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जनज्वार विशेष

नोटबंदी की असफलता से मोदी के खिलाफ न बने माहौल, इसके लिए गोदी मीडिया ने फैलाई 'अरबन नक्सल' की फर्जी सनसनी

Prema Negi
30 Aug 2018 5:02 AM GMT
नोटबंदी की असफलता से मोदी के खिलाफ न बने माहौल, इसके लिए गोदी मीडिया ने फैलाई अरबन नक्सल की फर्जी सनसनी
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मोदी ने कहा था अगर मेरा नोटबंदी का फैसला गलत हुआ तो मुझे 50 दिन के अंदर चौराहे पर जला देना जिंदा, पर देश की सहिष्णुता देखिए कि कोई मोदी का पुतला भी नहीं जला रहा, जबकि भक्त और मोदी समर्थक लगे हैं विरोधियों को चुप कराने, उन पर हिंसा करने में

कल जारी हुआ आरबीआई का आधिकारिक आंकड़ा, पर माहौल में रही अरबन नक्सल की सनसनी, लेकिन सदी की सरकार प्रायोजित सबसे बड़ी तबाही 'नोटबंदी' की असफलता पर नहीं हुई कोई चर्चा, न टीवी वालों ने किया दंगल, न चकल्लस और न थूकमफजीहत

जनज्वार। आरबीआई ने नोटबंदी को लेकर अपनी रिपोर्ट जारी करते हुए कहा है कि बैंकों में 99.3 फीसदी रुपए वापस आ गए। जबकि तकरीबन 2 साल पहले 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी ने आधी रात को अचानक नोटबंदी का फैसला लिया था तो दावा किया था 3 से 4 लाख करोड़ रुपए का कालाधन सिस्टम से निकल जाएगा, जबकि आरबीआई की रिपोर्ट कहती है मात्र 10,720 करोड़ रुपए यानी 0.7 प्रतिशत 1000 या 500 के नोट ही बैंकों में वापस नहीं आ पाए।

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पर आरबीआर्इ इसे भी कालाधन नहीं कह रही, क्योंकि पुराने 1000 और 500 नोट नेपाल और भूटान में चल रहे हैं। जाहिर है यह पैसा वहीं के बाजार का है।

अब 10, 720 करोड़ के भी हिसाब को समझें। आरबीआई रिपोर्ट जारी कर बता चुकी है कि दो बार नए नोट छापने में क्रमश: 7,965 करोड़ और 4, 912 करोड़ रुपए लगे, यानी कुल 12 हजार 877 करोड़ मोदी सरकार ने नए नोट छापने पर खर्च किए।

यानी नोटबंदी के बाद बैंकों में जो पैसा वापस नहीं आया वह 10 हजार 720 करोड़, जबकि नए नोटों की छपाई खर्च हुआ 12 हजार 877 करोड़। यानी 2157 करोड़ छपाई में ज्यादा खर्च हुआ। खैर 99.3 प्रतिशत आने के बाद जो बची रकम 10 हजार 720 करोड़ है वह तब है जबकि अब तक नेपाल और भूटान में पुराने नोट ही चल रहे हैं।

गोदी मीडिया का मकसद था करोड़ों लोगों की बेरोजगारी, लाखों छोटे—बड़ी फैक्ट्रियों के बंद होने, सैकड़ों हत्याओं—आत्महत्याओं के लिए सीधे जिम्मेदार मोदी पर न उठे कोई सवाल

नवंबर 2016 में अटॉर्नी जनरल आॅफ इंडिया मुकुल रोहतगी ने सर्वोच्च न्यायालय में बताया था कि मार्केट में चल रहे कुल नोटों यानी 15.44 लाख करोड़ में से 4 से 5 लाख करोड़ यानी करीब 25 प्रतिशत नकली होंगे, जबकि अब साबित हो गया है मुकुल रोहतगी ने अदालत में सरेआम झूठ बोला।

