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विमर्श

पूंजीपतियों की मैनेजमेंट कमेटी बन चुकी सरकार

Janjwar Team
10 July 2017 1:54 PM GMT
पूंजीपतियों की मैनेजमेंट कमेटी बन चुकी सरकार
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सरल भाषा में समझिए जीएसटी को

सरकार खुलेआम जीएसटी के रूप में अप्रत्यक्ष करों का बोझ बढ़ाकर जनता की जेब काट रही तो पूंजीपतियों को दोनों हाथों से रियायतें बांट रही है...

मुनीष कुमार, आर्थिक विश्लेषक

कहते हैं कि खरबूजा चाकू पर गिरे या या चाकू खरबूजे पर कटता खरबूजा ही है। बिक्री कर लगाया जाए या सेवाकर लगाया जाए, जनता पर मूल्य वर्धित कर (वैट) लगे अथवा गुड्स एवं सर्विस टैक्स (जीएसटी)। इन सभी अप्रत्यक्ष करों का भार तो अंततः जनता पर ही पड़ता है।

देश में 1 जुलाई 2017 को जीएसटी के रूप में किए गये सबसे बड़े कर सुधार को लेकर देश में बहस तेज हो चुकी है। सरकार का दावा है कि इस कर सुधार से देश में कर चोरी व भ्रष्ट्राचार पर अंकुश लगेगा, तथा जीडीपी बढ़ेगी। वहीं देश के व्यापारी वर्ग का बड़ा हिस्सा इस कर सुधार के खिलाफ है तथा जीएसटी के नियमों में तब्दीली चाहता है।

जीएसटी केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा 1 जुलाई से पूर्व लगाए गये 17 प्रकार के टैक्स व 23 प्रकार के उपकरों (सेस) का स्थान लेगा। देश के कपड़ा व्यवसाय पर पहली बार 5 प्रतिशत जीएसटी लगाकर इसे अप्रत्यक्ष कर के दायरे मे लाया गया है। जीएसटी के बाद बैंकिंग, मोबाइल सेवा, कपड़े से लेकर ज्यादातर जनता की जरुरत की वस्तुएं महंगी हो जाएंगी। हालांकि सरकार ने अनाज, दूध, दही, पुस्तकों आदि को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा है। जीएसटी के तहत राज्य के भीतर की गयी बिक्री एवं सेवा पर वसूले गये टैक्स पर केन्द्र व राज्य का हिस्सा (आई.जी.एस.टी व एस.जी.एस.टी के रूप में) आधा-आधा होगा। एक राज्य से दूसरे राज्य के बीच की गयी बिक्री एवं सेवा पर वसूला गया (आई.जी.एस.टी) पूर्णतः केन्द्र सरकार के खजाने में जाएगा।

जीएसटी को सरकार ‘एक देश, एक कर’ व्यवस्था के रूप में प्रचारित कर रही है। प्रधानमंत्री मोदी ने इसे गुड एंड सिंपल (अच्छा व आसान कर) के रूप में परिभाषित किया है। सवाल यह है कि जीएसटी किसके लिए अच्छा व आसान कर है।

जीएसटी देश के 4 करोड़ से अधिक छोटे-मझोले व्यापारियों के लिए कहीं से भी अच्छा व आसान नहीं है। सभी वस्तुओं पर कर वसूली के लिए हारमोनाइज्ड सिस्टम नाॅमेनक्लेचर कोड (एच.एस.एन. कोड) जारी किए हैं। व्यापारी को अपने द्वारा बेचे गये माल के बिलों पर एच.एस.एन कोड लिखना अनिवार्य होगा। डेढ़ करोड़ रु. सालाना टर्नओवर के व्यापारियों के लिए एच.एस.एन कोड दर्ज न करने की छूट होगी।

डेढ़ से पांच करोड़ का टर्न ओवर होने पर एच.एस.एन की दो डिजिट बिल पर दर्ज करनी अनिवार्य होगी। पांच करोड़ से अधिक का टर्नओवर होने पर एच.एस.एन कोड की 4 डिजिट दर्ज करनी होगी तथा निर्यातकों को पूरा एच.एस.एन कोड दर्ज करना अनिवार्य होगा। 99 चैप्टर के अंर्तगत आने वाले इन एच.एस.एन कोड के 1200 से भी अधिक हैडिंग व 5 हजार से भी अधिक सबहैडिंग हैं।

