मोदी राज : संविधान बदले बिना ही संजय और सुलेमान में फर्क शुरू—योगेंद्र यादव
पहली बार मीडिया इतना पालतू हो गया है। उसका धर्म है सत्ता को आईना दिखाना, मगर भारत ही है जहां विपक्ष की टांग हर रोज खींची जाती है...
चंडीगढ़। पंजाब यूनिवर्सिटी में 'छात्र, किसान और राष्ट्रवाद' विषय पर एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इसमें छात्रों, किसानों और राष्ट्रवाद पर विस्तृत चर्चा की गई।
इसमें बोलते हुए स्वराज इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा हम भारतवासी तीन बातों पर गर्व कर सकते हैं : लोकतंत्र, हमने लोकतंत्र का लोकतंत्रीकरण करने का काम किया है। गरीबी व विविधता के बावजूद हम लोकतंत्र बने यह बड़ी उपलब्धि है। विविधता, विविधता के साथ भारत को नेशन स्टेट बनायेंगें यही कहा था गांधी व टैगोर ने। यूरोप के एकांगी नेशन स्टेट को हम क्यों अपनाएं? भारतवासियों ने देश के अंदर विविधता को जिंदा रखा है चाहे कुछ ताकतें उस पर लगातार चोट करने का प्रयास कर रही है। कश्मीर व नार्थ ईस्ट की घटनाएं व साम्प्रदायिक संकीर्णता के मामलों को भूल नहीं सकते, फिर भी हमने विविधता का सम्मान करने का फैसले का सम्मान किया है। विकास, गरिमापूर्ण व स्थायी विकास का विचार हमने दिया। चाहे भारत विकास की मंजिलों को नहीं छू नहीं पाए हैं।
यह सच है कि पहले भी बार बार हमले हुए। इमरजेंसी लोकतंत्र पर खतरा था। 1984 में सिख कत्लेआम व 2002 गुजरात का संहार विविधता पर खतरा आया। विकास के विचार पर भी बार बार खतरा हुआ है। मगर आज तीनों स्तम्भों पर एक साथ खतरा हुआ है। अगर यह धारा चली तो कल पूछना पड़ेगा कि वो हिन्द कहाँ है जिस पर नाज था। देश के लोकतंत्र की संस्थाओं की नींव पर खतरा है।
देश में आज के हालात चिंता पैदा करते हैं न कि डर। चारदीवारी में बसा एक राज्य भर नहीं है भारतीय राष्ट्र! छात्र यूनियनिज्म नहीं बल्कि छात्र पॉलिटिक्स को देश के बड़े सवालों से जुड़ना ही सुंदर राजनीति है ।
मगर जहां पूरी दुनिया आधुनिक विकास को मान रही थी, वहीं गांधी ने कहा कि यह काफी नहीं है। खुशहाली को हम अंतिम व्यक्ति से नहीं नापेंगे। हमें बड़े बांध, बड़ी फेक्ट्री के अलावा भी सोचना होगा। 26 जनवरी 1949 को बने भारतीय राष्ट्र का सपना संविधान के अनुसार "भारत का विचार" इन्हीं तीन स्तम्भों पर टिका है। आज उन्हीं तीनों स्तम्बों पर खतरा है।
योगेंद्र यादव ने कहा मीडिया पर बात रखते हुए कहा, पहली बार इतना पालतू हो गया है। मीडिया का धर्म है सत्ता को आईना दिखाना, मगर भारत ही है जहां विपक्ष की टांग हर रोज खींची जाती है। चाहे इस अंधेरे दौर में भी कुछ पत्रकार व मीडिया संस्थान उम्मीद की किरण दिखाते हैं। इमरजेंसी में सेंसर्ड अखबार की जानकारी मुझे भी है। खबर हटती थी बनाई नहीं जाती थी, मगर अब विज्ञापन को खबर बनाकर अखबार छप रहा है।
उन्होंने कहा 70 साल से इस देश में सेक्युलरिज्म के नाम पर अधर्म हुआ, अब विधर्म हो रहा है। सेक्युलरिज्म पवित्र सिद्धान्त, मगर इस नाम पर पाखंड हुआ है। कुछ ताकतें आज कह रही हैं कि इसकी जरूरत ही नहीं है। अल्पसंख्यक के लिए खतरा पैदा कर सुरक्षा की दुहाई दी जाती है।
योगेंद्र यादव ने कहा, प्रधानमंत्री रामनवमी पर पूजा करे तो उसे इफ्तार भी करनी होगी, क्योंकि आप भारत के प्रधानमंत्री है किसी धर्म के नहीं। संविधान को थानेदार तय करता है। यदि कोई पुलिस अधिकारी संजय व सुलेमान से पूछताछ करते हुए अलग अलग बर्ताव करता है तो सन्देश साफ है कि बिना संशोधन के संविधान बदल दिया जा रहा है। मुसलमान को दूसरे दर्जे के नागरिक बना दिया जा रहा है।
