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समाज

मोदी सरकार ने मनरेगा मजदूरों की 800 करोड़ बकाया मजदूरी में से चुकाए मात्र 171 करोड़

Prema Negi
7 March 2019 10:04 AM GMT
मोदी सरकार ने मनरेगा मजदूरों की 800 करोड़ बकाया मजदूरी में से चुकाए मात्र 171 करोड़
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मनरेगा को कमजोर करके गरीबों-मजदूरों के हितों पर कुठाराघात कर रही है मोदी सरकार,

लखीमपुर खीरी से मुश्ताक़ अली अंसारी की रिपोर्ट

जब हम गांवों के हालात पर नजर डालते हैं तो देखते हैं कि वहां मुख्यतया दो ही काम हैं। एक किसानी, दूसरा मजदूरी। कुछ लोग फेरी लगाकर धनिया मिर्चा कपड़े आदि बेचकर जीवन यापन करते हैं, तो कुछ खेती से। सत्तर फीसदी किसान दो एकड़ से कम जमीन के मालिक हैं और एक एकड़ या उससे कम जमीन वाले किसान और भूमिहीन मजदूर गांवों में खेती किसानी के काम के बाद बेरोजगार ही रहते हैं। उनमें से कुछ भवन निर्माण के कार्य में जुड़े होते हैं।

वर्ष 2006 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना आयी तो इसने गांवों के सीमांत किसानों और भूमिहीन मजदूरों के लिये लाइफ लाइन का काम किया। भष्टाचार की तमाम बुराइयों के बावजूद अब तक कि सबसे कामयाब योजना थी, क्योंकि यह काम के अधिकार और मांग आधारित योजना है। मगर पिछले 4 वर्षों में मजदूरी भुगतान की लेटलतीफी ने इस योजना से मजदूरों को निराश किया है।

एक बार विपक्ष में रहते हुए बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने संयुक्त राष्ट्र संघ में मनरेगा की तारीफ़ों के पुल बांधे थे, तो उन्हीं की पार्टी के नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद इस योजना को असफलता का पिटारा कहकर मजाक उड़ाया और गाजे बाजे के साथ जारी रखने की बात कही, लेकिन वो बात भी जुमलेबाजी ही हो गयी।

मजदूरों को काम करने के 15 दिन में भुगतान मिलने के बजाय 2 से 3 माह बाद मजदूरी का भुगतान हो रहा है, वह भी तब जब जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (NAPM) ने देशभर में अभियान चलाकर प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ बकाया मजदूरी न देने के आरोप में थानों में प्राथमिकी दर्ज कराने के लिए प्रार्थनापत्र देने शुरू कर दिये। भारत सरकार की मनरेगा वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार मोदी सरकार ने मनरेगा मजदूरों की 800 करोड़ बकाया मजदूरी के सापेक्ष मात्र 171 करोड़ रुपये ही दिये।

योजना से जुड़े सामाजिक लेखा परीक्षा समन्वक धनीराम कहते हैं, मनरेगा योजना भले ही आमतौर पर अपनी अव्यवस्थायों व अनियमितताओं को लेकर सुर्खियों में रहती हो, लेकिन इन सबके बावजूद मनरेगा का जो असली सच और निष्कर्ष है वह बेहद सुखद है, क्योंकि इस योजना से कई पहलुओं पर विकास हुआ है। कई गरीब किसानों की मनरेगा से तकदीर बदल गयी है। जिन किसानों की जमीन उपजाऊ नहीं थी, सिंचाई के साधनों के अभाव में असिंचित पड़ी रहती थी, आज उनकी असिंचित जमीनों को मनरेगा ने सिंचित बना दिया है। गरीब किसानों के खेतों पर मनरेगा के तहत सिंचाई कूप के खुद जाने से अब वही असिंचित जमीन सिंचित बन गई है। उन पर भरपूर फसलों की पैदावार होने लगी है, जिससे किसान समृद्ध बनने लगे हैं।

ठीक इसी प्रकार मनरेगा ने ग्रामीण विकास अन्य कई पहलुओ पर भी विकास किया है, चाहे वह बस्ती में नाली निर्माण हो या खड़ंजा निर्माण, सीसी रोड निर्माण हो या शौचालय आदि कई तरह के कार्यों को मनरेगा से कराया जा रहा है।

मनरेगा से कराये गए लिंक रोड निर्माण से कई बस्तियों को आपस में जोड़ा जा सका है, तो वहीं किसानों को खेतों पर पहुंचने के लिए सेक्टर मार्गों का निर्माण मनरेगा से कराया गया है। जल संचयन एवं संवर्धन के क्षेत्र में तो मनरेगा से अद्भुत प्रयास किये गए हैं, जो आज सफलता की कहानियों में तब्दील होते नजर आते हैं।

धनीराम आगे कहते हैं, खेतों पर बंधी निर्माण, चेक डैम निर्माण तालाब खुदाई आधी इन कार्यों के हो जाने से बरसात के जल का संचयन होना संभव हो पाया है, जिससे बुंदेलखंड जैसे पिछड़े क्षेत्र में जहां गिरता भूजल स्तर एक बहुत बड़ा संकट पैदा हो गया था, वहां जलस्तर को नियंत्रित करने में बहुत बड़ी सफलता मिली है। मनरेगा ने इस समस्या को नियंत्रित करने के लिए बहुत ही कारगर प्रयास किए हैं।

सरकार द्वारा मनरेगा को हाईटेक बनाने के लिए नए नए तरीके अपनाये जा रहे हैं और भुगतान प्रक्रिया को आसान बनाने के प्रयास हो रहे हैं, जो सराहनीय है। मगर इतने युद्धस्तर पर हुए विकास कार्यों के चलते भी मनरेगा को आमतौर पर बुरा ही कहा जा रहा है, मनरेगा को बदनाम और बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार विभागीय जनो को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, उनकी मंशा पर सवाल खड़े हो रहे हैं क्योंकि मनरेगा में पिछले 2-3 वर्षों से भुगतान प्रक्रिया हद से ज्यादा प्रभावित हुई है। भुगतान विलंबित होने की स्थिति 2 से 4 महीने तक पहुंच गई है।

सामग्री भुगतान प्रक्रिया प्रभावित होने से सैकड़ों परियोजनाएं अधूरी पड़ी हैं। आधार बेस्ड भुगतान मजदूरों को तमाम खामियों के चलते सहूलियत की बजाह आफत बना है। मजदूरों को 3-4 माह तक मजदूरी नही मिल पा रही है और कार्मिकों की बदहाली पर ठोस निर्णय नहीं लिया जा रहा है।

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