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आंदोलन

भाजपा सरकार लागू कर रही पूंजी​पतियों के हित में श्रम कानून, मजदूरों पर बढ़े हमले

Janjwar Team
18 Feb 2018 7:56 PM GMT
भाजपा सरकार लागू कर रही पूंजी​पतियों के हित में श्रम कानून, मजदूरों पर बढ़े हमले
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मजदूर कन्वेंशन में मजदूर नेताओं ने कहा, मज़दूरों के हर अधिकार को कुचलने के लिए सरकारें तेज कर रही हैं दमन को...

गुडगांव, जनज्वार। मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा) का एनसीआर स्तर का मज़दूर कन्वेंशन गुड़गांव के रोहिल्ला धर्मशाला में सम्पन्न हुआ। कन्वेंशन में मजदूर अधिकारों पर बढ़ते हमले श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी परिवर्तन न्यूनतम मजदूरी और ठेका मजदूरों का सवाल उठा और मजदूरों के हक़ के संघर्ष को आगे बढ़ाने का संकल्प बांध गया। साथ ही मारुति के 13 बेगुनाह मज़दूरों की रिहाई व बर्खास्त साथियो की कार्यबहाली की मांग की की गई।

देश के विभिन्न हिस्सों से आए मज़दूर प्रतिनिधियों ने कहा कि भाजपानीत नई सरकार आने के बाद मेहनतकश जनता पर हमला और तेज हुआ है। पूंजीपतियों के हित में श्रम कानून में सुधार लाने की प्रक्रिया जारी है। नयी उदारवादी आर्थिक नीतियों के चलते हर एक क्षेत्र में स्थायी नौकरी की जगह पर ठेका प्रथा, अप्रेंटिस, ट्रेनी का दबदबा बन रहा है।

मजदूरों के ट्रेड यूनियन बनाने का और सामूहिक मांगपत्र पर सम्मानजनक समझौता करने के अधिकार का हनन हो रहा है। मजदूरों पर काम का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। पूंजीपतियों द्वारा श्रम कानून का खुला उल्लंघन किया जा रहा है। गैरकानूनी तालाबंदी, क्लोज़र, ले-ऑफ, छटनी द्वारा मज़दूरों को बेरोजगार किया जा रहा है। मज़दूरों के हर अधिकार को कुचलने के लिए सरकारें दमन को तेज कर रही हैं।

वक्ताओं ने कहा कि पिछले सालों में मालिकों के स्वार्थ को सुरक्षित करने के लिए मारुति, प्रिकोल, होंडा, आइसिन, महिंद्रा सीआईई, ऑटो लाइन, मोज़रबियार सहित देश के मज़दूरों के शोषण व आन्दोलन पर पुलिस-प्रशासन का हमला और भी तेज हुआ है, बर्खास्तगी, बंदी, झूठा केस, स्टे आर्डर से लेकर मज़दूरों को जेल में डाल कर मज़दूर आन्दोलन तोड़ने की कोशिश बढ़ती जा रही है। फिर भी, इन हमलों के सामने देश भर में मज़दूर संघर्ष जारी है।

वक्ताओं ने बताया कि मज़दूरों पर बढ़ते हमलों व पूंजीपति वर्ग के हित में सभी सरकार द्वारा लागू किये जा रहे नव उदारवादी आर्थिक नीतियों के साथ बिना समझौता झुझारू संघर्ष व देश में मज़दूर आन्दोलन का एक वैकल्पिक ताकत खड़ा करने की ज़रूरत के आधार पर देशभर के 15 संगठनों ने एकसाथ मिल कर ‘मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान (मासा)’ का गठन किया था।

मासा की मांग है कि श्रम कानूनो में मज़दूर विरोधी सुधार बंद हो, न्यूनतम मजदूरी 22,000 रुपये की जाए, ठेका प्रथा का खात्मा हो, स्थायी काम पर स्थायी रोजगार व समान काम पर समान वेतन लागू हो तथा मारुति, प्रिकॉल, गरज़ियानो के बेगुनाह मज़दूरों को रिहा किया जाए व मज़दूरों का दमन बंद हो।

कन्वेंशन में आल इंडिया वर्कर्स कौंसिल, DTUC तमिलनाडु, ग्रामीण मज़दूर यूनियन, बिहार, हिंदुस्तान मोटर्स SSKU पश्चिम बंगाल, ICTU, IFTU, IFTU सर्वहारा, इंक़लाबी मज़दूर केंद्र, जान संघर्ष मंच हरियाणा, मज़दूर सहयोग केन्द्र गुड़गांव तथा उत्तराखंड, श्रमिकशक्ति कर्नाटका, TTUC तमिलनाडु, ट्रेडयूनियन काउंसिल ऑफ इंडिया (TUCI), के साथ ही संगठित क्षेत्र की मारुति, होंडा, डाइकिन, बेलेसोनिक, SPM ऑटो की यूनियने व मज़दूर, ठेका मज़दूर, गारमेंट मज़दूर, ग्रामीण व असंगठित मज़दूरों ने भागेदारी निभाई।

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