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जनज्वार विशेष

चिकित्साधिकारियों ने वसूली के लिए प्लांट कराई फर्जी खबर?

Janjwar Team
12 July 2017 2:06 PM GMT
चिकित्साधिकारियों ने वसूली के लिए प्लांट कराई फर्जी खबर?
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संवाददाता और अधिकारियों का नेक्सस किस तरह काम करता है, उसका नायाब उदाहरण है दैनिक जागरण, उत्तर प्रदेश के भदोही संस्करण में छपी एक खबर, जिसके बारे में न स्थानीय संवाददाता को पता है और न ही जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी को। सवाल है कि क्या यह खबर वसूली के लिए छपी है...

भदोही। उत्तर प्रदेश के भदोही जिला के गोपीगंज बाजार में स्थित एक निजी अस्पताल 'गुप्ता फ्रैक्चर एंड डेंटल केयर सेंटर' के बारे में दैनिक जागरण के भदोही संस्करण के पेज नंबर दो पर एक खबर छपी है, 'अस्पताल संचालक पर मुकदमा, सील का आदेश।'

जनज्वार ने जब इस खबर की पड़ताल की तो पता चला कि जिले के मुख्य चिकित्साधिकारी एसके सिंह को इस बाबत कोई जानकारी ही नहीं है और न ही उन्होंने कोई ऐसा आदेश दिया है। उनका यह भी कहना है कि उनकी जागरण संवाददाता या किसी अन्य अखबार के संवाददाता से इस बारे में कोई बात नहीं हुई है। सवाल है कि फिर खबर छपी कैसे?

खबर के सिलसिले में जब निजी अस्पताल के प्रबंधकों ने दैनिक जागरण के गोपीगंज संवाददाता हुरीलाल से बात की तो उन्होंने भी खबर के बारे में अनभिज्ञता जाहिर करते हुए बताया कि उन्होंने ऐसी कोई खबर नहीं लिखी है। हालांकि उन्होंने कहा कि हो सकता है किसी सहयोगी ने लिखी हो। पर इस जवाब से एक नया सवाल यह उभरता है कि मुख्य संवाददाता को पता नहीं, मुख्य अधिकारी ने ऐसा कोई आदेश नहीं दिया, फिर 'अस्पताल के सील और गिरफ्तारी' तक आदेश जैसी बात अखबार ने प्रमुखता से दूसरे पेज पर कैसे छाप दी।

गौरतलब है कि 6 जुलाई को गोपीगंज पीएसयू के चिकित्साधिकारी समेत तीन और चिकित्साधिकारी गुप्ता फ्रैक्चर सेंटर पर पहुंचे थे। सेंटर के मुख्य डॉक्टर आरके गुप्ता कीर जनज्वार से हुई बातचीत के मुताबिक, 'अधिकारियों ने सबसे पहले वहां दहशत का माहौल बनाया। मरीजों को बाहर भगाया और कहने लगे तत्काल रजिस्ट्रेशन के कागजात और अपनी डिग्री के साक्ष्य दिखाइए। मैंने कहा कि मेरा अस्पताल भदोही चिकित्साधिकारी के यहां से 2009 से रजिस्टर्ड है और मेरे सभी कागज जिला चिकित्सालय में जमा हैं।'

डॉक्टर गुप्ता आगे बताते हैं, 'पर अधिकारी तत्काल दिखाने की बात पर अड़े रहे। मैंने कहा कागजात घर पर हैं। पर वह लगातार धमकाते रहे, बोलते रहे आपकी डिग्री फर्जी है। मैंने बताया कि मैं तीन सरकारी नौकरी कर चुका हूं। सेना में भी की है। मैंने कानपुर और मेरठ के सरकारी मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई की है, सबकुछ है पर अभी नहीं दिखा सकता। ऐसे में वह कहते हुए चले गए कि आके जिला अस्पताल में मिलना। जबकि मेरे 2017—18 के नवीनीकरण के कागजात पिछले चार महीनों से अस्पताल में पड़े हुए हैं। (देखें फोटो)'

इस बात को चिकित्साधिकारी एसके सिंह भी एक हद तक ठीक ठहराते हैं। वे बताते हैं कि अभी हमने कोई कार्यवाही नहीं की है, सिर्फ उनको बुलाया है कि वह कागज लेकर आएं। पर डॉक्टर गुप्ता का कहना कि उस दिन मौखिक रूप से किया गया चिकित्साधिकारियों का व्यवहार और आज की खबर ने आर्थिक रूप से बहुत नुकसान किया है। एक ख्यात हो रहे अस्पताल की प्रतिष्ठा को धूमिल भी किया है।

