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संस्कृति

क्यों टपकाता है सीरिया खून के आँसू

Janjwar Team
1 March 2018 1:43 PM GMT
क्यों टपकाता है सीरिया खून के आँसू
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दार्जिलिंग में रहने वाली नेपाली भाषा की चर्चित कवि पवित्रा लामा की कविता 'सीरिया और जुनैद'

पवित्रा लामा वर्तमान दौर की नेपाली भाषा की बहुत ही चर्चित तथा लोकप्रिय कवि हैं। उनका कविता संग्रह 'सभ्यता की पेंडुलम' खासा चर्चित रहा है। मूल रूप से डुवार्स की पवित्रा की शादी दार्जीलिंग में हुई है। दार्जीलिंग में राजस्व भूमि अधिकारी पवित्रा नेपाली साहित्य में NBU से PG में टापर रही हैं। उनकी समकालीन विसंगतियों पर तीक्ष्ण आलोचना करती हुई कविताएँ ही नहीं अन्य लेख और रचनाएं भी भारत और नेपाल की पत्रिकाओं में समान रूप से प्रकाशित होती रहती हैं। पवित्रा वर्तमान में अपने समकालीन लेखकों/कवियों की तुलना में चर्चित और अत्यंत मुखर हैं। इनकी कई अन्य कविताएं भी अत्यंत चर्चित रही हैं। नारीवादी दृष्टिकोण पर ही इनकी कविताएँ अधिक फोकस करती हैं। आइए पढ़ते हैं सीरिया वीभत्सता पर लिखी गई उनकी कविता 'सीरिया और जुनैद'— जनार्दन थापा

पाल्मीरा की रेगिस्तान में
जब सालाना खेला जाता था
ऊँटों का रोमांचक दौड़
अपनी चमकीली आँखों से
जुनैद निहारता था एक एक ऊँट की रफ्तार
उछलते कूदते बजाता था ताली
लाल होँठो को करते गोल
बजाता था तीखी सीटियाँ

आज पाल्मीरा है,
रेगिस्तान भी है,
ऊँट भी जरूर होंगे,
नहीं है तो बस जुनैद और उसकी चमकीली आँखें
नहीं हैं उसकी सीटियाँ भी।

लताकिया की गल्ली सडकें किसी दिन,
लावा और राखों की ढेरों को हटाकर
जब करेंगे वसन्त का स्वागत
जब खिलाएँगे मुरादों का गुलाब
या चमेली का शहर दमिश्क किसी दिन,
खण्डहरों के मलबों को साफ कर
जब सजाने लगेगा रेशमी सपने,
या ज्वालामुखी के ऊपर बसर करनेवाला
मस्जिदों का शहर अलप्पो
जब फहराएगा प्रेम और शान्ति के ध्वज
सीरिया की सूनी गोदें बेतहाशा ढूँढेंगी
खालिद, रज्जाना और सुजाना को
इभान, अलान्द और यानिसों को।

सौ फुरात भी क्यों धो नहीं पाते
पृथ्वी की पहली हत्या का दाग?
क्यों टपकाता है सीरिया खून के आँसू?
क्यों बार बार होता है ग्रस्त
आबेल की हत्या के श्राप से?

वैश्विक कूटनीति के बिछाए हुए
बारूद की ढेर पे खड़े
मानवता की अब कितनी बची है आयु?

सत्ता और अहंकार का मैदान बन चुके
हिंसा और हत्या का अखाडा बन चुके
इस यवनभूमि की अब कितनी बची है उम्र?

बता दो ए युद्ध के मालिक!!
जुनैद जैसे अधखिले गुलाबों की
मुस्कुराहटों की
सीटियों की
अब कितनी बची है साँसें?

Janjwar Team

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