Begin typing your search above and press return to search.
सिक्योरिटी

जलवायु परिवर्तन से महिलायें होती हैं अधिक प्रभावित

Prema Negi
18 March 2019 8:09 AM GMT
जलवायु परिवर्तन से महिलायें होती हैं अधिक प्रभावित
x

खेत में काम करती महिलायें (file photo) 

दुनियाभर में कृषि में काम करने वालों में से 40 प्रतिशत से अधिक महिलायें हैं और घर के संसाधनों को जुटाने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की है

महेंद्र पाण्डेय, वरिष्ठ लेखक

स्वीडन की एक 16 वर्षीय लडकी, ग्रेटा थुन्बेर्ग ने पूरी दुनिया के स्कूली छात्रों को जलवायु परिवर्तन को लेकर दुनियाभर की सरकारों की अकर्मण्यता के विरूद्ध आंदोलन की राह दिखाई। स्वीडन, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और फ्रांस होते हुए यह आंदोलन 100 से अधिक देशों में पहुँच चुका है।

दरअसल देखें तो आंदोलन की जो राह दुनियाभर के एनजीओ, सरकारें और संयुक्त राष्ट्र नहीं कर सका, वह काम ग्रेटा थुन्बेर्ग ने अकेले कर दिखाया। हाल में ही इसका नॉमिनेशन नोबेल शांति पुरस्कार के लिए किया गया है।

यदि ग्रेटा थुन्बेर्ग को नोबेल पुरस्कार मिलता है तब 16 वर्ष या कम उम्र में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाली दोनों लड़कियां ही होंगी, इससे पहले मलाला को भी लगभग ऐसी ही उम्र में नोबेल शांति पुरस्कार मिला था।

लड़कियां और महिलायें सामाजिक और पर्यावरणीय समस्याओं के प्रति पुरुषों से अधिक गंभीर होती हैं और उनके पास इन समस्याओं का समाधान भी होता है, पर पुरुष वर्चस्व वाला समाज इन्हें कभी मौका नहीं देता।

दुनियाभर में जब स्कूली छात्र आंदोलन कर रहे हैं, तब सभी देशों के शिक्षामंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक इसकी भर्त्सना कर रहे हैं और छात्रों से क्लास में लौटने की अपील कर रहे हैं। जर्मनी में भी शिक्षामंत्री छात्रों के विरुद्ध वक्तव्य दे रहे हैं, पर वहां की चांसलर, एंजेला मार्केल, जो महिला है, इन आंदोलनों का समर्थन कर रही हैं।

दुनियाभर में कृषि में काम करने वालों में से 40 प्रतिशत से अधिक महिलायें हैं और घर के संसाधनों को जुटाने की जिम्मेदारी भी इन्हीं की है। तमाम वैज्ञानिक अध्ययन यही बता रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि का सबसे अधिक असर भी कृषि और पानी जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर ही पड़ रहा है। जाहिर है महिलायें इससे अधिक प्रभावित हो रही हैं।

सवाल यह उठता है कि क्या महिलायें जलवायु परिवर्तन को पुरुषों की नजर से अलग देखती हैं। संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज में भी महिला वैज्ञानिकों और रिपोर्ट लिखने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ाई गयी है, जिससे इससे सम्बंधित रिपोर्टें केवल वैज्ञानिक ही नहीं रहे, बल्कि सामाजिक सरोकारों को भी उजागर करें।

वर्ष 2015 में वर्ल्ड इकोनोमिक फोरम ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें बताया गया था कि महिलायें पुरुषों की तुलना में जलवायु परिवर्तन को लेकर अधिक सजग हैं और पुरुषों की तुलना में आसानी से अपने जीवनचर्या को इसके अनुकूल बना सकती हैं।

इसका एक उदाहरण को विकसित देशों में देखने को मिल भी रहा है। लगातार शिकायतों के बाद अब पश्चिमी देशों की फैशन इंडस्ट्री अपने आप को इस तरह से बदल रही है, जिससे उनके उत्पादों का जलवायु परिवर्तन पर न्यूनतम प्रभाव पड़े। अब तो ब्रिटेन समेत अनेक यूरोपियन देशों में महिलायें नए कपडे खरीदना बंद कर रही हैं और सेकंड हैण्ड कपड़ों के स्टोर से कपड़ें ले रही हैं।

नवम्बर 2018 में येल यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन में बताया गया था कि अमेरिका की महिलायें जलवायु परिवर्तन का विज्ञान पुरुषों की तुलना में कम समझ पाती हैं, पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर पुरुषों से अधिक यकीन करती हैं और यह मानती हैं कि इसका प्रभाव इन तक भी पहुंचेगा।

इसके बाद एक दूसरे अध्ययन में दुनियाभर के तापमान वृद्धि के आर्थिक नुकसान के आकलनों से सम्बंधित शोधपत्रों के विश्लेषण से यह तथ्य उभर कर सामने आया कि महिला वैज्ञानिक इन आकलनों को अधिक वास्तविक तरीके से करती हैं और आपने आकलन में अनेक ऐसे नुकसान को भी शामिल करती हैं, जिन्हें पुरुष वैज्ञानिक नजरअंदाज कर देते हैं या फिर इन नुकसानों को समझ नहीं पाते।

स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के प्रभावों पर महिलायें अधिक यकीन करती हैं और इसे रोकने के उपाय भी आसानी से सुझा सकती हैं, पर सवाल यह है कि पुरुष प्रधान समाज कब इस तथ्य को समझ पाता है।

Next Story

विविध