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समाज

जसलीन-जलोटा को लेकर इतना यौन कुंठित क्यों हैं हम

Janjwar Team
19 Sep 2018 6:20 AM GMT
जसलीन-जलोटा को लेकर इतना यौन कुंठित क्यों हैं हम
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ऐसा न कहिएगा कि आप मजाक कर रहे हैं, क्योंकि आप मजाक बोलकर अपनी कुंठा छुपा रहे हैं। उस सवाल से बच रहे हैं जो आपकी बलात्कारी मानसिकता को उजागर करती है, जो पूछती है कि कैसे आप लड़कियों की पसंद पर पहरेदारी की लठैती संस्कृति से अलग हैं और जो साबित करती है कि क्यों न समाज आपको लंपट और यौन श्लाघा का मनोरोगी मान अस्पताल भेजने की व्यवस्था करे....

सुशील मानव का विश्लेषण

दस साल पहले बिहार के प्रोफेसर मटुकनाथ का अपनी 30 साल छोटी शिष्या जूली से प्रेम-संबंध न्यूज चैनलों की टीआरपी का मुख्य स्त्रोत बन गई थी। कई कई दिनों-सालों तक टीवी चैनल वैलेनटाइन सप्ताह पर जूली—मटुकनाथ को पकड़ लाते थे बाकायदा उनका लवगुरु के खिताब से ताजपोशी करते हुए और फिर दिन-दिन भर उनकी कहानियों को घोंट घोंटकर टीवी चैनल परोसा करते थे

मटुकनाथ से लेकर अनूप जलोटा तक पिछले दस साल में कुछ भी तो नहीं बदला। मानो ऐसे ही मौकों के लिए समाज के प्रगतिशील तबके से लेकर दक्षिणपंथी तबके तक सारा वर्ग इन प्रेमी बुजुर्गों की हंटिंग और लिंचिंग के लिए तैयार बैठा रहता है। क्या स्त्री, क्या पुरुष सबका एक ही नजरिया- घोर पाखंडी, घोर नैतिकतावादी। क्या साहित्यकार, क्या पत्रकार, क्या आम आदमी, क्या फेसबुकिये सबके सब अपनी अपनी म्यानों से तलवार खींचे खड़े हैं।

जसलीन मथारू और अनूप जलोटा बिग बॉस के 12 सीजन में बतौर कंटेस्टेंट शामिल हुए हैं। वे पिछले साढ़े तीन साल से रिलेशनशिप में हैं, पर उन्होंने अपने रिश्ते को दुनिया के सामने स्वीकारने के लिए बिगबॉस जैसे रियल्टी शो के मंच को चुना। लोगों की सारी परेशानी अनूप और जसलीन के बीच उम्र के बीच 37 साल के अंतर से है। अनूप जलोटा 65 साल के हैं जबकि जसलीन मथारू की उम्र 28 साल है।

दरअसल हमारा समाज अब भी स्त्री-पुरुष के संबंधों को एक संकीर्ण दायरे में समेटकर देखता है। उसकी एक वजह ये भी है कि हमारा समाज प्रेम के मनोवैज्ञानिक पहलुओं को अभी तक स्वीकार ही नहीं कर पाया। अभी एक सप्ताह पूर्व एलजीबीटी संबंधों पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर भी दक्षिणपंथियों से लेकर प्रगतिशीलों तक ने नाक-भौं सिकोड़ते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैंसले की तीखी आलोचना की थी।

किसी ने इसे अप्राकृतिक कहा था तो किसी ने अनैतिक। दरअसल लोग किसी भी संबंध को सेक्सुअल संबंधों तक सीमित करके ही देखते सोचते हैं। वो इसमें भावनाओं, एहसासों, सुरक्षाबोध और आत्मीयता व वैचारिक व भावनात्मक जुड़ाव को पूरे सिरे खारिज कर देते हैं।

28 साल की स्वावलंबी महिला के अनूप जलोटा के साथ संबंधों में शामिल होने पर सवाल उठाना लोगों के भीतर के उस मर्दबोध और सामंती मूल्यों का परिचायक है जो स्त्री की इच्छा, उसके चुनाव और उसकी पसंद पर अविश्वास जताते हुए उसे कमतर कर आंकते हैं।

