शर्म आती है तुम्हें मां कहते हुए। काश पापा ने किसी अच्छी आंटी से शादी की होती तो वो हमारी मम्मी होती। देखा नहीं बाजार में तुमने मेरी सहेली की मां कैसी मॉडर्न थीं...
हाउस वाइफ कॉलम में आज अनामिका साहा
पिछली बार जब जनज्वार पर अपनी जिंदगी का कुछ हिस्सा साझा किया तो एक संतुष्टि मिली, फिर से जीने की उम्मीदें मन में जगने लगी हैं। मन में ख्याल आता है कि काश मां—चाचियों बड़ी—बुजुर्ग हो चुकी भाभियों के समय में भी सोशल नेटवर्किंग का इतना जाल बिछ चुका होता तो शायद उनकी भी मन की कुछ बातें बाहर आ पातीं, नहीं जीती वो घुट—घुटकर, उन्हें शब्द दे पातीं।
आज मेरी बड़ी मां की बहू सितारा भाभी याद आ गयीं।
आज मैं जैसी जिंदगी जी रही हूं, कुछ ऐसी ही तो थी मेरे बचपन की मेरी सितारा भाभी की लाइफस्टाइल। हालांकि मेरे पास तो कहने को तमाम डिग्रियां हैं, मगर वो तो बेचारी 5वीं पास थीं, जिसका अफसोस उन्हें ताउम्र सालता रहा। शायद आज भी।
हां, तो मैं सितारा भाभी के बारे में बता रही थी। बचपन में जब मैं 7—8 साल की रही होउंगी, तब की यादें जुड़ी हैं उनसे। भाभी दिखने में बला की खूबसूरत थीं, और उतनी ही जहीन। किसी ने कभी कद्र नहीं की उनकी। किसी ने भाभी को उंची आवाज में बात करते नहीं सुना होगा। महेश भैया से उनकी शादी हुई थी। क्लास 2 आॅफिसर महेश भैया को कभी जंची नहीं भाभी, मगर भाभी इस बात को कभी खुलकर बता भी नहीं पायीं किसी के सामने।
महेश भैया हमेशा इसी दर्प में रहते कि वो बड़े अधिकारी हैं और रिश्तेदारों के सामने अफसोस जताते किस अनपढ़—जाहिल—गंवार लड़की को उनके पल्ले बांध दिया। उनकी सास और ननदें भी जब—तब अहसान जताती रहतीं कि शुक्र मनाओ इतने बड़े अधिकारी की बीवी हो, तुम्हें रश्क होना चाहिए अपनी किस्मत पर। हां, भाभी के पिता ने दहेज खूब दिया था उनकी शादी में, शायद इसीलिए शादी की होगी उन्होंने पांचवी पास भाभी से।
हालांकि मायके से सितारा भाभी संपन्न परिवार से थीं, मगर उनके पिता ने यह कहकर उन्हें 5वीं से आगे नहीं पढ़ने नहीं दिया कि शादी के बाद झोंकना तो चूल्हा ही है, क्या करेगी पढ़—लिखकर। और पढ़ने के सपने पाले भाभी कभी पिता के आगे भी जुबान नहीं खोल पायी कि उन्हें पढ़ना है।
तो अधिकारी ओहदे पर तैनात महेश भैया को शर्म आती कहीं भी सितारा भाभी को अपने साथ ले जाने में, शर्म नहीं आती तो बिस्तर पर जहां उनका गंवार होने से उन्हें फर्क नहीं पड़ता, नहीं आती शर्म उनके शरीर को नोचने में जिसके तमाम निशान उनके चेहरे पर अकसर नजर आते और वो दिन के उजाले में उन्हें छुपाती फिरतीं। कभी—कभी घाव इतने गहरे होते कि लगता जैसे किसी ने नोच खाया हो।
मैं भाभी के पास अकसर जाती थी, अच्छी लगती थीं वो मुझे। बहुत प्यार करती थीं मुझसे। जिंदगी इसी तरह तमाम ताने—उलाहने सुनते हुए चल रही थी उनकी कि इसी बीच शादी के दो सालों के अंदर दो बच्चों की मां बन गईं वो।
सितारा भाभी घर—गृहस्थी, बच्चों का पालन—पोषण सब जिम्मेदारियों को बखूबी निभा रही थीं और महेश भैया अपनी एक सहकर्मी के साथ अकसर वक्त साझा करते नजर आते। इस बात का पता जब भाभी को चला तो उन्होंने विरोध किया, मगर सास ने यह कहकर मुंह बंद करवा दिया कि खबरदार जो इस बारे में जबान चलाई, बाहर ही तो घूमता है न। क्या फर्क पड़ता है इससे, वापस तो तुम्हारे ही पास आता है। पति तो तुम्हारा ही है।
कैसा पति? यही सवाल उठता होगा उनके दिमाग में, जिसके साथ वो कभी बाजार तक भी नहीं गई होंगी, क्योंकि महेश भैया को उन्हें अपनी गाड़ी तक में बिठाने में शर्म आती थी। बच्चे बड़े हो गए तो बच्चों का एडमिशन महंगे अंग्रेजी स्कूलों में करवाया गया, महेश भैया सारी फोर्मिलिटी खुद अकेले पूरी कर आए, जब स्कूल मैनेजमेंट ने मां के बारे में पूछा तो बीमारी का बहाना बना दिया।
