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राजनीति

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कानून नहीं कर सकता मीडिया की स्वतंत्रता बाधित

Prema Negi
11 April 2019 8:33 AM GMT
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कानून नहीं कर सकता मीडिया की स्वतंत्रता बाधित
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न तो भारतीय संसद का बनाया कोई क़ानून और न अंग्रेज़ों का बनाया 'ऑफ़िशियल सीक्रेट ऐक्ट' मीडिया को कोई दस्तावेज़ या जानकारी प्रकाशित करने से रोक सकता है और न ही कोर्ट इन दस्तावेज़ों को 'गोपनीय' मान सकता है...

वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट

जनज्वार। उच्चतम न्यायालय ने एक बार फिर प्रेस की स्वतंत्रता की अहमियत को रेखांकित करते हुये कहा है कि लोकतंत्र की मजबूती के लिए प्रेस की स्वतंत्रता जरूरी है। उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि कोई भी क़ानून मीडिया को गोपनीय काग़ज़ात प्रकाशित करने से नहीं रोक सकता।

हालांकि उच्चतम न्यायालय ने मीडिया में पक्षपात के गलत चलन को लेकर आगाह भी किया है और कहा कि पक्षपातपूर्ण जानकारी प्रसारित करना, वास्तविक स्वतंत्रता को धोखा देना है।

राफेल सौदे की सुनवाई में नए दस्तावेजों पर विचार करने का निर्णय लेने के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि न तो भारतीय संसद का बनाया कोई क़ानून और न अंग्रेज़ों का बनाया 'ऑफ़िशियल सीक्रेट ऐक्ट' मीडिया को कोई दस्तावेज़ या जानकारी प्रकाशित करने से रोक सकता है और न ही कोर्ट इन दस्तावेज़ों को 'गोपनीय' मान सकता है। साथ ही न्यायालय को भी गोपनीय दस्तावेजों पर विचार करने से नहीं रोक सकता है।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएस जोसफ की पीठ ने यह बात केंद्र सरकार की उस आपत्ति पर कही है, जिसमें कहा गया था कि एक अखबार ने गोपनीय दस्तावेजों को प्रकाशित किया है। जहां सरकार का कहना था कि गैरकानूनी तरीके से दस्तावेज हासिल कर इसे प्रकाशित किया गया है, इसलिए इन्हें पुनर्विचार याचिकाओं के जरिए रिकार्ड पर नहीं लिया जाना चाहिए।

वहीं उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि इस तरह के दस्तावेजों का प्रकाशन संविधान के तहत मिले बोलने व अभिव्यक्ति के अधिकार के अनुरूप है। मुख्य न्यायाधीश जस्टिस गोगोई और जस्टिस कौल ने एक फैसला सुनाया, जबकि जस्टिस जोसेफ ने जस्टिस गोगोई के फैसले से अपनी पूर्ण सहमति व्यक्त करते हुए अपना अलग से फैसला सुनाया।

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल ने अपने फैसले में कहा है कि वर्ष 1950 से उच्चतम न्यायालय लगातार प्रेस की आजादी की बात करता रहा है। फिर ऐसा कोई कानूनी प्रावधान नहीं है जो गोपनीय दस्तावेजों को प्रकाशित करने पर रोक लगाता हो। साथ ही ऐसा कोई कानूनी प्रावधान भी नहीं है जो ऐसे दस्तावेजों को अदालत में पेश करने पर रोक लगाता हो।

कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि हमारी जानकारी में आपराधिक गोपनीय कानून या किसी अन्य कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है, जिसमें संसद द्वारा कार्यकारी अधिकार के तहत गोपनीय दस्तावेजों को प्रकाशित करने पर रोक लगाया गया हो।

फैसले में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के 1971 के फैसले के तथ्य पर ध्यान दिलाया है, जिसमें पेंटागन दस्तावेजों के प्रकाशन पर रोक लगाने के सरकार के अधिकार को मान्यता देने से इनकार किया गया था। जस्टिस गोगोई ने कहा है कि हमें ऐसा कुछ नहीं दिखता कि कैसे अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट का वो निर्णय आज के समय में (राफेल मामले) में लागू नहीं होता।