जसलीन मथारू-अनूप जलोटा के रिश्तों पर विशेषकर अनूप जलोटा की उम्र का उपहास उड़ाने वाले दरअसल प्रेम को व्यापक अर्थबोध में देख, सुन और समझ ही नहीं पा रहे। वो कभी इस रिश्ते को बिगबॉस जैसे रियलिटी शो द्वारा टीआरपी बटोरने वाले बाजारू ड्रामे से जोड़कर अपनी निंदा को जस्टीफाई कर रहे हैं तो कभी इनके संबंधों को उम्र के फासले की दुहाई देकर यौनसंतुष्टि के तराजू में तौलकर।

टीवी चैनलों के रियलिटी शो समाज की ही मनोप्रवृत्ति, इच्छाओं, कुंठाओं को पकड़कर उनकी पसंद को परोसते हैं। बिगबॉस के 12वें सीजन की थीम ही है ‘विचित्र जोडियां’। इसी थीम के तहत शो में जसलीन मथारू और अनूप जलोटा भी शामिल किए गये हैं। दोनों में गुरु-शिष्या और प्रेमी-प्रेमिका का संबंध है।

‘विचित्र जोड़ी’ या ‘बेमेल रिश्ते’ जैसे रूपक उसी सामंती समाज की उपज हैं जहां हर भाव और रिश्ते के लिए फ्रेम होता है। शो के थीम से साफ जाहिर है कि बिगबॉस शो के निर्माता और प्रबंधन टीम भी उसी सामंती मूल्यबोध से ग्रस्त है और ऐसी थीम को लेकर शो बनाने का मकसद भी समाज के उसी सामंतवादी मूल्यबोध को भड़काना और टीआरपी बटोरना है।

जसलीन-अनूप जलोटा संबंध में शोषक-पीड़ित संबंध जैसा कुछ नहीं है। न ही कोई आर्थिक मजबूरी जैसी बात। न ही इस रिश्ते की सीढ़ी पर चढ़कर किसी एक की अपनी महत्वाकांक्षाओं को हासिल करने का मंसूबा। बता दें कि जसलीन 11 वर्ष की आयु से ही शास्त्रीय और पाश्चात्य संगीत सीख रही हैं। उनके पिता केसर मथारू फिल्म निर्माता हैं।

जसलीन बॉलीवुड की द डर्टी रिलेशन फिल्म में भी काम कर चुकी हैं। जाहिर है ऐसे में उम्र का लंबा फासला लोगों को इस रिश्ते पर बात करने के लिए मसाला जैसा है। क्योंकि इस रिश्ते में लोग अनूप जलोटा की सेक्सुअल कैपबिलिटी से अलग करके नहीं देख पा रहे हैं। बता दें कि अनूप जलोटा इससे पहले तीन शादियां कर चुके हैं। उनकी पहली जीवनसाथी गायिका सोनाली सेठ थीं। हालांकि जल्द ही उनका तलाक हो गया।

बाद में सोनाली ने गायक रूपकुमार राठौड़ से शादी कर ली। इसके बाद अनूप जलोटा ने बीना भाटिया से शादी की, लेकिन इस बार भी शादी ज्यादा दिन नहीं चल पाई। तीसरी बार उन्होंने मेधा गुजराल से शादी की। मेधा गुजराल देश के पूर्व प्रधानमंत्री इंद्र कुमार गुजराल की भतीजी थीं। दोनों से एक बेटा भी हुआ, लेकिन 2014 में लिवर खराब हो जाने से मेधा की मृत्यु हो गई।

मार्च 2018 में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रो की भारत यात्रा के समय भी तमाम टीवी चैनलों और सोशल मीडिया पर भारत-फ्रांस के बीच हुए सुरक्षा, व्यापारिक और सामरिक समझौतों से ज्यादा फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और उनकी जीवन साथी ब्रिगिट मैक्रो की लव स्टोरी की चर्चा थी। दरअसल ब्रिगिट मैक्रों की टीचर थीं और उम्र में उनसे 25 साल बड़ी थी। उन्हीं दिनों में इमैनुएल मैक्रो को अपनी टीचर ब्रिगिट से प्यार हो गया जैसा कि स्कूली दिनों में अक्सर लड़कों-लड़कियों के साथ होता है। ब्रिगिट शादीशुदा थीं और उनकी एक बेटी इमेनुएल मैक्रों के साथ पढ़ती थी। बाद में दोनों ने शादी कर ली थी।

