिति का व्यावहारिक संकेत

Janjwar Team
12 Sep 2017 9:34 AM GMT
सांप्रदायिकता का उभार सामंतवाद की उपस्थिति का व्यावहारिक संकेत
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इतिहासकार रामशरण शर्मा की किताब के 50 साल पूरे होने पर पटना में आयोजन

बिहार, पटना। रामशरण शर्मा ने सामन्तवाद को भातीय संदर्भ में समझने का प्रयास किया। उन्होंने मार्क्स की सभी बातों को स्वीकार नहीं किया, लेकिन मार्क्सवाद उनके लिए व्यवहार का एक उपकरण था।

ये बातें इतिहासकार ओपी जायसवाल ने इतिहासकार रामशरण शर्मा की स्मृति में पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में कही। पटना की चर्चित संस्था 'अभियान सांस्कृतिक मंच' द्वारा ये आयोजन रामशरण शर्मा की विश्वविख्यात पुस्तक 'भारतीय सामन्तवाद' के पचास वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में किया गया था। विषय था 'भारत की सामाजिक संरचना और सामन्तवाद'। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में इतिहास के विद्यार्थी, सामाजिक कार्यकर्ता, रंगकर्मी और विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों के लोग उपस्थित थे।

विषय प्रवेश करते हुए रंगकर्मी अनीश अंकुर ने कहा, रामशरण शर्मा की प्रसिद्ध कृति 'भारतीय सामन्तवाद' पहली कृति है जिसने भारत में सामन्ती व्यवस्था का गंभीर अध्ययन किया। इस पुस्तक पर काफी बहस-मुबाहिसे हुए। इस पुस्तक ने ऐतिहासिक तौर पर स्थापित किया कि सामन्तवाद का गहरा संबंध फिरकापरस्ती व सांप्रादयिकता से रहा है।

अनीश अंकुर ने आगे कहा, आज भारत में साम्प्रदायिकता का उभार सामन्तवाद की मौजूदगी का व्याहारिक संकेत है। बिहार में क्रान्तिकारी किसान नेता स्वामी सहजानद सरस्वती के नेतृत्व में चले जमींदार विरोधी आंदोलन के कारण आज भी साम्प्रदायिक ताकतें उस कदर प्रभावी नहीं हैं जैसा दूसरे हिंदी प्रदेशों में है। रामशरण शर्मा का प्रसिद्ध वक्तव्य है, 'बिहार में 90 के दशक में सामाजिक न्याय की जिन ताकतों को सत्ता मिली वो सम्भव न होता यदि स्वामी जी के नेतृत्व में 30,40 के दशक में सामन्तवाद विरोधी आंदोलन न चला होता।'

अभिलेखागार के निदेशक विजय कुमार ने सम्बोधित करते हुए कहा, उन्होंने इतिहास लेखन में नए युग का प्रारंभ किया। रामशरण शर्मा हमेशा साम्प्रदायिक शक्तियों के हमेशा खिलाफ थे। उनको देश से बाहर जाने पर रोका गया, सत्ताधारी ताकतों द्वारा परेशान किया जाता रहा।

पटना विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफ़ेसर अवध कुमार ने अपने संबोधन में कहा भारत में जब राम शरण शर्मा लिख रहे थे तो काफी विवाद हुआ। वे कह रहे थे कि सामंतवाद का एक ही रूप नहीं रहता। यदि दास प्रथा खोजेंगे तो नहीं मिलेगा।

भागलपुर विश्विद्यालत में प्राचीन भारत के प्रोफेसर के के मंडल ने कहा " राम शरण शर्मा ने कोसंबी की अवधारणाओं को पुरातात्विक साक्ष्यों से साबित किया। शर्मा जी मार्क्सवादी पद्धति का प्रयोग करते हैं। उत्पादन के साधनों में परिवर्तन के माध्यम से समझने की कोशिश की। आज जातियों के कलह को समझना हो तो पूर्व मध्य काल में सामन्तवाद के अभ्युदय के साथ समझ सकते हैं। जातियों की इतनी अधिक संख्या सामन्तवाद के कारण ही है।"

केके मंडल के मुताबिक, "सामन्तवाद की पहचान बेगारी आज भी है। कम्युनिस्ट पार्टी का नारा 'जमीन जोतने वालों की होनी चाहिये' की प्रासंगिकता का कारण यही है।आज भी मध्य बिहार में वर्ग संघर्ष का महत्व आज भी है। आज भी ऊंची जाति के पेड़ से आम आदि तोड़ने पर पिटाई की जाती है। सामन्ती मानसिकता को समझने के लिए उसके सामंती उत्पादन संबंधों में देखा है। भक्ति इस सामन्ती उत्पादन प्रणाली के आज भी केंद्र में है। आज भी के हमारे घर में पूजा पाठ आदि की परंपरा को उसी रूप में देखने की जरूरत है।

सभा में प्रमुख लोगों में सामाजिक कार्यकर्ता अशोक कुमार सिन्हा, संस्कृतिकर्मी सुमंत, अक्षय, अनिल कुमार राय, प्रो एस पी वर्मा, पार्थ सरकार, सतीश, जयप्रकाश ललन, विनीत राय, प्रभात सरसिज , तारकेश्वर ओझा, सुनील गौतम गुलाल, अवधेश , श्याम सुंदर, भोला पासवान, मनोज, सिकंदर ए आज़म, मिथिलेश राय, इन्द्रजीतजीतेन्द्र वर्मा, कपिल वर्मा, विवेक आदि।

समारोह का संचालन व धन्यवाद ज्ञापन जयप्रकाश ने किया।

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