इन आंकड़ों से साफ है कि एक रुपए का कालाधन सरकार के पास नहीं आया है और इसे कोई मोदी विरोधी नहीं बल्कि रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया कह रहा है। अलबत्ता अर्थशात्रियों के अनुसार नोटबंदी से 3 लाख करोड़ का नुकसान हुआ है। साथ ही नकली नोटों का सर्कुनेशन नोटबंदी के साल के बाद से लगातार बढ़ रहा है।

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आरबीआई के अनुसार नोटबंदी के बाद 100 रुपए के नकली नोटों में 35 फीसदी और 50 के नकली नोटों में 154.3 फीसदी की बढ़ातरी हुई है। आरबीआई ने आगे यह भी कहा है कि 500 और 2000 हजार रुपए के नकली या जाली नोटों की संख्या नोटबंदी के पहले साल यानी नोट छपाई के शुरुआती वर्ष में 199 और 638 थी, जो 2017—18 के बीच क्रमश: 9892 और 17 हजार 929 हो गयी।

मोदी की नोटबंदी ने हजारों घर—परिवार—दांपत्य जीवन उजाड़े, मर्दों से पीड़ित औरतों के पास रखे सुरक्षित चंद पैसे भी अब नहीं रहे उनके पास, उन मांओं की झोली भी सिक्कों से हुई खाली जिन्होंने बगैर बैंक खातों के अपने पास रखे थे हजार—दो हजार, उन लड़कियों के पास भी कुछ नहीं बचा तो भाई और बाप से अलग अपने पास रखती थीं एक बटुआ, जिसमें छुपी होती थी उनकी जिंदगी की उड़ान, कुछ खुशियां और सपने

इस रिपोर्ट के बाद यह पूरी तरह साफ हो गया है कि मोदी का नोटबंदी के फैसले ने सिवाय आम जनता की परेशानियां बढ़ाने के और देश का बजट बिगाड़ने के और कुछ नहीं किया। नोटबंदी के दौरान लोगों ने जो जिल्लतें झेलीं, सैकड़ों मौतें हुईं और लाखों—लाख लोग बेरोजगार हुए उसके ​लिए सीधे—सीधे मोदी सरकार जिम्मेदार है।

सरकार ने कहा कि नोटबंदी के के दौरान नकदी जमाखोरों पर जबर्दस्त छापेमारी हुई, जिसमें क्रमश: अज्ञात और अघोषित आय के तहत 1,003 करोड़ और 17,526 करोड़ रुपए सरकार ने जब्त किए। 1700 हजार करोड़ 35000 हजार सेल कंपनियों से इकट्ठा किया गया। ध्यान रहे कि कुल दावों का यह मात्र दो प्रतिशत है, जबकि सरकार ने कहा था कि इतनी नकदी की जब्ती कभी नहीं हुई थी।

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पर मोदी सरकार की यह दावेदारी तब सिर के बल खड़ी हो जाती है और झूठी साबित होती है जब कैग की रिपोर्ट बताती है कि नोटबंदी के बिना ही 2012—2013 में 19 हजार 337 करोड़ और 2013—2014 में 90 हजार 391 करोड़ अज्ञात स्रोतों के आए कैश को जब्त किया था।

गौरतलब है कि नई करेंसी बाजार में लाते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने मीडिया के सामने सीना ठोककर और आंखों में आंसू भरकर दावा किया था कि अगर मेरा नोटबंदी का फैसला गलत साबित हुआ तो मुझे 50 दिन के अंदर चौराहे पर जिंदा जला देना। मगर अब तो 22 महीने गुजर चुके हैं और आम जनता नोटबंदी की मार से अभी तक उबर नहीं पाई है। हां अपने मोदी जी जरूर जिंदा हैं बल्कि नई लफ्फाजियों के साथ।

आंखों में आंसू भरकर मोदी ने किया था दावा अगर मेरा नोटबंदी का फैसला गलत साबित हुआ तो मुझे 50 दिन के अंदर चौराहे पर जला देना जिंदा