गरिमापूर्ण विकास के विकल्प को मिटाया जा रहा है। अब तक बहुत भी गरिमापूर्ण विकास के लिए ज्यादा कुछ नहीं हुआ, मगर अब बेशर्मी से सत्ता व पूंजी एक साथ सामने आ रहा है। इन हालातों को लेकर कुछ चिंता ही नहीं करते, कुछ सोचते हैं कि गठबंधन से हल हो जाएगी। जो पार्टियां इन हालातों की कारण है वे इलाज कैसे हो जाएंगे। यह सवाल 2019 के चुनाव भर का नहीं है।
योगेंद्र यादव ने कहा कि इन हालतों में हमें तीन स्तर पर काम करना होगा —तुरन्त के काम यानी अल्पकालिक, मध्यकालिक व दीर्घकालिक।
यूनिवर्सिटी, मीडिया व ज्यूडिशियरी को बचाने के लिए संघर्ष करना होगा, तभी लोकतंत्र बचेगा।
एक समय में जब सुप्रीम कोर्ट ने घुटने टेक दिए तब जस्टिस खन्ना ने कहा था कि मैं अपनी आत्मा को नहीं बेच सकता। वे तब अपनी राय पर डट गए थे। अब चार जजों ने जो प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा उन्हें हम सलाम करें। उन्होंने हमें पैदा हुए खतरे के प्रति अलर्ट किया है राजस्थान सरकार के एक फैसले पर राजस्थान पत्रिका ने कहा कि कल से हम सरकार के बारे में कुछ नहीं छापेंगे तो सरकार को आदेश वापिस लेना पड़ा।
मध्यकालिक काम के तौर पर किसान व युवा सिपाही हैं लोकतंत्र को बचाने के लिए। किसान माने खेत मजदूर व बटाईदार भी। आज की रेडिकल पॉलिटिक्स यही है कि इन्हें एक साथ खड़ा करें। किसानी पर आर्थिक संकट, इकोलॉजिकल संकट व अस्तित्व का खतरा है। इस किसान को खड़ा करना इस देह की रीढ़ को मजबूत करना है।
योगेंद्र ने कहा युवा वे हैं जो दबाने से दबते नहीं हैं। यूनिवर्सिटीज में प्रतिरोध के संकेत मिल रहे हैं। वे ही देश को बचाने की ऊर्जा का काम कर सकते हैं। यूथ का अर्थ है सवाल पूछने की क्षमता। आगे के विचार की क्षमता, जब कोई कहे ऐसा हुआ नहीं, आप क्यों कर रहे हो। यूथ का अर्थ है जो दलित, महिला के सवालों को जोड़ कर न्याय के पक्ष में खड़ा हो जाये।
पहले जॉब लैस ग्रोथ थी अब जॉब लॉस ग्रोथ हो रही हैं। इसके लिए दीर्घकालीन उपाय के बतौर सांस्कृतिक सवाल समझ को बदलना होगा। राष्ट्रवाद के सवाल पर पुनः सोचना होगा। धर्म को लेकर आंख खोलनी होगी, जो सम्बन्ध जिन्ना का इस्लाम धर्म से था वही हिंदुत्व वालों का हिंदुत्व से है। ये गुंडागर्दी कर रहे हैं, क्योंकि हमने यह मैदान खाली छोड़ दिया है।
परम्परा को भी लिबरल लोगों ने संकीर्णता के हाथों में सौंप दिया है। पम्परायें नदी की तरह हैं। नदी में पानी आता है तो कूड़ा भी आता है मगर सफाई कर पानी पीना होता है। हमने परंपरा से मुँह मोड़ लिया, जिसके चलते नफरत फैलाने वाली ताकतों ने कब्जा कर लिया गया।
पॉलिटिक्स ही बाइनरी की जड़ में है। इलाज भी पॉलिटिक्स से होगा। अगर आप चाहें कि चंडीगढ़ में अच्छी शिक्षा कैसे मिले तो राजनीति करनी पडेगी। राजनीति आज का युगधर्म है। इसका अर्थ है गुंडे पॉलिटिक्स में आयेंगे, इसलिए सन्त को भी आना पड़ेगा।
भारत के स्वधर्म को बचाने के लिए पंचमुखी काम करने की जरूरत है। हमने चुनाव पार्टियों को दिया जो चुनाव के अलावा कुछ और नहीं करतीं। संघर्ष एक्टिविस्ट को दिया जो लड़ते लड़ते बीमार हो जा रहे हैं। रचनात्मक काम NGO को दे रखा है, जिसमें 50 प्रतिशत दुकान चलाते हैं। विचार निर्माण यानी ज्ञान का काम यूनिवर्सिटी पर डाल दिया गया है, जो सिर्फ डिग्री ही बांट रही है ज्ञान नहीं। अंतर्मन से सम्बन्ध बनाना होगा, यह काम हमने डेरे वालों को दे दिया है जिसके परिणाम भी सामने आते रहे हैं। इसलिए इन पांचों जगहों पर संघर्ष करने की सख्त जरूरत है।