Begin typing your search above and press return to search.
राजनीति

लोया प्रकरण की सुई सिर्फ अमित शाह तक नहीं जाती

Janjwar Team
15 Jan 2018 8:35 PM IST
लोया प्रकरण की सुई सिर्फ अमित शाह तक नहीं जाती
x

जस्टिस लोया के मामले में जिस तरह से देश के कानून और शासन का मखौल उड़ाया जा रहा है और रैकेटिंग की जा रही है, उससे साफ हो गया है कि लोया की मौत की कहानी का एक सिरा उस सिरमौर से जुड़ा हो सकता है जिसको बचाने की कवायद चल रही है...

वीएन राय, पूर्व आईपीएस

क्या जज लोया को इसलिए मरना पड़ा कि उन्हें बदला नहीं जा सकता था? उनसे पूर्व सोहराबुद्दीन फर्जी पुलिस मुठभेड़ की सुनवाई करने वाले सीबीआई जज को, जो अमित शाह की अदालत के सामने उपस्थिति पर जोर दे रहा था, बदल दिया गया था। ऐसे में लोया को भी बदलने का मतलब बेवजह सर्वोच्च न्यायालय का ध्यान इस न्यायिक फर्जीवाड़े की ओर खींचना होता।

सुप्रीम कोर्ट का निर्देश था कि पूरे मामले की सुनवाई पूरी होने तक सीबीआई जज को बदला न जाये। लिहाजा लोया को बदलने के बजाय उन्हें खरीदने की कोशिश हुयी। और, अंततः, उनकी अकाल मृत्यु ने अवसर दिया कि एक लचीले जज को लगाकर अमित शाह को ‘डिस्चार्ज’ करा लिया गया।

लोया और उनके पूर्ववर्ती जज उत्पट, दोनों अमित शाह की सीबीआई कोर्ट में उपस्थिति पर जोर क्यों दे रहे थे? और क्यों अमित शाह उनके समक्ष आने से बच रहे थे? क्योंकि मामला ‘चार्ज’ लगाने के लिए लंबित था। न्यायिक प्रक्रिया के अनुसार ‘चार्ज’ लगाने के समय अभियुक्त को अदालत में होना चाहिए। यदि उत्पट और लोया अमित शाह की उपस्थिति पर जोर दे रहे थे तो इसका मतलब यही था कि वे शाह पर ‘चार्ज’ तय करने जा रहे थे।

लोया की मृत्यु के बाद आये लचीले जज ने लोया को ‘डिस्चार्ज’ करते हुए यहाँ तक टिप्पणी की कि अमित शाह को राजनीतिक कारणों से मामले में फंसाया गया लगता है। कमाल है, न सीबीआई की चार्जशीट में किसी राजनीतिक आयाम का जिक्र आया था और न अदालती कार्यवाही अभी उस स्टेज पर पहुँची थी कि किसी गवाही या दस्तावेज से इस तरह की टिप्पणी का औचित्य बनता।

इस जज का व्यवहार ही संदेहास्पद नहीं है, स्वयं सीबीआई का रवैया भी घोर आश्चर्यजनक रहा। अब तक सीबीआई सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निगरानी वाली एजेंसी हो चुकी थी। उन्होंने अमित शाह के ‘डिस्चार्ज’ के विरूद्ध अपील न करने का निर्णय लिया। इतने बड़े मामले में, जिसमें सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप हो चुका हो, सीबीआई का अपील न करने का निर्णय अभूतपूर्व ही कहा जाएगा।

सीबीआई ने अपील न करने के पीछे जो दलील दी, वह हास्यास्पद ही कही जा सकती है। उनका कहना था कि वे सब कुछ चार्जशीट में कह चुके हैं, अब और कुछ नया कहने को उनके पास है नहीं। लिहाजा, अपील की जरूरत नहीं है। यदि यह दलील मान ली जाए तो सीबीआई को किसी भी मामले में किसी भी हालत में अपील करनी ही नहीं चाहिए, जबकि वे रोजाना ही तमाम मामलों में अपील करते देखे जा सकते हैं।

सीबीआई की उपरोक्त दलील के हिसाब से तो न्यायिक प्रक्रिया से अपील का प्रावधान ही समाप्त कर देना चाहिए और तमाम अपील सुनने वाले न्यायालय बंद कर देने चाहिए। ऐसे में रोज हाई कोर्टों और सुप्रीम कोर्ट में होने वाली अपीलों का क्या होगा?

अहम सवाल है, स्वयं सुप्रीम कोर्ट तब क्या कर रही थी? एक पूर्णतया गलत न्यायिक आदेश से अमित शाह को ‘डिस्चार्ज’ किया गया और जांच एजेंसी सीबीआई अपील करने से भी मना कर रही थी, वह भी उस मामले में जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सीबीआई को दिया गया था- सुप्रीम कोर्ट क्यों सोती रही?

जज लोया की अकस्मात् मौत को लेकर हुयी पेटीशन ने आज सुप्रीम कोर्ट को भी दो फाड़ कर दिया है। यह चमत्कार कर पाना अकेले अमित शाह के बस का नहीं। न सीबीआईको इस कदर उल्टा नाच नचाना ही।

दरअसल,सोहराबुद्दीन की हत्या के समय जो राजनीतिक सत्ता समीकरण गुजरात राज्य में सत्ता पर काबिज था, वही आज केंद्र में एकछत्र बना हुआ है। इस समीकरण का बस एक छोर हैं अमित शाह! दूसरा और महत्वपूर्ण छोर स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं।

(पूर्व आइपीएस वीएन राय सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञ हैं।)

Janjwar Team

Janjwar Team

    Next Story

    विविध