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विमर्श

आरएसएस कभी शर्मिंदा नहीं हुआ अंग्रेजों की चापलूसी पर

Janjwar Team
10 Aug 2017 8:30 AM GMT
आरएसएस कभी शर्मिंदा नहीं हुआ अंग्रेजों की चापलूसी पर
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आरएसएस और उसके शागिर्द संगठन 9 अगस्त मनाएं या 15 अगस्त, इस पर क्या सवाल हो सकता है, लेकिन आजादी में अंग्रेजों के शार्गिद बने अपने नेताओं की हरकत पर एक बार देश से माफी तो बनती है...

वीएन राय, पूर्व आईपीएस

10 अगस्त को दिल्ली के हरियाणा भवन में ‘सांस्कृतिक राष्ट्रवाद गारंटी है राष्ट्रीय सुरक्षा की’ विषय पर विचार सभा का आयोजन है। मुख्य वक्ता हैं आरएसएस के प्रमुख विचारक राम माधव.

13 अगस्त को राजस्थान के साम्प्रदायिक रूप से संवेदी जिले पाली के कुशालपुरा में विहिप की ओर से विराट धर्म सभा के तत्वावधान में प्रवीण तोगड़िया की उपस्थिति में त्रिशूल दीक्षा अभियान आयोजित हो रहा है. यह वह अनवरत कड़ी है जो प्रधानमंत्री मोदी पर हिंदुत्व की लगाम कसने का काम करती आयी है.

कभी मोदी विरोधी गठबंधन के प्रधानमन्त्री पद के दावेदार के रूप में देखे जा रहे नीतीश कुमार के मोदी-शाह के सामने लम्बे पड़ जाने के बाद, कांग्रेस के बुद्धिजीवी नेता जयराम रमेश ने भी सार्वजनिक रूप से माना कि मोदी और शाह की जोड़-तोड़ देश के राजनीतिक क्षितिज पर छाई हुई है. दोटूक कहें तो जमीन पर विपक्ष दिशाहीन लगता है.

लेकिन अपना राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति चुने जाने, राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी बनने और येन-केन-प्रकारेण अधिकाँश राज्य सरकारें हथियाने के बावजूद मोदी का ताजातरीन ‘भारत छोड़ो’ अश्वमेध, आरएसएस और विहिप के कीचड़ में फंसा रहने को अभिशप्त है.

मोदी सही मायने में भारतीय कॉर्पोरेट के ट्रोजन हॉर्स हैं. इस क्रम में, गाँधी के 9 अगस्त 1942 के भारत छोड़ो की 75वीं वर्षगाँठ पर मोदी ने 2022 तक भारत छोड़ो का एक नया संकल्प सामने रखा है. गन्दगी, गरीबी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद,सम्प्रदायवाद, जातिवाद के भारत छोड़ने का. कॉर्पोरेट मुनाफाखोरी का चेहरा चमका कर जो रखना है.

नहीं,उनके इस अश्वमेध को चुनौती फ़िलहाल कमजोर और विभाजित प्रतिपक्ष से नहीं आ रही.बल्कि आरएसएस की विरासत,तोगड़िया संचालित विहिप और जनसंघ ज़माने से पार्टी के सर्वमान्य नीतिकार दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानववाद रास्ते का रोड़ा सिद्ध हो रहे हैं.

दरअसल,बेलगाम होने की सूरत में मोदी के मुकाबले में आरएसएस और विहिप का जवाबी ट्रोजन हॉर्स है एकात्म मानववाद. केंद्रीकृत पूंजीवाद का 1965 का यह सांस्कृतिक-स्वदेशी मॉडल काम, अर्थ, धर्म, मोक्ष की हिंदू अवधारणा का कायल है. इसकी आड़ में सैनिक राष्ट्रवाद, धार्मिक राष्ट्रवाद, सवर्ण राष्ट्रवाद जैसे संघी मूल्य आगे बढ़ाये जा सकते हैं और राजनीतिक एजेंडे को नियंत्रण में रखा जा सकता है.

सरकार संचालन में आरएसएस का अपना स्वतंत्र कोटा है. उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री बनना इस कोटा प्रणाली ने ही संभव किया. केंद्र सरकार के संस्कृति मंत्री महेश शर्मा भी आरएसएस कोटे से आते हैं और तदनुसार संचालित होते हैं.

संस्कृति मंत्रालय ने नवम्बर, 2016 से दीनदयाल उपाध्याय का जन्म शताब्दी वर्ष मनाने का जिम्मा आरएसएस संचालित दीनदयाल शोध संस्थान को दे रखा है.उपरोक्त हरियाणा भवन जैसी विचार सभाओं और दीगर कार्यशालाओं का आयोजन इस शोध संस्थान द्वारा ही किया जा रहा है.

75 वर्ष पहले, दूसरे विश्वयुद्ध के बीच, कांग्रेस के आह्वान पर छिड़ा भारत छोड़ो आंदोलन एक राष्ट्रीयजन- विप्लव में बदल गया था. दस हज़ार देशवासी ब्रिटिश राज के हाथों मारे गए और गांधी-नेहरु समेत लाखों जेलों में ठूँस दिए गए.नौ सेना तक में विद्रोह की चिंगारी दिखी.

तब भी, राष्ट्रीय उत्सर्ग के उस अभूतपूर्व दौर में भी हेडगेवार-गोलवलकर की आरएसएस और वीर सावरकर की हिंदू महासभा, जिन्ना की मुस्लिम लीग की तरह अंग्रेज़ों के युद्ध सहायक मात्र बने रहे। आरएसएस ने अपनी इस भूमिका पर कभी खेद प्रकट नहीं किया है. मोदी के ‘भारत छोड़ो ’में भी पलीता लगाना उनकी मूल प्रकृति के अनुरूप होगा.

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