इसी तरह से सेवा प्रदाओं के लिए भी सर्विस एकाउन्टिंग कोड (एस.ए.सी कोड ) जारी किए गये हैं। ड्राईक्लीन, रेस्टोरेन्ट से लेकर शादी-विवाह के पंडाल तक की 124 प्रकार से भी अधिक सेवाएं अब जीएसटी के दायरे में आ चुकी हैं।

जीएसटी के तहत 20 लाख रूपए सालाना टर्न ओवर वाले व्यापारियों के लिए पंजीकरण अनिवार्य है। जो व्यापारी दिन भर में 5480 या इसे अधिक का लेन देन दिनभर में कर कर लेगा, उसे वैट के अंतर्गत पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा तथा हर महीने की अपनी आय-व्यय का ब्यौरा कम्यूटर, इंटरनेट के माध्यम से सरकार को देना होगा।

यदि व्यापारी किसी हिमालयी राज्य, मसलन उत्तराखंड या हिमाचल प्रदेश जैसे राज्य में व्यापार करता है तो 10 लाख रु. से अधिक सालाना कारोबार करने वाले व्यापारी को पंजीकरण कराना व हर माह रिटर्न भरना अनिवार्य होगा। यानी व्यापारी दिनभर में 2740 रूपए से अधिक का व्यापार कर लेगा, वह सरकार के कर रडार में आ जाएगा। महंगाई के इस दौर में सुबह से शाम तक 6-7 हजार की बिक्री बेहद मामूली बात है।

सरकार के इस नियम का एक ही अर्थ है कि अब देश के छोटे से छोटे व्यापारी को कम्यूटर इंटरनेट रखकर सरकार को हिसाब देना होगा। और जो हिसाब नहीं दे पाएगा वो या तो भ्रष्ट अफसरशाही की जेब भरेगा या फिर जेल में जाएगा।

हिन्दी-हिंदू-हिन्दुस्तान की बात करने व हिन्दी को देश की राष्ट्र भाषा बनाने की वकालत करने वाली भाजपा सरकार ने हिन्दी व किसी अन्य प्रान्तीय भाषा में जीएसटी टैक्स रिटर्न भरने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है। जीएसटी का सारा व्यवहार अंग्रेजी में ही करना अनिवार्य है। जिस देश की बहुलांश आबादी साक्षरता के नाम पर अपना नाम ही बड़ी मुश्किल से लिख पाती हो, वहां पर जीएसटी का यह प्रावधान प्रधानमंत्री की भाषा में कितना अच्छा व सरल है आप स्वयं ही समझ सकते हैं।

सरकार का कहना है जीएसटी मतलब एक देश-एक कर। सरकार ने जीएसटी की मुख्यतः 4 दरें 5,12,18 व 28 प्रतिशत निर्धारित की हैं जो कि दुनिया की सर्वाधिक टैक्स दरों में हैं। फ्रांस, इंग्लैण्ड में जीएसटी की अधिकतम दर 20, न्यूजीलैंड में 15, वियतनाम, आस्ट्रेलिया में 10, सिंगापुर में 7 तथा मलेशिया में अधिकतम दर 6 हैं।

सरकार ने शराब, बिजली, रियल स्टेट व पैट्रोलियम को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा है। पेट्रोल-डीजल जैसी वस्तुओं पर केन्द्र व राज्य सरकारें मिलकर 100 प्रतिशत से भी अधिक टैक्स वसूलती हैं। यदि सरकार पैट्रोलियम पदार्थों को और उसमें भी खासतौर से डीजल को ही जीएसटी के दायरे में ले आती और इस पर अधिकतम 28 प्रतिशत की दर से कर लगा देती तो भी देश में महंगाई पर एक हद तक अंकुश लगाया जा सकता था।

दरअसल सरकार इस टैक्स सुधार के रूप में कुछ और ही करना चाहती है। केन्द्र व राज्यों की गद्दी पर काबिज सरकारें खुलकर बड़ी इजारेदार देशी व विदेशी पूंजी के हित में काम कर रही है। जनता के वोटों के दम पर चुनी गयीं सरकारें पूंजीपतियों की मैनेजमेंट कमेटी के रूप में तब्दील हो चुकी है। सरकार खुलेआम जीएसटी के रूप में अप्रत्यक्ष करों का बोझ बढ़ाकर जनता की जेब काट रही हैं तथा पूंजीपतियों को दोनों हाथों से रियायतें बांट रही है।