एसके सिंह की बातचीत से स्पष्ट है कि खबर उन्होंने नहीं छपवाई है। ऐसे में उनकी बात पर भरोसा किया जाए तो खबर को प्लांट कराने के पीछे वो चार चिकित्साधिकारी हैं जो कि गुप्ता फ्रैक्चर एंड डेंटल केयर सेंटर में पूछताछ के लिए पांच दिन पहले अस्पताल के प्रबंधक डॉ. आरके गुप्ता से मिले।

पूरे मसले को और भी स्पष्टता से समझने के लिए पढ़िये भदोही चिकित्साधिकारी को।

जनज्वार के सवाल और भदोही सीएमओ एसके सिंह के जवाब

गोपीगंज में गुप्ता हॉस्पिटल एंड ट्रामा सेंटर को सीज करने और डॉक्टर के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की खबर छपी है?
हां, छपी है। उनके हॉस्पिटल का रजिस्ट्रेशन समाप्त हो गया है। और भी कागज नहीं हैं उनके पास।

तो आप कार्यवाही के तहत हॉस्पिटल को सील और डॉक्टर पर मुकदमा दर्ज करने जा रहे हैं?
कार्यवाही कहां करने जा रहे हैं। अभी तो उनसे कहा है कि कागज लाकर दिखाएं, जो कमी—बेसी होगी वह देख जी जाएगी।

जब अभी आप कमी—बेसी को देखने के मूड में हैं, फिर सील और मुकदमे की खबर अखबार में क्यों छपवाई?
मैंने कहां छपवाई। वह तो अपने आप लिख दिया है दैनिक जागरण वाले ने। मुझसे तो रिपोर्टर की बात तक नहीं हुई है, कुछ पूछा भी नहीं।

अपने मन से कैसे कोई खबर लिख सकता है, कोई तो आधिकारिक रिलीज जारी करता होगा आपके यहां, अलबत्ता आप ही क्योंकि आप जिले के सबसे बड़े चिकित्साधिकारी हैं?
ऐसा कुछ नहीं होता यहां। कोई कुछ भी लिख देता है। रिलीज जारी करने का कोई चलन नहीं है। और मैं गोपीगंज गुप्ता हॉस्पीटल में गया भी नहीं था, जिस दिन के बारे में यह खबर छपी है।

कौन गए थे और कब गए थे? क्या वह आपके भेजे ही अधिकारी थे जिन्होंने तीन बार सरकारी नौकरी कर चुके डॉक्टर की डिग्री को फर्जी कहा?
यही कोई चार—पांच दिन पहले की बात है। तीन—चार लोग गए थे। उन्होंने डॉक्टर से कागज—आदि मांगे तो डॉक्टर गुप्ता ने बदतमीजी से बात की। कोई कागज भी नहीं दिखाया।

आपके आदेश पर जो नोडल अधिकारी यानी डिप्टी सीएमओ गए थे, उन्होंने कोई कार्यवाही की, आपको कोई कार्यवाही पत्र सबमिट किया?
नहीं, ऐसा कुछ नहीं किया। अभी मुंह से बोलकर आए थे।

आपके अधिकारी मुंह से बोलकर आते हैं और खबर छपती है कि सील होगा हॉस्पिटल और दर्ज होगा डॉक्टर पर मुकदमा?
मैं कह रहा हूं, मैंने नहीं लिखवाई खबर। अधिकारियों में से किसी ने कुछ कहा हो तो मैं नहीं कह सकता।

आपने कोई कागजी कार्यवाही की नहीं, आपके भेजे अधिकारियों ने अस्पताल प्रबंधन को कोई नोटिस दिया?
नहीं.

फिर क्या अधिकारी पैसे या घूस के लिए सिर्फ धमकाने तो नहीं गए थे?
मैं जनवरी से आया हूं, यहां ये सब नहीं अब नहीं चलता। पहले का कह नहीं सकता। जिसके कागज पूरे रहते हैं मैं उसका रजिस्ट्रेशन कर देता हूं।

लेकिन गुप्ता हॉस्पिटल प्रबंधन का कहना है कि उन्होंने 4 महीने पहले से आपके यहां नवीनीकरण का आवेदन दिया है?
हमारे यहां कोई आवेदन नहीं आया है। अगर आया होता तो हमने उनको बता दिया होता कि आपके अस्पताल का नवीनीकरण किस कमी से नहीं हो पा रहा है।

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