मीडिया का लोकतंत्र की मजबूती में बहुत योगदान

जस्टिस जोसेफ ने कहा है कि भारत में मीडिया ने लोकतंत्र की मजबूती में बहुत योगदान दिया है और देश में एक जीवंत लोकतंत्र के लिए प्रेस की हमेशा एक महत्वपूर्ण भूमिका होगी। उन्होंने कहा कि विजुअल मीडिया काफी ताकतवर है और इसकी पहुंच काफी दूर तक है। जनसंख्या का कोई भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं है।

जस्टिस जोसेफ ने कहा है कि डर एक पत्रकार को प्रिय लगने वाली सभी चीजों या किसी भी चीज को खोने का हो सकता है। एक आजाद व्यक्ति पक्षपात नहीं कर सकता है। पक्षपात कई तरीकों का होता है। पक्षपात के खिलाफ नियम जजों द्वारा देखा गया एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है।फैसले में कहा गया है कि विजुअल मीडिया समेत हर तरीके का प्रेस पक्षपात नहीं कर सकता, बल्कि उसे स्वतंत्र रहना चाहिए।

जस्टिस जोसफ ने कहा है कि देश के जीवंत लोकतंत्र बरकरार रखने में प्रेस की भूमिका निर्णायक रही है। खबरें सही होनी चाहिए और पक्षपाती नहीं होनी चाहिए। जस्टिस जोसफ ने कहा है कि प्रेस को भयमुक्त रहना चाहिए और निष्पक्ष होना चाहिए। व्यक्तिगत, राजनीतिक या आर्थिक स्वार्थ के लिए पक्षपातपूर्ण खबरे नहीं दी जानी चाहिए। अगर जिम्मेदारी के साथ प्रेस अपने अधिकार का इस्तेमाल नहीं करेगा तो इससे लोकतंत्र कमजोर पड़ जाएगा।

जस्टिस जोसफ ने अपने फैसले में यह भी कहा है कि प्रेस में कुछ ऐसा भी समूह है जहां पक्षपात दिखता है। यह गलत चलन है। व्यावसायिक हित और राजनीतिक वफादारी दिखाने के चक्कर में निष्पक्ष जानकारी देने के दायित्व का क्षरण होता है। जस्टिस जोसेफ ने कहा है कि यदि ज़िम्मेदारी की गहरी समझ के बिना प्रेस द्वारा स्वतंत्रता का फायदा उठाया जाता है, तो यह लोकतंत्र को कमज़ोर कर सकता है। एक स्वतंत्र व्यक्ति को निडर होना ज़रूरी है। कुछ वर्गों में, पक्षपात करने की एक चिंताजनक प्रवृत्ति दिखाई देती है। व्यावसायिक हितों और राजनीतिक निष्ठाओं की वजह से निष्पक्ष तरीके से सूचनाएं प्रसारित करने में समस्या होती है।

पक्षपातपूर्ण पत्रकारिता वास्तविक स्वतंत्रता से धोखा

जस्टिस जोसेफ ने कहा है कि पक्षपातपूर्ण जानकारी प्रसारित करना, वास्तविक स्वतंत्रता को धोखा देना है। यह अनुच्छेद 19(1) (ए) के तहत लोगों को सही जानकारी देने के महत्वपूर्ण अधिकार का उल्लंघन है। ये अधिकार नागरिकों को दिए गए कई अन्य अधिकारों का आधार भी है।

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि महत्वपूर्व बात ये है कि भारत में प्रेस का अधिकार, अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत जनता के अधिकार से बड़ा नहीं है। मीडिया को ये एहसास होना चाहिए कि दर्शकों, पाठकों को अधिकार है कि उन्हें बिना किसी मिलावट के सच उन तक पहुंचाया जाए। मैं समझता हूं कि आजादी में कई सारी चीजें शामिल होती हैं। एक स्वतंत्र व्यक्ति को निडर होना जरूरी है।

राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर जानकारी नहीं छिपा सकता केंद्र

उच्चतम न्यायालय ने यह भी कहा है कि केंद्र सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर आरटीआई या सूचना के अधिकार के तहत मांगी गई जानकारी देने से इनकार नहीं कर सकती है। हालांकि फ़ैसले में ये भी कहा गया है कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ जानकारी मांगने भर से जानकारी मिल जाएगी। सूचना मांगने वाले को अपने तर्कों से ये साबित करना होगा कि ऐसी जानकारी छिपाना, जानकारी देने से ज़्यादा नुक़सानदेह हो सकता है।

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