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विमर्श

मोदी शासन में विकास के दावों के बीच भारत बनता मॉब लिंचर्स का देश

Prema Negi
14 Jun 2019 5:27 PM GMT
मोदी शासन में विकास के दावों के बीच भारत बनता मॉब लिंचर्स का देश
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पिछले 4 सालों में ही मॉब लिंचिंग के हो चुके हैं 134 मामले, जिनमें 2015 से अब तक 68 लोगों की जानें जा चुकी हैं, मगर बजाय इनका विरोध करने के शर्मनाक तरीके से कुछ नेता और मंत्री भी खड़े नजर आते हैं इनके पक्ष में। केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने तो झारखंड में मॉब लिंचिंग के आरोपियों का माला पहनाकर किया था स्वागत...

मोहम्मद ताहिर शब्बीर, पत्रकार

एक रिसर्च के मुताबिक पिछले साल की तुलना में इस साल भारत में अशांति बढ़ गई है और ग्लोबल पीस इंडेक्स में देश 5 स्थान लुढ़क कर 141वें नंबर पर आ गया है। इंडेक्स में आइसलैंड सबसे शांत तथा सीरिया को पछाड़कर अफगानिस्तान दुनिया का सबसे अशांत देश बन गया है। इस सूची में आइसलैंड 2008 से ही सबसे शांतिपूर्ण (पीसफुल) देश बना हुआ है। इस बार इस सूची में 163 देशों को शामिल किया गया है। 2008 से वैश्विक शांति (पीसफुलनेस) में भी 3.78 प्रतिशत की कमी आई है।

यह इंडेक्स ऑस्ट्रेलियन थिंक टैंक इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक एंड पीस द्वारा तीन पैमानों के आधार पर मापा जाता है, जिसमें सामाजिक सुरक्षा का स्तर, घरेलू और अंतरराष्ट्रीय सीमा विवाद और सैन्यकरण शामिल हैं। इस साल की रिपोर्ट में नया रिसर्च भी शामिल है जो जलवायु परिवर्तन से शांति (पीस) पर पड़ने वाले प्रभाव से जुड़ा है।

हैरानी की बात है कि सूची में भूटान 15वें, श्रीलंका 72वें, नेपाल 76वें और यहां तक कि बांग्लादेश 101वें जैसे देश भी भारत से कहीं अच्छे स्थान पर हैं।

देश में बढ़ रही इस अशांति का एक मुख्य कारण लोगों में कानून व्यवस्था का भय न होना है। आए दिन देश के अलग-अलग हिस्सों से अनेक ऐसी घटनाएं प्रकाश में आती रहती हैं, जहां लोग खुलेआम कानून अपने हाथ में ले लेते हैं, खुद ही अदालत और कानून बनकर सरेराह लोगों की जिंदगी और मौत का फैसला कर देते हैं।

इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण देश में बढ़ रहीं “मॉब लिंचिंग” की घटनाएं हैं। एक वेबसाइट के मुताबिक पिछले 4 सालों में ही मॉब लिंचिंग के 134 मामले हो चुके हैं जिनमें 2015 से अब तक 68 लोगों की जानें जा चुकी हैं। बुलंदशहर में हुई हिंसा में तो भीड़ ने इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की सरेआम हत्या कर दी थी। इससे साफ जाहिर होता है कि लोगों में कानून का खौफ समाप्त होता जा रहा है। उन्हें इस बात का यकीन हो चुका है कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा और वे आसानी से सजा से बच जाएंगे।

विडंबना की बात तो यह है कि मॉब लिंचिंग जैसी जघन्य घटना के आरोपियों को सजा दिलाना तो दूर उनके समर्थन में शर्मनाक तरीके से देश के कुछ नेता और मंत्री भी खड़े नजर आते हैं। जैसे केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने झारखंड में मॉब लिंचिंग के आरोपियों का माला पहनाकर स्वागत किया था। न सिर्फ अपराधियों का हौसला बढ़ता है बल्कि ऐसे अपराधों में वृद्धि की आशंका भी बढ़ जाती है।

नरेंद्र मोदी 2014 में विकास के मुद्दे पर सत्ता में आए थे, जिसे ‘सबका साथ, सबका विकास’ का नारा सटीक तरीके से बयान करता था। लेकिन अगर देश में शांति, सुरक्षा और सौहार्द का माहौल नहीं होगा तो देश की तरक्की और विकास संभव नहीं है। किसी भी देश का विकास तभी सम्भव है जब वहां के लोगों के अन्दर असुरक्षा की भावना न हो और उन्हें उचित माहौल मिले।

देश के लिए चिंता की बात यह भी है कि देश से अमीरों का पलायन लगातार बढ़ रहा है। इसकी एक वजह असुरक्षा का माहौल भी है। अमीरों और पूंजी के पलायन से देश के विकास और अर्थव्यवस्था को झटका लगता है। एफ्रो एशिया बैंक और रिसर्च फर्म न्यू वर्ल्ड वेल्थ के अनुसार सिर्फ साल 2018 में भारत से 5000 ऐसे अमीरों ने देश छोड़ दिया, जिनकी नेटवर्थ 10 लाख डॉलर से ज्यादा थी।

हालांकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई बार अपने भाषणों में देश से ऐसे असामाजिक तत्वों से बचने और उनसे कड़ाई से निपटने की अपील की है, जो अशांति को बढ़ावा देते हैं लेकिन उसका जमीन पर असर कम ही दिखाई दिया है। उल्टे उन्हीं की पार्टी के कुछ नेता आए दिन उल्टे-सीधे बयान देकर देश के माहौल को अशांत करने और उनके बयानों को निर्रथक बना देते हैं। इससे देश की शांति और भाईचारे को नुकसान होता है और देश की वैश्विक स्तर पर साख भी गिरती है।

हाल ही में लोकसभा चुनावों में मिली ऐतिहासिक जीत के बाद भी संसद के सेंट्रल हॉल में नवनिर्वाचित सांसदों के समक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने सम्बोधन में एक बार फिर “सबका साथ, सबका विकास’ में ‘सबका विश्वास” जोड़कर नया मंत्र देते हुए कहा था कि उनकी सरकार अब ‘नई ऊर्जा के साथ, नए भारत के निर्माण के लिए नई यात्रा’ शुरू करेगी।

साथ ही संविधान को साक्षी मानकर कहा कि 'सबको मिलकर 21वीं सदी में हिंदुस्तान को और सभी वर्गों को बिना किसी पंथ-जाति के आधार पर भेदभाव किए बिना नई ऊंचाइयों पर लेकर जाना है।' साथ ही मोदी ने अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने का भी आह्वान अपने संबोधन में किया था।

प्रधानमंत्री के इस संकल्प को उन्हीं की पार्टी के नेता और कार्यकर्ता कब तक और किस तरह पूरा कर देश को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे, यह देखना बाकि है।

(मोहम्मद ताहिर शब्बीर दिल्ली में पत्रकार हैं।)

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