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रामनगर के कालूसिद्ध गांव में मनेगा सावित्रीबाई फुले का जन्मदिन

Janjwar Team
1 Jan 2018 7:37 PM GMT
रामनगर के कालूसिद्ध गांव में मनेगा सावित्रीबाई फुले का जन्मदिन
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सामाजिक संगठन महिला एकता मंच की अगुवाई में मनाया जाएगा भारत की पहली महिला अध्यापक का जन्मदिन...

रामनगर, जनज्वार। भारत की प्रथम महिला शिक्षिका, समाज सुधारक एवं मराठी कवि सावित्रीबाई फुले के जन्मदिवस पर 3 जनवरी, 2018 को उत्तराखण्ड के रामनगर स्थित कालूसिद्ध गांव में एक कार्यक्रम आयोजित किया जाएगा। यह कार्यक्रम सामाजिक संगठन महिला एकता मंच द्वारा उनकी याद में आयाजित किया जा रहा है।

गौरतलब है कि समाजसेविका सावित्री बाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को हुआ था। उनका नाम देश की पहली महिला शिक्षिका के रूप में दर्ज है। उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने तथा उनके जीवन को बेहतर बनाने के लिए अपना समूचा जीवन समर्पित कर दिया। 9 वर्ष की उम्र में उनका विवाह ज्योतिबा फुले के साथ हो गया था। ज्योतिबा फुले ने उन्हें शिक्षित-प्रतिक्षित किया तथा महिलाओं को शिक्षा देने के लिए प्रेरित किया।

सावित्रीबाई फुले ने जनवरी 1848 को पुणे में पहला कन्या स्कूल खोला तथा लड़कियों को शिक्षित करना प्रारम्भ किया। धर्मगं्रथों में महिलाओं को शिक्षा की इजाजत नहीं है इस कारण समाज का एक हिस्सा उनके खिलाफ हो गया। जब वह पढ़ाने के लिए स्कूल जाती थीं तो लोग उन्हें हतोत्साहित करने के लिए उनके ऊपर कीचड़ फेंकते थे।

उनसे निबटने के लिए सावित्रीबाई एक साड़ी अपने थैले में रखकर ले जातीं तथा स्कूल पहुंचकर गन्दी साड़ी बदलकर लड़कियों को शिक्षा देती थीं।

सावित्री बाई व ज्योतिबा फुले ने शुद्रों व अल्पसंख्यक वर्ग के स्त्री-पुरुषों की शिक्षा को भी बेहद जरुरी माना। फातिमा शेख जो कि उनके स्कूल की एक छात्रा थी, उसे अपने एक स्कूल में अध्यापिका बनाकर फातिमा शेख को देश की पहली मुस्लिम अध्यापिका होने का सम्मान प्रदान किया।

सावित्रीबाई फुले ने विधवा स्त्रियों की मदद का बीड़ा भी उठाया। उस दौर में सावित्रीबाई ने पुणे शहर में विधवा गर्भवती स्त्रियों की देखभाल के लिए बाल हत्या प्रतिबंधक गृह की स्थापना की, जिसमें हिंसा की शिकार तथा समाज की उपेक्षित विधवा स्त्रियों को सहारा दिया जाता था।

विधवा महिलाओं की स्थिति कितनी खराब थी इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि उनके गृह में 4 सालों के अंदर ही 100 से अधिक विधवाओं ने बच्चों को जन्म दिया, जिसमें से अधिकतर ब्राहमण स्त्रियां थी। 1873 में उन्होंने एक ब्राहमण विधवा स्त्री काशीबाई के पुत्र को गोद ले लिया उसका नाम यशवंत रख उसे पढ़ाने-लिखाने का कार्य भी किया।

यशवंत पढ़ लिखकर डॉक्टर बना तथा अपने माता-पिता की तरह समाज की सेवा में लग गया। 1879 में पूणे में प्लेग फैल गया एक बीमार की सेवा करते हुए प्लेग से संक्रमित हाने के कारण सावित्रीबाई फुले का देहान्त हो गया।

साबित्रीबाई फुले का जीवन महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत है। आजादी के 70 वर्षों बाद भी महिलाओं को बराबरी का हक नहीं मिल पाया है। दहेज हत्या, भ्रूण हत्या, बलात्कार, यौन उत्पीड़न भारत की कड़वी हकीकत है। सरकार लगातार शिक्षा का निजीकरण कर रही है जिस कारण समाज की महिलाएं एवं गरीब लोग चाहकर भी शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं। देश में सभी को निःशुल्क, समान व वैज्ञानिक शिक्षा तथा सम्मानजनक रोजगार की गारन्टी के बगैर हम महिलाओं के जीवन में बदलाव सम्भव नहीं है।

महिलाओं को जो भी नाममात्र के अधिकार मिल पाए हैं वह पूर्वज महिलाओं के संघर्षों का ही परिणाम है। आज जरूरत इस बात की है कि हम उन महिलाओं को याद करें, उनसे प्रेरणा लें जिन्होंने देश, समाज व महिलाओं के अधिकारों के लिए अपना जीवन लगा दिया।

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