नोटबंदी के फायदे गिनाते हुए मोदी ने कहा था कि नोटबंदी से आतंकी घटनाओं में कमी आएगी जबकि सच यह है कि 2017 में 184 तो 31 जुलाई 2018 तक 191 बड़ी आतंकी घटनाएं सामने आई हैं। इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट में यह दावा भी किया था कि 3 से 4 लाख करोड़ का कालाखान सिस्टम से बाहर निकल जाएगा, जबकि हकीकत यह है कि 99.3 फीसदी धन बैंकों में वापस आया।

जो .7 फीसदी बैंकों में वापस नहीं आया उसे लेकर भी कहा जा रहा है कि चूंकि भूटान और नेपाल में पुरानी करेंसी चलती है तो वह भी वहां होगी। यानी देश में कालाधन तो था ही नहीं। तो सवाल है कि आखिर कालेधन का क्या हुआ। यह आंकड़ा तो यह भी साबित करता है कि कालाधन देश में था ही नहीं।

आरबीआई की कल 30 अगस्त को आई फाइनल रिपोर्ट ने किया साबित कि मोदी ने नोटबंदी के नाम पर देश के साथ किया सदी का सबसे बड़ा धोखा और भ्रष्टाचार, तबाह किया देश की गरीब, रोजगारत और ईमानदार जनता को और मालामाल किया अंबानियों'—अडानियों जैसे चंद पूंजीपतियों को

मोदी जी ने तीसरा दावा किया था कि नोटबंदी के बाद देश से भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा क्योंकि देश को इस दीमक से मुक्त करने के लिए यह सख्त कदम उठाना जरूरी है। जबकि आंकड़ा और रिपोर्टें हकीकत बयां करते हुए सच्चाई का आईना दिखाती हैं कि भ्रष्ट देशों की सूची में भारत 81वें पायदान पर है। जबकि नोटबंदी से पहले भारती 79वें नंबर पर था। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की यह रिपोर्ट मात्र 175 देशों के सर्वे पर आधारित थी।

दूसरी तरफ यह आंकड़ा भी सामने आया है कि नई करेंसी आने के बाद 500 के 4171 फीसदी तो 2000 के 2710 फीसदी नोट नकली पाए गए हैं।

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नोटबंदी की विफलता और आरबीआई की रिपोर्ट सामने आने के बाद पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि नोटबंदी पूरी तरह विफल साबित हुई है। जो करेंसी बैंकों में वापस नहीं लौटी उसमें से भी ज्यादातर भूटान और नेपाल में हो सकती है क्योंकि वहां पुराने नोट चलन में हैं। दूसरी तरफ नोटबंदी से जीडीपी ग्रोथ रेट 1.5 फीसदी घट गई। देश को यही नुकसान 2.25 करोड़ रुपए का है। नई करेंसी जारी करने में जो करोड़ों करोड़ खर्च हुए वह घाटा अलग।

सबसे बड़ी बात इस दौरान जो सैकड़ों मौतें हुईं उसके लिए सीधे—सीधे मोदी सरकार जिम्मेदार है। नोटबंदी से हुई लाखों बेरोजगारी के बाद जो परिवार, बच्चे दाने—दाने के लिए मोहताज हुए, उसका दोष क्या मोदी पर नहीं जाता। नोटबंदी के कारण देशभर में 150 लोग मरे थे, जिनको सरकार ने किसी तरह का कोई मुआवजा नहीं दिया। मरने वालों में वो लोग थे जिनके नोट नहीं बदले, नोट बदलने के दौरान मर गए।

ऐसे में जब आप कल आरबीआई द्वारा जारी आंकड़ों और उससे एक दिन पहले अरबन नक्सल के नाम पर देश भर में हुई छापेमारियां और गिरफ्तारियों का सिलसिला देखेंगे तो साफ हो जाएगा कि असल में किसको बचाने और किन मुद्दो से जनता का ध्यान भटकाने के लिए अरबन नक्सली की सनसनी गोदी मीडिया और पुलिस ने फैलाई।

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