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विमर्श

आधार नंबर के खतरे को समझने के लिए जरूरी किताब

Prema Negi
1 Aug 2018 4:56 AM GMT
आधार नंबर के खतरे को समझने के लिए जरूरी किताब
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अगर मोदी सरकार न होती तो ट्राई अध्यक्ष राम सेवक शर्मा के पसीने छूट गए होते। लेकिन हम और आप इसके अलावा कर भी क्या सकते कि किसी फ्रॉड का शिकार होने के लिए अपनी बारी का इंतजार करें...

चन्दन पांडेय की समीक्षा

आधार की मुखालफत को गलत बतलाने की गरज से भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के अध्यक्ष राम सेवक शर्मा ने ट्विटर पर अपना आधार नंबर डाला और कहा कि मैं इसे सार्वजनिक कर रहा हूँ, कोई बताये कि इसका गलत इस्तेमाल कैसे हो सकता है? वो कहना यह चाह रहे थे कि आधार से जुड़े भय निराधार हैं।

फिर खेल शुरु हुआ।

उनके चुनौतीपूर्ण ट्वीट के जवाबी कारस्तानी में पहला ट्वीट यह आया कि इस आधार से जुड़ा फोन नंबर अमुक है।

उनके चुनौतीपूर्ण ट्वीट के जवाब में दूसरा ट्वीट यह आया कि इस आधार से जो फोन नंबर जुड़ा है वो किसी महिला का है।

तीसरा ट्वीट यह आया कि वो महिला इस राम सेवक की सेक्रेटरी है। इसका मतलब यह हुआ कि वो आधार नंबर अध्यक्ष साहब का न होकर उनकी सचिव का था। यानी चुनौती देते हुए भी अध्यक्ष साहब डरे हुए थे इसलिए अपने सचिव का आधार सार्वजनिक कर दिया।

चौथा जवाबी ट्वीट आया जिसमें उस आधार से जुड़ा पैन नंबर था और उसके साथ ही हैकर ने यह नेकनीयती जताते हुए ट्वीट्स का यह सिलसिला बंद कर दिया कि इससे आगे का डाटा यानी बैंक अकाउंट बगैरह बतलाना अनुचित होगा।

अगर यह सरकार न होती तो शर्मा के पसीने छूट गए होते। लेकिन हम और आप इसके अलावा कर भी क्या सकते कि किसी फ्रॉड का शिकार होने के लिए अपनी बारी का इंतजार करें?

खैर, बात मुझे दूसरी बतानी थी।

कैथी ओ’नील की किताब ‘वीपन्स ऑव मैथ्स डिस्ट्रक्शन’ बताती है कि बैंकों के लिए, व्यवसायियों के लिए, सरकारों के लिए इस तरह के डाटा किस कदर अनिवार्य है और इसके लिए ये सरकारें क्या कर सकती हैं?

यह किताब बताती है कि हर चीज को डाटा के हवाले कर देने से किसको फायदा है और किसको नुकसान है? यह अतिशय ‘डाटाबाजी’ भी मुनाफाखोरों के दिमाग की उपज है। किताब एक उदाहरण से शुरू होती है कि अमेरिका में शिक्षा सुधार के लिए एक सॉफ्टवेयर सिस्टम बना। उस सिस्टम में कुछेक पैमानों को डालने के बाद यह जान लिया गया कि कौन सा शिक्षक कितना उपयोगी है या प्रभावशाली है।

मसलन जिस कक्षा में वो शिक्षक पढ़ा रहा है उस कक्षा के सभी छात्रों के प्राप्तांकों का क्रमवार अध्ययन करना भी एक निर्णायक डाटा बना। इस डाटा के आधार पर कई शिक्षक दोषी पाए गए क्योंकि उनके पढ़ाने से कोई सुधार बच्चों के प्राप्तांक में नहीं दिख रहा था। उनको नौकरी से निकाल दिया गया और यह व्यापक पैमाने पर हुआ।

एक शिक्षिका ने इसे अपने सम्मान पर ले लिया और डाटा को चैलेंज कर दिया। उसने कहा कि उसकी कक्षा के बच्चे जहाँ से प्राइमरी पढ़ कर आये थे वहाँ इन्हें कुछ सिखाया ही नहीं गया था और उस स्कूल ने अपना व्यवसाय बचाने के लिए अनाप शनाप अंक बच्चों को दे दिए थे, जिसकी बदौलत उनका प्रवेश शहर के नामी मिडिल स्कूल में हो गया।

शिक्षिका का कहना था कि उस पुराने स्कूल की गलती का खामियाजा इसे भुगतना पड़ा। वह शिक्षिका बेहतरीन शिक्षकों में थी इसलिए उसे दूसरी जगह पढ़ाने का काम मिल गया लेकिन बाकी के लोग, जो यों तो खराब न थे लेकिन जिनकी अच्छाइयों का शोर भी कम था, वे बेरोजगार रहे या जीविकोपार्जन के लिए छोटे मोटे अनियमित से कामों में लग गए।

लेखिका ने यह भी बताया है कि कैसे आधार जैसे ही अमेरिकी डाटा से बाकी सूचना निकाल कर ‘लोन शार्क’ गरीब घर के बच्चों के पीछे पड़ जाते हैं ताकि उन्हें शिक्षा से जुड़े कर्ज दे सकें।

यह तकनीक, डाटा सब मिलकर नस्लवाद को बढ़ावा ही दे रहे हैं।

आँख खोलने वाली बात लेखिका तब बताती हैं जब वो अपराध की दुनिया को डाटा से जोड़ती हैं। यह तकनीक, डाटा सब मिलकर नस्लवाद को बढ़ावा ही दे रहे हैं। एक जगह लेखिका बताती हैं कि न्यूयार्क पुलिस एक उपाय निकालती है कि अपराध कम करने के लिए राह चलते लोगों की जाँच की जाए। यह जाँच रूटीन जैसी होनी है, लेकिन जैसे ही आपका रिकॉर्ड डाटा की शक्ल लेता है आप किसी बड़े खतरे की तरफ बढ़ रहे होते हैं।

जैसे ही पुलिस आपकी तलाशी लेती है यह दर्ज हो जाता है कि आपकी तलाशी ली गई और यह दर्ज होना एक तथ्य बन जाता है, डाटा बन जाता है जिसका इस्तेमाल तब होगा जब आपके क्षेत्र में कोई अपराध हुआ हो या आप ऐसे लोगों के संबंधी हों जिनका कोई आपराधिक अतीत हो। यह दर्ज होना ही बिग डाटा बनते जाता है। मसलन अगर अश्वेतों की बस्ती है तो यहाँ जांच बढ़ जाती है और फिर डाटा भी बढ़ जाता है, जब डाटा बढ़ जाता है तो सख्ती भी बढ़ जाती है फिर अपराध भी बढ़ जाता है और यह चक्र सजाओं की शक्ल में बस्ती के लोगों पर टूटता है।

इस किताब को शुरू करते हुए आप यही सोचेंगे कि अरे डाटा बाहर आने से किसी का नुकसान होगा भी तो क्या होगा और कितना होगा? लगता है कि मामूली बात है लेकिन जैसे ही आप ग्यारहवें पन्ने पर आप पहुँचते हैं आपके मन मस्तिष्क में ऐसा धमाका होता है जैसा किसी बम से भी शायद ही हो।

लेखिका का अध्ययन विशद है और उनके सरोकार मानवीय हैं तभी यह किताब बन पाई है। इस वर्ष पढ़ी गई सर्वश्रेष्ठ किताबों में से एक।

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