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शिक्षा

फीस के लिए बेइज्जत कर खदेड़ने पर बच्चे ने लगाई फांसी

Janjwar Team
19 Sep 2017 12:48 AM GMT
फीस के लिए बेइज्जत कर खदेड़ने पर बच्चे ने लगाई फांसी
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पैसे वालों के स्कूलों में कोई वारदात हो जाए तो वह देश को झकझोर देने वाला मसला बन जाता है, लेकिन आम आदमी के बच्चे के साथ कुछ भी जघन्य हो जाए तो कोई बड़ी बात नहीं होती।

जनज्वार। ऐसा ही एक मामला उत्तर प्रदेश के पीलीभीत के हजारा थाना क्षेत्र के गांव गौरनिया गांधीनगर में सामने आया है, जहां एक 9वीं कक्षा के 14 वर्षीय छात्र रॉबिन सिंह ने फीस के लिए स्कूल द्वारा लगातार दबाव बनाने से परेशान होकर आत्महत्या कर ली है। अमन चिल्ड्रंस स्कूल 2005 में स्थापित हुआ है और स्कूल के प्रिंसिपल अवधेश कुमार हैं।

रॉबिन के साथ अमन चिल्ड्रंस स्कूल में उसकी बहन भी पढ़ती थी। जनज्वार से हुई बातचीत में हजारा थानाध्यक्ष एसपी सिंह ने बताया कि गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में रसोइया का काम कर रही रॉबिन की मां लता सिंह पिछले छह महीने से बच्चों की फीस नहीं दे पा रही थी। लेकिन बच्चे लगातार स्कूल जा रहे थे।

कल 18 सितंबर को भी बेटा रॉबिन और बेटी को यह कहते हुए लता ने स्कूल भेजा कि तुम लोग चलो, मैं फीस लेकर आती हूं। यह बात लता को इसलिए कहनी पड़ी क्योंकि रॉबिन फीस के लिए स्कूल में लगातार हो रही बेइज्जती से परेशान था और वह स्कूल नहीं जाना चाहता था।

पर मां की जिद से रॉबिन स्कूल के लिए निकला तो, लेकिन पहुंचा नहीं। केवल उसकी बहन स्कूल पहुंची। इधर जैसे ही मां घर से बाहर निकली रॉबिन ने दरवाजे से लगे लीची के पेड़ से लटककर अपनी जान दे दी।

मां को रसोइया का काम करने के बदले 1500 रुपए मासिक मिलते हैं, जबकि स्कूल की फीस 170 रुपए महीने है। दोनों बच्चों की फीस मिलाकर प्रतिमाह 340 रुपए होते हैं जो रॉबिन की मां छह महीने से नहीं दे पाई थी।

गौरतलब है कि रॉबिन सिंह के पिता मुन्ना सिंह ने पांच—छह साल पहले पारिवारिक कलह और तंगहाली के कारण ही आत्महत्या की थी। उसके बाद से लता ही परिवार चलाती हैं। लता के हिस्से करीब डेढ़ एकड़ जमीन भी है, लेकिन परिवार बेहद गरीबी और तंगहाली में जीता है। कल्पना की जा सकती है कि जहां महंगाई चरम पर है वहां 1500 रुपए की मासिक आमदनी से एक मां अपने दो बच्चों के खर्चे कैसे चलाती होगी।

पुलिस जांच में भी यही बात सामने आई है कि रोज—रोज स्कूल में फीस के लिए रॉबिन को कहा जाता था और वह इससे आजिज आ चुका था। हालांकि रॉबिन के शव को पेड़ से उतारकर पुलिस को सूचना दिए बिना ही उसकी मां और परिजनों ने अंतिम संस्कार कर दिया था।

मीडिया को स्कूल के प्रबंधक अवधेश कुमार ने बताया कि रोबिन की फीस बकाया थी। उससे स्कूल ने फीस लाने को कहा था, लेकिन पिटाई और टॉर्चर जैसी कोई घटना नहीं हुई थी।

फेसबुक पर विक्रम सिंह चौहान लिखते हैं, यहाँ हम दिल्ली और बड़े अंतरराष्ट्रीय विषयों पर चर्चा करते हैं लेकिन छोटे शहरों और गांव में ऐसी कितनी मौत हो चुकी हैं हमें पता ही नहीं है। इसके लिए निजी स्कूलों की मनमानी के खिलाफ बुनियादी बदलाव करने होंगे।

उत्तर प्रदेश के शिक्षक नेता चतुरानन ओझा कहते हैं, निजी विद्यालयों में चलने वाले शोषण उत्पीड़न को बर्दाश्त करने वाला समाज एक सभ्य समाज के रुप में नहीं स्वीकार किया जा सकता है हमें अपने सभ्य होने की प्रामाणिकता सिद्ध करनी होगी, हमें अपने बच्चों, अपनी भाषा और अपने समाज के प्रति अपने प्रतिबद्धता को प्रमाणित करना होगा।

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