खैर, अच्छा खाना खाने के शौकीन महेश भैया को अपनी पसंदीदा डिशें जरूर भाभी के हाथ की बनी चाहिए होती थीं, क्योंकि वह बहुत ही लजीज खाना बनाती थीं। उनकी उस कलीग को खाना जो पसंद था उनके टिफिन का, जिसके साथ उनके अफेयर के किस्से आॅफिस—शहर में मशहूर थे। सितारा भाभी एक आवश्यक उपकरण बन गईं थीं, सबके लिए जिन्हें हर किसी के आदेश पर उनके सामने हाजिरी देनी होती। बच्चे भी इस तरह पेश आते जैसे वो मां नहीं नौकरानी हों।
कितनी तकलीफ होती होगी उन्हें तब, जब स्कूल से उनके लिए बुलावा आने के बावजूद महेश भैया उन्हें इसलिए पीटीएम या अन्य किसी कार्यक्रम के दौरान नहीं ले जाते कि वो अंग्रेजीदां नहीं थीं। इसी का असर अब बच्चों पर भी पड़ने लगा था। बेटा—बेटी भी उनसे उसी तरह बात करते जिस तरीके से वो अपने पापा को बात करते हुए देखते।
एक दिन भाभी अपनी छठी में पढ़ने वाली बेटी मोना के साथ बाजार गयी थीं, जहां उसे उसकी सहेली मिल गई। सहेली के साथ उसकी मां भी थी, जो खासा मॉडर्न लुक में थीं। मोना सहेली की मां से हाय—हेलो करने के बाद सहेली से बातों में मशगूल हो गयीं। जब सहेली की मां ने मोना से पूछा कि तुम्हारे साथ कौन हैं, तो मोना ने कहा पड़ोस में रहने वाली आंटी हैं। मुझे अपने साथ सामान खरीदवाने लाई हुई हैं, क्योंकि उन्हें हिसाब करने में दिक्कत होती है।
सहेली और सहेली की मां का अपने साथ इस तरह परिचय करवाने से भाभी आहत थीं।
घर आकर जब उन्होंने मोना से पूछा तो मोना शर्मिंदा होने के बजाय और ज्यादा बिफर गई। बोली, 'कितना अच्छा होता, तुम भी पढ़ी लिखी होती और हमारे स्कूल में आकर मैडम से मिलतीं। सबकी मम्मियां कितनी सज—संवरकर रहती हैं, कितनी अच्छी तरह से अंग्रेजी बोलती हैं एक तुम हो जो नौकरानी की तरह लगती हो। शर्म आती है तुम्हें मां कहते हुए। काश पापा ने किसी अच्छी आंटी से शादी की होती तो वो हमारी मम्मी होती। देखा नहीं बाजार में तुमने मेरी सहेली की मां कैसी मॉडर्न थीं।'
सितारा भाभी बहुत रोईं थीं उस दिन। अब तक मैं थोड़ा बड़ी हो गई थी। मेरे गले लगकर बोली थीं, बिट्टो नहीं मन करता अब जीने का हमारा। पति को तो बीवी कहते शर्म आती ही है, बच्चों को भी लगता है काश हम उनकी मां नहीं होते। क्या गलती किए हैं हम, जो हमें ऐसी जिनगी नसीब हुई है। कहीं तो कसर नहीं छोड़ते हैं, हमारे बाबूजी हमें नहीं पढ़ाये तो इसमें हमारी क्या गलती।
पांचवीं तक पढ़ी भाभी को लेकिन पढ़ने का शौक बहुत था, घर में जब थोड़ी फुर्सत मिलती तो सबसे नजरें बचाकर हिंदी की किताबें पढ़ती, बच्चों की किताबें देखतीं। कहती, काश हम भी समझ पाते अंग्रेजी तो इतनी जिल्लत न झेलते। हम भी और अफसरों की बीवियों की तरह इनके साथ घूम पाते मोटर में। बच्चों के स्कूल जा पाते, इन्हें नहीं आती हमें अपनी बीवी कहने में शर्म।
पर नहीं भाभी, शायद यह आपकी गलतफहमी थी। पुरुष को हमेशा कुछ एकस्ट्रा चाहिए होता है, और बच्चों को सुपर मॉम। अगर आप पढ़ी—लिखी होतीं तो वे लोग आपमें कुछ और कमी निकाल रहे होते। आप सामने होतीं तो आपको बताती कि हमें देखिए हम तो अंग्रेजी पढ़े—लिखे सबकुछ हैं ना, फिर भी हम सिर्फ उपभोग हो रहे हैं। मैं भी तो कुछ—कुछ आपकी ही तरह तो जी रही हूं। बच्चों और पति की उपेक्षा तो मैं भी सहती हूं, बिल्कुल आपकी तरह। अंतर इतना है कि मैं आज इसे कह पा रही हूं और आप सब अपने सीने में जज्ब करके रहीं। (फोटो प्रतीकात्मक)