केन्द्र सरकार को पूंजीपतियों पर लगाये गया प्रत्यक्ष कर वैल्थ टैक्स के रूप में वर्ष 2011-12 में 788.67 करोड़ व वर्ष 2012-13 में 844.12 करोड़ का राजस्व प्राप्त हुआ था। उस वैल्थ टैक्स के दायरे में देश के मात्र 1.15 लाख अमीर लोग ही आते थे। इन्हें फायदा पहुंचाने के लिए वित्तमंत्री जेठली साहब ने 2015 के बजट से वैल्थ टैक्स ही खत्म कर दिया।

इतना ही नहीं जेठली-मोदी की जोड़ी ने कोरपोरेट घरानों को फायदा पहुंचाने के लिए 2015 के बजट में कम्पनियों की नेट आय पर लगने वाले कोरपोरेट टैक्स की दरों को भी कम कर दिया। सरकार कोरपोरेट टैक्स की 30 प्रतिशत की दर को अगले 4 वर्षों में घटाकर 25 प्रतिशत पर ला रही है।

सरकार का उद्देश्य जीएसटी को लाकर साम्राज्यवादी-बहुराष्ट्रीय निगमों तथा देशी पूंजीपतियों का हित साधना है। बहुराष्ट्रीय निगमों व देश के बड़े पूंजीपतियों का कारोबार देश के कई सारे राज्यों में फैला हुआ है। राज्यों में करों की दरें अलग-अलग हाने के कारण देशी-विदेशी पूंजीपतियों को अपना माल एक दर पर बेच पाना मुश्किल होता था तथा कारोबार का हिसाब-किताब रखने में भी कई तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता था। उन्हीं की आसानी व हितों की पूर्ति के लिए सरकार यह कर सुधार लायी है।

उनके पास चार्टेड एकाउन्टेंट व लेखकारों की लम्बी फौज है। वे हर स्तर पर कागज का पेट भरने में तथा टैक्स क्रेडिट इनपुट का फायदा लेने में सक्षम हैं। 1 जुलाई के बाद से उनका माल अब निर्बाध एक राज्य से दूसरे राज्य जा सकेगा तथा सभी जगहों पर उनके माल व सेवाओं की दरें भी एक जैसी रहेंगी। सभी जीएसटी रिटर्न अंग्रेजी भाषा में भरे जाने का कानून बनने से उन्हें किसी भी तरह की भाषाई परेशानी भी नहीं आएगी, इसीलिए वे हर्षोल्लास के साथ वे जीएसटी का स्वागत कर रहे हैं।

जीएसटी लागू होने के बाद सरकार के लिए सभी प्रकार के अप्रत्यक्ष कर वसूली करने वाले विभाग गुड्स एवं सर्विस विभाग में मर्ज हो जाएंगे जिससे सरकारी क्षेत्र में निकलने वाली नौकरियों का दायरा भी सिकुड़ जाएगा। अतः सरकार का यह कहना गलत है कि जीएसटी के बाद देश में रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। वैट, सेवा कर, उत्पाद कर, मनोरंजन कर, सिक्योरिटी टांजिक्सन टैक्स आदि कर वसूलने वाले विभाग जीएसटी विभाग में समाहित कर दिये गये हैं।

सरकार ने खेती-किसानी में इस्तेमाल होने वाली कीटनाशक पर 18 प्रतिशत तथा रासायनिक खाद पर 5 प्रतिशत की दर से जीएसटी लगाया है। अभी तक कीटनाशक व रसायनिक खाद जैसी वस्तुएं देश में कर मुक्त थीं। इन पर कर लग जाने के बाद पहले से ही बदहाल देश के किसानों के लिए मुसीबतें बढ़ना तय है।

जीएसटी भारत के संघीय ढांचे पर भी कुठाराघात है। 1 जुलाई से पूर्व वैट, व्यापार व मनोरंजन कर आदि के रूप में वसूले जाने वाले ज्यादातर अप्रत्यक्ष करों पर राज्यों का अधिकार होता था। जीएसटी के तहत इस अधिकार के छिन जाने के कारण राज्यों की केन्द्र पर निर्भरता बढ़ गयी है। भारत विभीन्न राष्ट्रीयताओं का समूह है। सभी राज्यों की भौगौलिक परिस्थितियां व जरुरतें भी अलग-अलग हैं।