दरअसल हमारा सामंतवादी समाज हर बात, हर मानवीय संबंध को एक फ्रेम में देखने का आदी हो चुका है। उस फ्रेम से जरा सा भी अलग होने पर उसे हर चीज हर बात हर व्यक्ति उपहास और निंदा का पात्र लगता है। ऑनर किलिंग जैसी वीभत्स और बर्बर चीजें इसी फ्रेम से बाहर के संबंधों को मान्यता न देने पाने की उपज हैं।

याद कीजिए किस तरह समाज के लोगों ने प्रोफेसर मटुकनाथ के परिवार संग मिलकर उनकी और उनकी प्रेमिका की पिटाई की थी। याद कीजिए राजस्थान बांसवाड़े के समाज का वो बर्बर कृत्य को जिसमें गांव वालों ने परिवार के साथ मिलकर दलित प्रेमी जोड़े को नंगा करके पूरे गांव में घुमाया था, महज इसलिए क्योंकि वो रिश्ते में दूर के चचेरे भाई-बहन थे। याद कीजिए महज तीन रोज पहले घटी तेलंगाना में ऑनर किलिंग की वो घटना जिसमें पिता ने ही अपनी गर्भवती बेटी की आंखों के सामने उसके जीवनसाथी की हत्या इसलिए करवा दी क्योंकि वो दलित था।

याद कीजिए रामनवमी के अवसर पर निकाली गई हत्यारे शंभू लाल रैगर की झांकी निकाली गई थी। जिसने 7 दिसंबर 2017 को राजसमंद जिले में बंगाली मुस्लिम मजदूर की हत्या इसलिए कर दी थी क्योंकि वो किसी हिंदू महिला से प्रेम करता था।

सामंतवादी समाज हमेशा से ही प्रेम का दुश्मन रहा है। इसमें सामूहिक यौन कुंठा से लेकर बलात्कार करनेवाला हिंसक मर्दबोध तक सब शामिल रहता है। जिन समाजों में प्रेम दीन हीन और उपहास की चीज होती है उन समाजों में बलात्कार एक सांस्कृतिक उत्सव जैसा ग्लीरोफाइड और प्रभुत्ववादी होकर घटित होता है। बलात्कार के प्रति जो थोड़ा बहुत लोगों में गुस्सा होता भी है वो भी सिर्फ इसलिए क्योंकि वो लोग लड़की के यौनशुचित्व के सामंती विचार बोध की जकड़न में जकड़े होते हैं

प्रेम दरअसल विवाह नामक संस्कार का प्रतिकार है। हालांकि प्रेम विवाह भी विवाह के तमाम तरीकों में से एक तरीके के तौर पर हिंदू मान्यता में सदियों से शामिल रहा है। प्रेम और प्रेमी युगल को जाति, धर्म, लिंग और उम्र के नियम कायदों में बांधकर देखना दरअसल उसी सामंतवादी कंडिशनिंग के चलते है। दो लोगों की म्युचुअल संबंधों, रिश्तों और एहसासों और सहमति की निंदा और उपहास क्रूरता है। ऐसा करने वाले हत्यारे शंभूलाल रैगर या तेलंगाना में अपने दलित दामाद की हत्या करवाने वाले पिता से अलग नहीं हैं।

आज अखबारों से लेकर टीवी चैनल और सोशल मीडिया तक पर इन दिनों जसलीन माथरू और अनूप जलोटा के संबंधों की ही नकारात्मक चर्चा है। लोग पश्चिमी दिल्ली में पांच मजदूरों के सीवर में मरने को भूल चुके हैं। लोग बॉयलर बिजनौर के केमिकल फैक्ट्री में बॉयलर फटने से 6 मजदूरों के मरने की घटना को भी भूल चुके हैं।

लोग सीबीएसई टॉपर से गैंगरेप की घटना को भी भूल चुके हैं। लोग अर्बन नक्सल के नाम पर बुद्धिजीवियों, कार्यकर्ताओं, वकीलों की गिरफ्तारी और शेल्टर होम की हैवानियत भूल चुके हैं। लोग अभी सिर्फ जसलीन-अनूप संबंधों का चटखारा लेने और निंदा करने में मशगूल हैं। एक समाज और मनुष्य के रूप में हम लगातार नाकाम हो रहे हैं।

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