राज्य अपने विकास के लिए उ़द्योगों व व्यापार आदि को छूट भी देते है। एक कर, एक देश, के बाद राज्यों का यह अधिकार बेहद सीमित हो चुका है। उस कारण आने वाले समय में न केवल राज्यों के केन्द्र के साथ रिश्तों में खटास पैदा होगी, बल्कि राज्यों के बीच के अंर्तविरोध भी आपस में तीखे होंगे।

राज्यों ने जीएसटी के खिलाफ बगावती तेवर अख्तियार करने शुरू कर दिए हैं। इसकी शुरुआत किसी और ने नहीं भाजपा के मुख्यमंत्री देवेन्द्र फड़नवीस ने की है। जीएसटी लगने से पूर्व महाराष्ट्र सरकार को चुंगी कर के रूप में सालाना 700 करोड़ की आमदनी होती थी। इस आमदनी की क्षतिपूर्ति के लिए महाराष्ट्र की भाजपा सरकार ने 5 जुलाई, 2017 की कैबिनेट बैठक में दोपहिया व चौपहिया वाहनों की खरीद पर 2 प्रतिशत वाहन टैक्स बढ़ाने का निर्णय लिया है।

आने वाले समय में जीएसटी कौंसिल की बैठकों में राज्य केन्द्र से मिलने वाली मदद को लेकर आपस में झगड़ते हुए दिखाई दे तो कोई हैरत की बात नहीं होनी चाहिए। काबेरी जल के बंटबारे को लेकर कर्नाटक व तमिलनाडु का झगड़ा जगजाहिर है। उत्तराखंड राज्य निर्माण के 17 वर्षों बाद भी उत्तर पदेश व उत्तराखंड के बीच परिसम्पत्तियों का बंटवारे का मामला आज तक हल नहीं हो पाया है।

जीएटी किसके हित में है उसका अंदाजा आप 30 जून को संसद भवन में आयोजित जीएसटी लांचिग कार्यक्रम के स्वरूप से भी लगा सकते हैं। 30 जून की मध्यरात्रि में आयोजित जीएसटी उत्सव में रतन टाटा, पूंजीपतियों के संगठन फिक्की के सिरमौर पंकज पटेल, सी.आई.आई. की कामिनेनी, एसोचेम के सुनील कनौरिया जैसे लोग सरकार द्वारा विशेष आमंत्रित थे। वहीं देश करोड़ों छोटे-मध्यम व्यापारी जीएटी का विरोध कर रहे थे तथा सड़कों पर थे।

मोदी सरकार जिस चीज को भी हाथ लगाती है उसे गन्दा करके ही छोड़ती है। जीएटी के मामले में भी ये ही हुआ है। जीएटी जनता पर लगने वाला एक अप्रत्यक्ष कर है जिसकी दरें बेहद ऊंची हैं, जिसकी मार जनता पर ही पड़ेगी। सरकार को जनता पर जीएटी के रूप में अप्रत्यक्ष करों का बोझ डालने की बजाए पूंजीपतियों की आय पर प्रत्यक्ष करों की वसूली बढ़ानी चाहिये तथा राज्यों द्वारा लगाए गये करो में दखलंदाजी बन्द करनी चाहिए।

राज्य द्वारा लगाए गये करों की दरें बेहद कम होनी चाहिए। आम जरुरत की वस्तुओं पर यह दर अधिकतम 0 से 2 प्रतिशत निर्धारित की जा सकती है। सेवा शुल्क को पूर्णतः समाप्त किया जाना चाहिए। देश व प्रदेशों में मंत्रियों, विधायकों, सासंदों, अधिकारियों को मिलने वाले वेतन व सुविधाएं कुशल मजदूर को मिलने वाले वेतन से ज्यादा किसी भी कीमत पर नहीं होनी चाहिए।

जनता से छीनकर पूंजीपतियों को लुटाने की नीति में बदलाव लाकर पूंजीपतियों की आय एवं सम्पत्ति पर अंकुश लगाकर उसे देश की मजदूर-मेहनतकश, किसानों व निम्न आए वर्ग के लोगों के रोजगार व सुख-सुविधाओं पर खर्च करने की नीति पर सरकार को अमल करना चाहिए।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार व समाजवादी लोकमंच के सहसंयोजक हैं.)

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